Rajasthan Election 2023 : जोधपुर महाराजा हनवंतसिंह ने अपने एक नारे “मैं थासूं दूर नहीं” से चुनावी माहौल को बदल दिया था और राजतंत्र से लोकतंत्र में प्रवेश के अपने पहले चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी। लेकिन वे अपनी जीत देख नहीं पाए, चुनाव परिणाम के दिन ही विमान दुर्घटना में उनका निधन हो गया। अब आगे फिर गिरदीकोटअब पात्र बदल गए थे। सभा मंच पर हनवंत सिंह की जीवन संगिनी कृष्णाकुमारी जन सैलाब से रू-ब-रू थी। गुजरात के ध्रांगध्रा राजपरिवार की राजकुमारी कृष्णा परदे से बाहर सम्भवतः पहली बार सार्वजनिक सभा में आई थी । इस परिदृश्य की पृष्ठभूमि जानने के लिए हमे लेखक पत्रकार अयोध्या प्रसाद गौड़ द्वारा महारानी कृष्णाकुमारी की रोमांचक गाथा ‘द रॉयल ब्लू’ के पन्ने पलटने होंगे। वर्ष 1971 में पांचवे लोकसभा चुनाव की सरगर्मी बढ़ गई थी।
पहले लोकसभा चुनाव सभा में नेहरू की धमकी को उनकी बेटी तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने राजा-महाराजाओं के प्रिवीपर्स बंद करके पूरा किया था। पाकिस्तान से बंगला देश को पृथक करने वाली इंदिरा आयरन लेडी के अवतार में शासन सत्ता एवं कंग्रेस पार्टी संगठन पर अपना प्रभुत्व जमा चुकी थी। इस परिवेश में जोधपुर के उम्मेद पैलेस में गंभीर मंत्रणा का दौर चल रहा था।
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ये विश्वासघात है। हम सभी से जो वायदे नेहरू और पटेल ने किए थे ये उससे बिलकुल विपरीत है। लोकतंत्र और एकीकरण करण के नाम पर पहले ही प्रजा को ठगा गया। टैक्स बेतहाशा बढ़ा दिए गए और अब हम …! कांग्रेस इस तरीके से हम सभी को सड़क पर लाने की साजिश कर रही है।” राजदादी बदन कुंवर ने अपने विश्वासपात्रों से बातचीत के दौरान चिंता प्रकट की। एक सरदार ने अन्य प्रदेशों के राजाओं के रोष की बात कही तो दूसरे सरदार ने स्वर्गीय हनवंत सिंह की बात याद दिलाई कि अगर राजा महाराजाओं को अपनी शक्ति, अपना अस्तित्व बनाए रखना है तो जनता की वोटों की ताकत से ही अपने आपको पुनर्जीवित करना होगा। क्रमश…
सास के आदेश पर चुनाव में उतरी थीं कृष्णाकुमारी
राजदादी ने मारवाड़ में सबसे प्रतिष्ठा की सीट जोधपुर पर कांग्रेस को चुनौती देने पर बल दिया- “लेकिन मम्मा हमारे पास कहां है उम्मीदवार जो कांग्रेस की आंधी का मुकाबला कर सके ।” राजमाता कृ ष्णाकु मारी ने स्वाभाविक प्रश्न किया। “तुम। तुम लड़ोगी इस बार का चुनाव। उस सीट से जहां हनवंत सिंह जीते, पर अपनी जीत देख नहीं पाए। तैयार हो जाओ उस सपने को पूरा करने के लिए। हमे गिरदीकोट में एक आमसभा करनी होगी। राजपूतनियां हर चुनौती के लिए तैयार रहती हैं। तुम्हे उस सभा में भाषण देना होगा।” अपनी सास को निर्णय सुन कृ ष्णाकु मारी ने गरदन घुमाई तो सामने दीवार पर मुस्करा रहे हनवंत सिंह की तस्वीर नजर आई। उसी गिरदीकोट में कोलाहल के बीच स्नेह से सिंचित जन सैलाब से जो प्रश्न कृ ष्णा कु मारी ने पूछा, वही चुनाव में उनका नारा बना।
आव्हान के बीच सवाल किया- समय बदलने से क्या संबंध बदल जाते हैं…! लाखों हाथ उठे – नहीं, नहीं, नहीं बदलते संबंध और जय-जय के नारों से हवा में उठ गए। गुड़गांव की सीट से नवाब मंसूर अली खां पटौदी सहित देश के अधिकांश हिस्सों में पूर्व राजघरानों के उम्मीदवार हार गए। लेकिन इंदिरा कांग्रेस की आंधी में मेहरानगढ शान से इठलाया।
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हासिल किए थे 51.22% वोट
अब आंकड़ों पर गौर करें। राजस्थान से निर्वाचित दो निर्दलीयों में कृ ष्णाकु मारी ने कांग्रेस के आनंद सिंह कच्छवाह को 21497 मतों से पराजित किया। उन्हें कु ल मतदान का 51.22 प्रतिशत हिस्सा मिला। उनके पति हनवंतसिंह 28.02 प्रतिशत मत लेकर विजयी हुए थे। उन्होंने बंबई के बेरिस्टर नूरी मोहम्मद यासीन का हराया।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार