Rajasthan Assembly Election 2023: समय के साथ ही चुनाव पर लगातार खर्चा बढ़ता जा रहा है। आज के समय में चुनाव आयोग के लिए निष्पक्ष और सुचारु ढंग से चुनाव कराना महंगा हो गया है। आजादी के बाद से राजस्थान में 14 बार विधानसभा चुनाव हो चुके हैं और इस साल 15वीं बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं।
इन विधानसभा चुनावों की शुरुआत के बाद से, मतदाताओं की संख्या में 5 गुना वृद्धि हुई है, लेकिन इन मतदाताओं द्वारा हर बार विधानसभा चुनावों में वोट डालने पर होने वाला खर्च इन 56 वर्षों में 92 गुना बढ़ गया है।
समय के साथ लगातार बढ़ रहा चुनावी खर्च
दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत को कहा जाता है और यहां चुनाव कराना अपने आप में किसी चुनौती से कम नहीं है। केवल व्यवस्था की दृष्टि से ही नहीं अपितु व्यय की दृष्टि से भी। और खर्च का ये आंकड़ा लगातार बढ़ता साल दर साल बढ़ता जा रहा है। आजादी के बाद से राजस्थान में 14 बार विधानसभा चुनाव हुए हैं।
इस साल 15वीं बार विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। इन विधानसभा चुनावों की शुरुआत से लेकर अब तक की स्थिति पर नजर डालें तो मतदाताओं की संख्या में 5 गुना तक बढ़ोतरी हुई है। लेकिन, हर बार विधानसभा चुनावों में वोट डालने पर इन मतदाताओं का खर्च इन 56 वर्षों में 92 गुना बढ़ गया है।
मतदाताओं की संख्या से हुई 5 गुना की बढ़ोत्तरी
जानकारों की मानें तो इस बार विधानसभा चुनाव में एक वोट डालने का खर्च 51 रुपये तक हो जाएगा। चुनाव आयोग द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट पर नजर डालें तो 1962 में जब राजस्थान में विधानसभा चुनाव हुए थे तो राज्य में 1 करोड़ 3 लाख से ज्यादा वोटर थे। 176 विधानसभा सीटों के लिए हुए इन चुनावों में चुनाव आयोग को कुल 48 लाख रुपये का खर्च आया था।
उस समय एक मतदाता को वोट डालने का औसत खर्च 50 पैसे यानी 0.46 पैसे से भी कम आता था। लेकिन, 56 साल बाद यानी 2018 में जब विधानसभा चुनाव हुए तो यही खर्च 92 गुना बढ़कर 42.53 रुपये प्रति वोटर हो गया। इन 56 वर्षों में मतदाताओं की संख्या में लगभग 3 गुना बढ़ गई और विधानसभा सीटें 176 से बढ़कर 200 हो गईं।
निर्वाचन विभाग के आंकड़ों का आकलन
निर्वाचन विभाग के आंकड़ों पर नजर डाले तो हर पांच साल में विधानसभा चुनाव का खर्च लगातार बढ़ता जा रहा है। इसे देखते हुए अनुमान लगाया जा रहा है कि इस बार एक वोटर पर खर्च 51 रुपये तक आ सकता है। 2013 से 2018 तक प्रति वोटर खर्च करीब 20 फीसदी बढ़ गया है। इसी तरह 2008 के बाद जब 2013 में वोटिंग हुई तो प्रति वोटर खर्च दोगुना से भी ज्यादा हो गया।
2008 में, प्रति मतदाता औसत खर्च 15.34 रुपये था, जो 2013 में बढ़कर 35.27 रुपये हो गया। जब 2018 में राजस्थान में आखिरी विधानसभा चुनाव हुए, तो पूरे चुनाव की लागत 203.27 करोड़ रुपये थी, जबकि 2013 के चुनावों में, आयोग को 144 करोड़ रुपये खर्च करने पड़े। 2008 तक विधानसभा चुनावों पर खर्च 100 करोड़ रुपये से भी कम था।