हर तरफ बज रहा सोशल मीडिया का डंका, बीते 10 सालों में बदली चुनावी रणनीतियां

सोशल मीडिया जीवन के हर क्षेत्र में घुसपैठ कर चुका है। घर परिवार से लेकर कार्यक्षेत्र तक, हर जगह सोशल मीडिया बिना दिन व्यतीत होना…

Social media is ringing everywhere, election strategies have changed in the last 10 years

सोशल मीडिया जीवन के हर क्षेत्र में घुसपैठ कर चुका है। घर परिवार से लेकर कार्यक्षेत्र तक, हर जगह सोशल मीडिया बिना दिन व्यतीत होना नामुमकिन सा लगता है। ऐसे में सियासत इससे दूर कैसे रह सकती है। सरकार से लेकर राजनीतिक दलों तक, हर जगह पर सोशल मीडिया की बैसाखी काम आ रही है। चुनावों में मतदाताओं को रिझाने से लेकर अपने दावों और वादों को आमजन तक पहुंचाने में सोशल मीडिया अहम किरदार निभा रहा है। 

यही वजह है कि पिछले करीब दस सालों में चुनावों की रणनीतियां बदल गई हैं। कार्यकर्ताओं के साथ अहम नजर से देखे जाने लगे हैं फॉलोअर्स। सोशल मीडिया अकाउंट्स पर एक क्लिक में पार्टी और नेता लाखों लोगों तक पल भर में पहुंच जाते हैं। लाखों लोगों की भीड़ जुटाने की बजाय लाखों लोगों को घर बैठे संबोधित भी कर दिया जाता है। बस एक क्लिक जनरेट किया जाता है और ऑनलाइन रैली सम्पन्न हो जाती है। यह तो एक बानगी भर है, राजनीति पर सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव की।

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एक क्लिक और लाखों लोग तक पहुंचे सोशल मीडिया राजनीति के लिए बड़े काम की चीज है। काम की चीज इसलिए क्योंकि यह आसानी से लोगों तक पहुंचाई जा सकती है। एक वक्त हुआ करता था, जब लोगों को लामबंद करने के लिए पर्चे बांटे जाते थे, पोस्टर चिपकाए जाते थे, माइक पर अनाउंसमेंट किया जाता था, डोर टूडोर विजिट होता था, अब इन मेहनत के कार्यों की जगह सोशल मीडिया के स्मार्टवर्क ने ले ली है। संदेश तैयार किया जाता है और सीधे लोगों तक पहुंचा दिया जाता है।

बनने लगे हैं रोचक कैंपेन 

सोशल मीडिया के बदलते स्वरूप ने राजनीतिक दलों और चुनावों के प्रचार का स्वरूप भी बदल दिया है। बैनर, पोस्टर और नुक्कड़ नाटकों की जगह अब रोचक कैम्पन देखने को मिलते हैं। ग्राफिक्स और एनिमेशन ने इसमें चार चांद लगा दिए हैं। रोचक वीडियो लोगों से मतदान की अपील करते नजर आते हैं। 

कुछ साल पहले तक किसी ने सोचा भी नहीं था कि जिन राजनेताओं को हम अपने सामने देखते हैं, उनके एनिमेटेड कैरेक्टर रोचक तरीके से अपनी बात कहते नजर आ सकते हैं। नए किस्म के गानों को भी लोगों के लिए परोसा जाता है। यह लोगों के बीच में चर्चा का विषय भी बनते हैं और उनकी जुबां पर भी चढ़ जाते हैं।

सबकी अपनी- अपनी टीम 

सोशल मीडिया पर किस तरह अपनी बात को प्रभावी तौर पर कहा जाए, इसके लिए राजनीतिक दलों के पास अपनी अपनी टीम है। उन टीमों में सोशल मीडिया के एक्सपर्ट हैं, जो कटेंट से लेकर विजुअल तक, हर चीज के बारे में सुझाव देते हैं। किस समय क्या पोस्ट करना है, रीच किस तरह बढ़ानी है, सब देखा जाता है। ऑर्गेनिक और पेड कैंपेन क्रिएट किए जाते हैं। चुनाव आते आते तो सोशल मीडिया मानो वॉर रूम में बदल जाता है। अच्छा खासा जोर वर्चुअल प्रचार पर लगा दिया जाता है।

स्मार्ट फोन ने बदला परिदृश्य 

ग्राउंड लेवल पर स्थिति बदलने का एक अन्य कारण और है। वह कारण है स्मार्ट फोन। स्मार्ट फोन ने राजनीतिक दलों को एनी टाइम लोगों के मन से लेकर घर तक प्रवेश का नया जरिया प्रदान किया है। स्मार्ट फोन और सस्ते नेट पैकेज ने सियासी दलों को नया मंच प्रदान कर दिया है। खास बात यह भी है कि सोशल मीडिया का इस्तेमाल बड़ी संख्या में युवा वर्ग कर रहा है। मतदान में इनकी बड़ी भूमिका भी रहती है। इनमें भी मध्यमवर्गीय परिवार इसका एक बड़ा भाग रहते हैं। यही वजह है कि मतदाता के इस विशेष वर्ग को प्रभावित करने के लिए पॉलिटिकल पार्टीज सोशल मीडिया का उपयोग करने में जुटे हैं।

फेसबुक पर किसके कितने फॉलोअर

नरेंद्र मोदी 48M 

राहुल गांधी 6.4M 

अरविंद केजरीवाल 9.2M 

अमित शाह 15M 

अशोक गहलोत 4M 

वसुंधरा राजे 9.3M 

सचिन पायलट 2.8M 

सतीश पूनिया 848 K

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