Right To Health Bill: जयुपर। राजस्थान विधानसभा में 21 मार्च को राइट-टू-हेल्थ बिल पारित किया जाएगा। बिल के विरोध में एक बार फिर प्राइवेट हॉस्टिपल एंड नर्सिंग होम सोसाइटी ने गुरुवार को बंद का ऐलान किया था, यह बंद बेअसर रहा। इसका मरीजों को कोई खास समस्या का सामना नहीं करना पड़ा। प्रदेश के 7 हजार से ज्यादा निजी अस्पतालाें ने बदं को समर्थन नहीं दिया। वहीं, बिल के विरोध में प्रदेश के करीब एक हजार अस्पताल अभी भी अड़े हैं। हालांकि, इनमें अधिकत्तर अस्पताल 50 बेड से कम वाले हैं। इनमें इमरजेंसी से लेकर ओपीडी सेवाएं बंद रही। यहां से जिन मरीजों को लौटाया गया, वो दूसरे अस्पताल में चले गए। बंद के दौरान जयपुर में अधिकांश निजी अस्पताल खुले रहे। मरीजों को इमरजेंसी से लेकर ओपीडी, आईपीडी में इलाज मिला। अलबत्ता, इस दिन फिर ऑपरेशन तय थे, वह जरूर टल गए। उनके लिए आगे की डेट दे दी गई।
विरोध वाले अस्पताल में इलाज नहीं
बिल का विरोध करने वाले अस्पतालों में शुक्रवार से आरजीएचएस, चिरंजीवी योजना में इलाज की सुविधा बंद कर दी गई है। सरकारी योजनाओं के तहत ओपीडी और आईपीडी में इलाज की सुविधा नहीं दी जाएगी। ऐसे में आमजन को निशुल्क इलाज की सुविधा नहीं मिल पाएगी। हालांकि इस निर्णय को सिर्फ एक संगठन प्राइवेट हॉस्टिपल एंड नर्सिंग होम सोसाइटी का ही समर्थन मिला है।
विसंगतियां दूर होने के बाद विराेध गलत
स्टेट जॉइंट एक्शन कमेटी की ओर से पीएचएनएस बंद को गलत ठहराया गया। कमेटी के चेयरमैन डॉ. सुनील चुग ने कहा कि राइट-टू-हेल्थ बिल की सभी विसंगतियों को दूर कर लिया गया है। ऐसे में निजी अस्पतालों के बंद का कोई औचित्य नहीं है। कमेटी के मीडिया स्पोक्स पर्सन डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि जब सरकार ने हमारी सभी मांगें मान ली हैं तो अब विरोध का कोई सवाल ही नहीं उठता है।
संशोधन के बाद भी बिल मंजूर नहीं: पीएचएनएस
बिल के विरोध को लेकर निजी अस्पतालों के चिकित्सक संगठन दो धड़ों में बंटे हुए नजर आ रहे हैं। पहले बिल में जिन बिंदुओं को लेकर चिकित्सकों का विरोध था, उनका संशोधन करते हुए सरकार ने चिकित्सक संगठनों की बनाई गई जॉइंट एक्शन कमेटी की मांग पूरी कर दी। वहीं, पीएचएनएस के सचिव डॉ. विजय कपूर ने कहा कि हमें पहले भी यह बिल मंजूर नहीं था और अब भी नहीं हैं। हम आगे भी मंजूर नहीं करेंगे। इसके साथ ही बंद बुलाने वाले संगठन पीएचएनएस के सचिव कपूर का दावा है कि प्रदेश के करीब 1800 अस्पताल सरकारी योजना के बायकॉट के समर्थन में और बिल के विरोध में हैं।