(निरंजन चौधरी): जयपुर। पुरातत्व विभाग के स्मारकों पर पिछले दिनों शुरू की गई ई-टिकटिंग में फर्जीवाड़े का बड़ा खेल चल रहा है। यहां स्मारकों पर टिकटों की जब सख्ती से जांच करवाई गई तो कई जगह एक ही सीरियल के चार टिकट तक मिल गए। इनमें एक असली और तीन नकली निकले। ‘सच बेधड़क’ ने टिकटिंग की शुरुआत से ही इसकी अव्यवस्थाओं पर सवाल उठाए थे, मगर अफसरों के नजरअंदाज करने की वजह से तीन सप्ताह से भी अधिक समय से यह फर्जीवाड़ा चलता रहा।
गौरतलब है कि पुरातत्व विभाग ने स्मारकों को प्राइवेट फर्म के लिए टिकट काटने के लिए दिया है, जिसके बदले फर्म प्रति पर्यटक दो रुपए ई-मित्र का चार्ज भी वसूल रही है, मगर इस फर्जीवाड़े के बाद इन फर्मों की नीयत पर अब सवाल उठता है। वहीं सवाल यह भी उठता है कि आखिर बिना किसी तैयारियों के ट्रायल के नाम पर यह सिस्टम किसकी शह पर चल रहा है। दूसरी तरफ पिछले दिनों कई स्मारकों पर औचक निरीक्षण किया गया, जहां टिकट काउंटर पर कैश और टिकट कटने की राशि में हजार रुपए से भी अधिक का अंतर मिला था।
Sach Bedhadak Exclusive : ऐसे चल रहा है फर्जीवाड़े का खेल
डीओआईटी की ओर से ई-टिकटिगं के लिए फर्मों को एक सॉफ्टवेयर उपलब्ध करवाया गया है, जहां से वे टिकट बनाकर प्रिंटर से प्रिंट कर सकते हैं। इस सॉफ्टवेयर में खामी है कि टिकट काटने के बाद यह ऑटोमैटिक नहीं होता, यहां से एक ही टिकट को कई बार प्रिंट किया जा सकता है। इसके अलावा फर्मों की ओर से स्मारकों पर कोई भी क्यूआर कोड स्कैनर मशीन नहीं लगाई है। स्मारकों पर लगाए गए टिकट चेकर टिकट को पंच कर देते हैं, मगर इसमें लगे सीरियल नंबर की जांच नहीं की जाती। हवामहल पर मिले चारों टिकटों का नंबर 18060 ही है।
इन फर्मों को मिला टिकटिंग का ठेका
राजधानी स्थित प्रत्येक स्मारक पर तीन फर्मों को ई-टिकटिंग का ठेका मिला था। इनमें अक्ष ऑप्टिफायबर लिमिटेड कं पनी के अलावा एसवीजी और रमन ट्रेडर्स शामिल हैं। इन फर्मों की ओर से स्मारकों पर बनी टिकट खिड़की पर अपना कम्प्यूटर और प्रिंटर लगाया गया। फर्मों को इसके बदले प्रति टिकट दो रुपए का ई-मित्र चार्ज दिया जाएगा। इनकी ओर से 8 मई को ट्रायल शुरू किया गया था। इनकी तरफ से पर्यटकों को ई-टिकट दिया जा रहा है।
क्यूआर कोड स्कैन मशीन की नहीं है सुविधा
डीओआईटी ने जब सॉफ्टवेयर बनाकर विभाग को दिया तो टिकट चेक करने के लिए क्यूआर कोड मशीन से जांच की अनिवार्यता को रखा गया। इसके अलावा टिकटिंग केट्रायल की शुरुआत से ही सभी स्मारकों के अधीक्षकों ने इसकी खामियों को बताया था, मगर तीन सप्ताह के बाद भी फर्मों की ओर से न तो किसी भी बात पर गौर किया गया और ना ही यहां व्यवस्थाओं में बदलाव किया गया। इधर एक महीना बीतने को है मगर स्मारकों पर लगाए गए ई-टिकट के काउंटर्स पर अभी तक कं पोजिट टिकट की कोई व्यवस्था नहीं है।
पहले भी कई मामले हो चुके हैं उजागर
इस खुलासे के बाद चिड़ियाघर और हाथी गांव की टिकटिंग व्यवस्था पर भी सवाल उठन लगे हैं। यहां भी टिकट चेक करने के लिए न तो क्यूआर कोड मशीन लगी है और ना ही और कोई व्यवस्था है। पिछल देिनों यहां कई ऐसे मामल सामने आए थे, जहां गार्ड और टिकट काउंटर की मिलीभगत से एक ही टिकट को कई बार कॉपी पेस्ट करके बेचा गया।