Dagi Politics : आज सुबह से बिहार के नए कानून मंत्री कार्तिकेय सिंह खबरों के बाजार में छाए हुए हैं। बीते मंगलवार को ही कानून मंत्री की शपथ ले चुके कार्तिकेय सिंह खुद अपहरण के मामले में वारंटी है। जिससे अब बिहार की राजनीति में जंगलराज का दोबारा राग अलापा जाने लगा। लेकिन क्य़ा आपको पता है सिर्फ कार्तिकेय सिंह ही नहीं बड़े-बड़े माननीय भी गंभीर अपराधों में शामिल रहे हैं। कुछ पर तो अभी तक मामले चल ही रहे हैं। आज के आर्टिकल में हम आपको ऐसे ही माननीयों के बारे में बताएंगे।
कुल 363 ‘माननीय’ अपराधी!
आपको ये जानकार हैरानी होगी कि देश के 363 मानीनयों पर आपराधिक केस दर्ज है। चुनाव सुधारों के लिए काम करने वाले संगठन ADR यानी Association for Democratic Reforms के रिपोर्ट के मुताबिक साल 2019 से 2021 तक लोकसभा के 542 सांसदों और 1953 विधायकों ने चुनाव के दौरान हलफनामे पेश किए जिसके मुताबिक कुल 15 प्रतिशत यानी 363 सदस्यों ने खुद पर आपराधिक मामले दर्ज होने की बात कबूल की है।
यही नहीं उनके खिलाफ ये मामले अदालतों ने तय किए हैं। आपको आश्चर्य होगा कि इनमें से सबसे ज्यादा आपराधिक मामले देश की सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के सदस्यों पर दर्ज हैं। भाजपा के 83 सदस्यों पर आपराधिक मामले दर्ज किए गए हैं। वहीं 47 सदस्य कांग्रेस के हैं। तृणमूल कांग्रेस के भी 25 विधायक औऱ सांसद इसमें शामिल हैं। बिहार के 54 विधायक, केरल के 42 विाधयकों पर गंभीर श्रेणी के अपराध में शामिल हैं। वहीं केंद्र के 4 मंत्री औऱ राज्यों के 35 मंत्री भी आपराधिक मामलों में सूचीबद्ध हैं।
देश की लगभग हर राजनीतिक पार्टी में दागी
महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामलों की बात करें तो इसमें सबसे ऊपर महाराष्ट्र का नाम आता है। महाराष्ट्र में शिवसेना के 21 में से 18 सांसदों के खिलाफ गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं। यही नहीं शिवसेना के 85 प्रतिशत विधायकों दागी प्रवृत्ति के हैं। दागी ‘माननीयों’ में देश की लगभग हर पार्टी का सदस्य शामिल है। बसपा, सपा, राजद, जदयू, अन्ना द्रमुक, द्रमुक और बाकी बची पार्टियां भी इस लिस्ट में शामिल हैं।
सुप्रीम कोर्ट और चुनाव आयोग के आदेश की भी नहीं चिंता
आपराधिक गतिविधियों में संलिप्त रहने वाले हमारे देश के माननीय चुन लिए जाते हैं। इनमें से कई लोग संवैधानिक पद पर रहते हुए भी धड़ल्ले से अपराध करते और करवाते हैं। इस कृत्य को देश के लिए गंभीर मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया था। लेकिन 25 सितंबर 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसला सुनाया था। कोर्ट ने गंभीर अपराधों में लिप्त रहने वाले उम्मीदवार को आरोपपत्र दाखिल करने और आरोप तय होने के बावजूद चुनाव लड़ने से रोक पर इनकार कर दिया था। अदालत का कहना था कि व्यक्ति पर दोष सिद्ध होने से पहले ही उसे आरोपी नहीं माना जा सकता। इसलिए उसे चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता। यह कानून के खिलाफ है। कोर्ट ने तो ये भी कहा था कि अगर ऐसे लोगों को जो अपराधों में लिप्त होने के आरोपी हैं उन्हें अगर चुनावों से दूर रखना है तो संसद इसके लिए कानून लेकर आए।
अगर बात चुनाव आय़ोग के इस गंभीर मामले में संज्ञान लेने की करें तो आयोग ने इस साल हो चुके 5 राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा के दौरान कहा था कि चुनावों में हिस्सा लेने वाले राजनीतिक दल और उम्मीदवार अपने आपराधिक रिकॉर्ड्स को जनता के सामने रखें। आयोग ने कहा था कि आपराधिक मामलों के आरोपी उम्मीदवार वोटिंग से पहले 3 बार न्यूज चैनल्स, अखबारों और मीडिया के अन्य माध्यमों के जरिए अपने किए गए या आरोपित आपराधिक मामलों को दर्शाना होगा उन्हें सार्वजनिक करना होगा। यही नहीं राजनीतिक पार्टियों को अपनी आधिकारिक वेबसाइट पर भी अपराधों में लिप्त होने के आरोपी उम्मीदवारों की सूची डालनी होगी। इलके अलावा आपराधिक मामलों के दर्ज होने के बावजूद उन्हें क्यों उम्मीदवार बनाया गया है इसका कारण भी देना होगा।
लेकिन इन सबके बावजूद कोई भी पार्टी इन आदेशों का पालन करती दूर दूर तक नजर नहीं आ रही है। हैरानी की बात यह है कि जो लोग खुद इतने गंभीर अपराधों में लिप्त हैं वे लोकतंत्र की रक्षा करने की बात करने की डींगे मारते हैं और देश को अपराधों से मुक्त कराने की बात करते हैं।
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