प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का छह दिवसीय झालावाड़ दौरा पूरा हो चुका है। इन 6 दिनों में वसुंधरा ने झालावाड़ के हर क्षेत्र को कवर किया। उन्होंने यहां पर हर समुदाय के बीच अपनी उपस्थिति दर्ज कराई। अलग-अलग समाजों के सामूहिक विवाह समारोह में शामिल होकर वसुंधरा ने यह तो साबित कर दिया है कि वह हर जात-समुदाय के लिए कितनी महत्वपूर्ण रखती है।
हर कौम की पसंद वसुंधरा
कई राजनीतिक विश्लेषक कहते हैं कि वसुंधरा राजे 36 कॉम की नेता हैं। हर जाति, हर समाज उन्हें पसंद करता है। पूरे राजस्थान में एक अकेली नेता वसुंधरा राजे ही है जो हर समुदाय पसंद हैं। इसलिए भाजपा उन्हें सीएम के रूप में आगे ला सकती है। हालांकि यह तो बाद की बात होगी लेकिन उससे पहले बात झालावाड़ की बात करते हैं कि यहां पर वसुंधरा राजे ने कई महीनों के बाद ताबड़तोड़ दौरे किए और इन 6 दिनों में ही उन्होंने अपनी ताकत सिर्फ विरोधी पार्टी को ही नहीं बल्कि खुद की पार्टी को भी एहसास करा दिया। सबसे अहम बात यह है कि इस दौरे के दौरान वसुंधरा का मकसद सिर्फ एक था कि वे इस साल 2023 के चुनाव में कांग्रेस को पटखनी देकर भाजपा की सत्ता बनाने की पर जोर देती रहीं। यहां पर उन्होंने कार्यक्रम में कहा था कि अब सिर्फ 6 महीने ही बाकी है 2003 और 2013 जैसा विकास फिर से झालावाड़ में होगा।
वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) का झालावाड़ उन का गढ़ माना जाता है। जब से वसुंधरा राजे ने झालावाड़ को निर्वाचन क्षेत्र चुना है तब से यह क्षेत्र जैसे इनका ही होकर रह गया है। अपने क्षेत्र के लोगों से वसुंधरा एक परिवार की तरह मिलीं। वह समुदायों के वैवाहिक समारोह में यह भी कहती सुनाई दी कि हम तो समधियाने से हैं.. हमारा तो यहां हक है। फिर चाहे वह गुर्जर समाज हो, मेहर समाज हो, चाहे मीणा समाज हो। सिर्फ 6 दिन के दौरे पर ही वसुंधरा राजे की ताकत का भान सत्ता पक्ष को भी हो गया है कि राज्य आज भी राजस्थान की जनता के बीच उतनी ही लोकप्रिय हैं जितनी वह अपने मुख्यमंत्री दौर में हुआ करती थीं। वसुंधरा राजे के स्वागत के लिए आई भीड़ को देखकर साफ लगता है कि वसुंधरा आज भी जनता के दिलों में रहती हैं।
Vasundhara Raje की सियासत के समीकरण
आदिवासी कौम की बात करें तो प्रदेश के 8 जिलों में 25 आदिवासी सीटें हैं। अभी इन सीटों में 13 कांग्रेस के पास है और 8 भाजपा के पास है। भाजपा इस अंतर को कम करने की जुगत में है। क्यों कि इन 8 जिलों में आदिवासी जनसंख्या का आंकड़ा कुल जनसंख्या का 70.42 प्रतिशत है। इसलिए यह वर्ग दोनों ही पार्टियों कांग्रेस और भाजपा के लिए बेहद जरूरी है। वसुंधरा राजे के जरिए यह लक्ष्य हासिल किया जा सके। क्योंकि इन सीटों वाले क्षेत्रों का वसुंधरा राजे का अच्छा खासा प्रभाव माना जाता है।
अब अगर राजपूतों की बात करें तो राजस्थान में राजपूतों की संख्या पूरी जनसंख्या का 8 से 10 प्रतिशत है। पश्चिमी राजस्थान के इलाकों में आज भी राजपूतों का जबरदस्त दबदबा है। राजपूत विधायक और सांसद और विधायक राजस्थान की राजनीति में करीब 12 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखते हैं। अगर विधानसभा के नजरिए से देखें तो पाएंगे कि प्रदेश की 200 विस सीटों पर 20 से 22 विधायक राजपूत वर्ग के होते हैं। वहीं लोकसभा में भी 25 से में कम से कम 4 सीट पर राजपूत अपना प्रभाव रखते हैं। एक सर्वे के मुताबिक पूरे राजस्थान के वोटबैंक में 70 प्रतिशत का हिस्सा भाजपा से सीधे तौर पर जुड़ा है। इसलिए वसुंधरा के लिए राजपूतों को फिर से साधना एक बड़ी चुनौती के रूप में देखा जा रहा है।
वसुंधरा राजे को लंबा राजनीतिक अनुभव रहा है। वे राजस्थान की दो बार सीएम रह चुकी हैं। झालावाड़ से 5 बार लोकसभा सांसद और झालावाड़ के झालरापाटन से 4 बार विधायक की विधायक हैं। झालावाड़ एक तरह से उनका गढ़ माना जाता है। राजे भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भी रही हैं। जो पद पहले सतीश पूनिया और अब सीपी जोशी संभाल रहे हैं।
वसुंधरा राजे (Vasundhara Raje) को दबंग नेता के रूप में जाना जाता है, उनके तेवरों के आगे हाईकमान तक को झुकना पड़ता है ऐसा कई मौकों पर देखा भी गया है। वसुंधरा की राजनीतिक छवि और अनुभव के आगे प्रदेश में कोई टिक नहीं टिकता, हालांकि विपक्षी दल जरूर आए दिन उन पर हमले बोलते रहते हैं, RLP अध्यक्ष और नागौर सासंद हनुमान बेनीवाल ने तो यहां तक कह दिया कि वसुंधरा राजे को बीकानेर कोई नहीं बुलाता वो खुद ही किसी नेता को श्रद्धांजलि देने के बहाने यहां आ जाती है। बहरहाल वसुंधरा राजे को इन बातों से शायद कोई फर्क नहीं पड़ता। साल 2003 के बाद प्रदेश में भाजपा की दोबारा 2008 में प्रचंड बहुमत से वापसी हुई थी। इस जीत से उनके विरोधियों ने भी राजे की इस जीत पर सोचने को मजबूर कर दिया था।