Rajasthan Election 2023 : सो लहवीं राजस्थान विधानसभा गठित करने संबंधी प्रक्रिया के अन्तर्गत चुनाव सम्पन्न कराने की दिशा में एक चरण पूरा हो गया है। चुनाव अधिसूचना जारी होने के पश्चात नामांकन पत्र दाखिल करके उनकी जांच पड़ताल और नाम वापसी तथा प्रत्याशियों के चुनाव चिन्ह आवंटन के साथ चुनाव मैदान तैयार है। अब चुनाव प्रचार, मतदान तथा मतगणना से चुनाव के दंगल में उतरे पहलवानों की हार जीत का फैसला होगा। रैफरी का काम निर्वाचन आयोग का है, जिसकी जिम्मेदारी की चर्चा हम आगे करेंगे।
लेकिन इस बार प्रत्याशियों के दलीय टिकटों की बंदरबाट के दिलचस्प घटनाक्रम देखने को मिले। दलीय सिद्धांत, नैतिकता और निष्ठा से जुड़े मूल्य धरे रह गए। ऐसे लगा कि चुनाव नहीं ताश खेला जा रहा है, वह भी जुए के रूप में। ताश फेंकने, फेंटने, उसमें तुरुप का पता निकालने या जोकर को आगे करने के दिलचस्प नजारे देखने को मिले। वहीं सुबह सवेरे जयपुर के नारायण सिंह तिराहे की तर्ज पर सरकारी तथा प्राइवेट बसों में चुनावी सवारियां बिठाने की सौदेबाजी का शोरगुल निर्वाचन की पवित्रता को शर्मसार कर गया।
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विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में संसदीय शासन प्रणाली को अंगीकार किया गया है। चुनाव को लोकतंत्र का उत्सव माना जाता है। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में व्यस्क मताधिकार की आयु 21 से 18 वर्ष किए जाने से युवाशक्ति की भागीदारी से मतदान प्रतिशत बढ़ा है। स्वाधीनता के पश्चात संविधान के अन्तर्गत गठित स्वतंत्र निकाय निर्वाचन आयोग शांतिपूर्ण, स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व निभाता है। आज से हम चुनाव सम्पन्न कराने से संबंधित समूची प्रक्रिया से रू-ब-रू होंगे।
वोटिंग के साथ काउंटिंग भी हुई आसान
स्वाधीनता के पश्चात प्रथम आम चुनाव में मतदान कर चुके वयोवृद्ध मतदाताओं को तब की मतदान प्रक्रिया का ध्यान होगा। दलीय एवं निर्दलीय प्रत्याशियों के नाम एवं चुनाव चिह्नों से युक्त मतपत्र पर मोहर लगाकर मतपेटी में वोट डालने की उलझन रहा करती थी। चुनाव सुधार की प्रक्रिया में अब फटाफट मतदान होने लगा है। प्रारम्भिक परीक्षणों के उपरांत वर्ष 2004 से पहली बार पूरे देश में मतदान इलेक्ट्रॉनिक वोटिगं मशीनों (ईवीएम) से होने लगा है। वी वी पैट यूनिट की पारदर्शी स्क्रीन से तो मतदाता को अपने सही मतदान की सूचना मिल जाती है। ईवीएम से मतगणना भी आसान हो गई है।
पहले मतपेटियों को खोलने, मतपत्र मिलाने, मतपत्रों की गडि्डयां बनाने, फिर गिनती के सफर में देर रात तक चुनाव परिणाम आ पाते थे । मतदान केन्द्रों पर कब्जे तथा मतपत्र फाड़ने और मतपेटी ले जाने की शिकायतें भी हुआ करती थी।
शेखावत ने भी की थी एक देश-एक चुनाव की वकालत
वर्ष 1951-52 से आम चुनाव का सिलसिला शुरू हुआ तब लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव एक साथ कराए जाते थे। यह क्रम चार चुनावों के पश्चात तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल में टूट गया। इस टूटन के चलते प्राय: हर वर्ष चुनाव दर चुनाव का खेल चल रहा है। आदर्श आचार संहिता लागू होने से व्यापक जनहित से संबंधित योजनाओं के क्रियान्वयन एवं विकास कार्यों पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। इसके अलावा चुनाव सम्पन्न कराने में सरकार के स्तर पर तथा राजनैतिक दलों एवं अन्य निर्दलीयों द्वारा बेतहाशा खर्चकिया जाता है। इसमें काले धन के उपयोग की चर्चा भी होती है। इसलिए पिछले कुछ अर्से से एक देश एक चुनाव की मांग को लेकर पुन: विचार मंथन होने लगा है।
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केन्द्र सरकार ने तो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविदं की अध्यक्षता में समिति गठित करने का अप्रत्याशित कदम उठाया है। नीति और विधि आयोग भी इस दिशा में कार्यवाही कर रिपोर्ट बना चुका है। राजस्थान के जननेता तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने भी देश में एक साथ चुनाव कराने की वकालत की थी। चुनाव सुधारों की चर्चा होती है।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार