Sachin Pilot : AAP के साथ पायलट ने लगाई झाड़ू… तो साफ हो जाएगी सियासत की पुरानी तस्वीर…ये है पूरा खेल 

राजस्थान की सियासत इस समय हिचकोले खा रही है। साल 2020 के बाद रह-रह कर बगावत का सुर अलाप रहे (Sachin Pilot) सचिन पायलट ने एक…

Sachin Pilot

राजस्थान की सियासत इस समय हिचकोले खा रही है। साल 2020 के बाद रह-रह कर बगावत का सुर अलाप रहे (Sachin Pilot) सचिन पायलट ने एक बार फिर अपनी ही सरकार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है। जिससे सूबे ही नहीं पूरे देश की सियासत में यह चर्चा जोरों पर है कि क्या अब सचिन पायलट कांग्रेस पार्टी छोड़ने का मन बना चुके हैं और अगर उन्होंने फैसला कर ही लिया है तो उनका अगला कदम क्या होगा ? 

क्या वे बेनीवाल के ऑफर को एक्सेप्ट करेंगे या फिर आम आदमी पार्टी के साथ झाड़ू लगाएंगे? कमल के साथ जाने का तो सवाल ही नहीं उठता।

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पायलट का जनाधार आप के साथ !

अगर सचिन पायलट (Sachin Pilot) आम आदमी पार्टी के साथ हाथ मिलाते हैं तो फिर राजस्थान की सियासत दो पार्टियों से छिटककर तीसरी पार्टी के साथ जा सकती है। क्योंकि यह तो सर्वविदित है कि सचिन पायलट खुद का जनाधार रखते हैं और इसका पूरा फायदा आम आदमी पार्टी उठा सकेगी। इसलिए आम आदमी पार्टी ने अपनी ही तरफ से सचिन पायलट को साथ आने का न्योता देती रहती है। 

चुनाव के लिए बेहद कमजोर है आप 

वर्तमान में अगर आम आदमी पार्टी के हालातों की बात करें तो स्थिति कुछ ठीक नहीं है। क्योंकि राजस्थान की राजनीति आप के लिए पंजाब, दिल्ली से बेहद अलहदा है। यहां जातीय समीकरणों को साधना बेहद मुश्किल है और इन्हीं पर यहां की राजनीति टिकी हुई है। जिसने इन जातियों का खेल समझ लिया उसने राजस्थान के राजनीति के गगनचुंबी किले फतेह कर लिए। इन्हें भाजपा और कांग्रेस सालों से समझ रही है और सत्ता में आ रही हैं लेकिन आम आदमी पार्टी के लिए यहां पर पांव जमाना बेहद मुश्किल है। 

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2018 में 180 सीटों पर चुनाव लड़ा, जमानत तक नहीं बचा पाए प्रत्याशी 

अगर पिछले विधानसभा  चुनाव यानी 2018 के बात करें तो आम आदमी पार्टी ने 180 सीटों पर चुनाव लड़ा था लेकिन उनमें से एक भी उम्मीदवार नहीं जीता था। यहां तक कि इनमें से कई लोग तो अपनी जमानत तक नहीं बचा पाए थे। पिछली बार पार्टी की समस्या थी कि उसने कोई मजबूत चेहरा नहीं था। जिसके दम पर वो चुनाव में भाजपा और कांग्रेस से टक्कर ले सके।

दूसरी सबसे बड़ी समस्या यह है कि आम आदमी पार्टी का विस्तार अभी इतना नहीं हुआ है ना ही वह इतनी मजबूत है कि इतने बड़े प्रदेश में सालों से बनी परिपाटी को तोड़ सके। पंजाब एक अपवाद हो सकता है लेकिन अगर गौर करें तो चुनाव के दौरान पंजाब के राजनीतिक समीकरण अलग थे और राजस्थान के अलग।

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पिछली बार से थोड़ी ज्यादा हुई एक्टिव 

हालांकि इस बार पार्टी पिछली बार से थोड़ी ज्यादा एक्टिव नजर आ रही है। राजस्थान के हर एक मुद्दों पर उसके बयान आते हैं। सरकार को घेरने की बात कही जाती है। अरविंद केजरीवाल समय-समय पर यहां दौरे करते ही रहते हैं। हाल ही में तिरंगा यात्रा भी निकाली गई थी, उन्होंने मोदी के खिलाफ घेराबंदी कर बीजेपी को साधने की कोशिश की थी लेकिन कांग्रेस के खिलाफ अभी उसके पास कोई तोड़ नहीं है। 

मोदी हटाओ देश बचाओ के पोस्टर अरविंद केजरीवाल दिल्ली में ही नहीं राजस्थान में भी लगवा रहे हैं। हाल ही में राजस्थान में इनके पोस्टरों का विमोचन हुआ और जगह-जगह पोस्टर लगाए गए।

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200 सीटों पर चुनाव..Sachin Pilot के साथ आने से मिलेगी मजबूती

आम आदमी पार्टी ने इस बार सभी 200 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने का ऐलान किया है और तीसरे विकल्प बनने की भी घोषणा की है, लेकिन वर्तमान के परिप्रेक्ष्य को देखते हुए ऐसा तो कहीं से नहीं लगता कि आम आदमी पार्टी तीसरा विकल्प बन सकती है लेकिन सचिन पायलट (Sachin Pilot) अगर आम आदमी पार्टी के साथ आते हैं तो आप के लिए रास्ता थोड़ा आसान हो सकता है। 

क्योंकि सचिन पायलट अपने आप में राजस्थान का एक चर्चित और मजबूत चेहरा हैं और आम आदमी पार्टी के पास चेहरे की ही कमी है, पायलट के आप के साथ आने पर पायलट का जनाधार आम आदमी पार्टी को फायदा पहुंचाएगा। जिससे उसकी सीटें बढ़ने की संभावना है।

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जिसने समझी जातीय पेचीदगियां, सत्ता उसी की 

क्योंकि अगर इसके जातिगत समीकरण पर जाएं तो राजस्थान में 6% हिस्सेदारी गुर्जर समुदाय की है। 5% वोट गुर्जर समाज से आते हैं। संख्या में देखे तो करीब 60 लाख से ज्यादा गुर्जर समाज के लोग राजस्थान में है। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि गुर्जर वोट भाजपा का मूल वोट माना जाता था, इसी मूल बोर्ड को भाजपा से छीनने के लिए कांग्रेस ने सचिन पायलट को मुख्य चेहरा बनाया है।

गुर्जरों का मिलेगा समर्थन !

 सचिन पायलट के चलते ही गुर्जर वोट कांग्रेस की तरफ आए हैं और यह बात भी सर्वविदित है कि गुर्जर समाज आए दिन अपने समाज के मुख्यमंत्री की मांग करता रहा है और अपने समाज की राजनीति में हिस्सेदारी बढ़ाने की भी मांग उठाता रहा है। राजस्थान की 35 विधानसभा सीटों पर गुर्जर वोटबैंक हार-जीत तय करता है। गुर्जर बाहुल्य जिलों में सवाई माधोपुर, जयपुर, टोंक, करौली, कोटा, दौसा, भरतपुर, धौलपुर, भीलवाड़ा, बूंदी , अजमेर, झुंझुनू आते हैं। ऐसे में पायलट अगर आम आदमी पार्टी के साथ झाड़ू लगाते हैं तो फिर यह आप के लिए फायदे का सौदा साबित हो सकता है, राजस्थान की सिय़ासत की पूरी तस्वीर ही साफ हो सकती है। 

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