Rajasthan Assembly Election 2023: गुलाबी नगर जयपुर के बुजुर्ग मतदाताओं को राजस्थान से लोकसभा में प्रथम महिला सदस्य के रूप में तत्कालीन राजपरिवार की महारानी गायत्री देवी के विशाल विजयी जुलूस का साक्षी बनने का अवसर मिला होगा। स्वाधीनता प्राप्ति के पश्चात भारत में 1967 में तीसरा आम चुनाव था जिसमे लोकसभा एवं विधानसभा के चुनाव एक साथ कराए गए थे। स्वतंत्र पार्टी के माध्यम से चुनावी राजनीति में सम्मिलित होने का गायत्री देवी के लिए यह पहला अवसर था जिसमे उन्हें शानदार सफलता मिली। इससे उत्साहित होकर उन्होंने लगातार दो चुनाव जीतकर तिकड़ी बनाई।
लेकिन अगला चुनावी चौका लगाने से पहले गायत्री देवी और उनके परिवारजनों को आयकर छापे की प्रक्रिया व जेल की सलाखों के पीछे समय व्यतीत करना पड़ा। संयोगवश तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और गायत्री देवी शांति निकेतन में साथसाथ अध्ययन कर चुकी थी। स्वाधीन भारत के प्रथम भारतीय गवर्नर जनरल एवं राजा जी नाम से चर्चित चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य ने स्वतंत्र पार्टी की स्थापना के लिए पहल की। उनके सहयोगियों को देश भर से अच्छा समर्थन मिला। राजा-महाराजाओं के अलावा समाज के प्रतिष्ठित हस्तियों सहित प्रमुख बुद्धिजीवी नई पार्टी के प्रति आकर्षित हुए।
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देशी रियासतों के एकीकरण की प्रक्रिया में 7 अप्रैल 1949 से 31 अक्टूबर 1956 तक राज्य के संवैधानिक प्रमुख जयपुर के पूर्व महाराजा मानसिंह की सहमति से उनकी पत्नी महारानी गायत्री देवी ने स्वतंत्र पार्टी की सदस्यता ली। गायत्री देवी के विजयी जुलूस की पृष्ठभूमि जानने के लिए हमे कुछ पीछे लौटना होगा। स्वतंत्र पार्टी प्रत्याशी बनने से पहले और चुनावी जीत दर्ज करने से पहले गायत्री देवी को शहर परकोटे से लगते रामलीला मैदानतथा सिटी पैलेस गोविंददेवजी मंदिर के निकटवर्ती चौगान स्टेडियम का सफर तय करना पड़ा।
स्वतंत्र पार्टी के संस्थापक राजा जी के जयपुर आगमन पर रामलीला मैदान में सभा आयोजित की गई। इस सभा में राजा जी का परिचय गायत्री देवी ने कराया। जनसमूह के सामने उनका यह प्रथम और संक्षिप्त संबोधन था। अगले वर्ष 1962 में लोकसभा चुनाव की घंटी बज गई और गायत्री देवी को जयपुर संसदीय क्षेत्र से उम्मीदवार बनाया गया। अपनी जीत के साथ उन
पर पुराने जयपुर राज्य की सीकर-झुंझुनू, दौसा और सवाई माधोपुर संसदीय क्षेत्र एवं संबंधित 50 विधानसभा सीटों पर पार्टी प्रत्याशियों के प्रचार एवं उन्हें विजयी बनाने की भी जिम्मेदारी थी। गायत्री देवी ने इस उत्तरदायित्व को भली भांति निभाया। पांच में से तीन सीटों पर सफलता मिली। जयपुर में चुनाव प्रचार की आखिरी सभा चौगान स्टेडियम पर थी जिसे गायत्री देवी के साथ महाराजा मान सिंह ने भी संबोधित किया।
गिनीज बुक में दर्ज हुई थी रिकॉर्ड जीत
मतदान को अपने पक्ष में लाने के लिए स्वतंत्र पार्टी के चुनाव चिन्ह ‘तारा’ को मतदाताओं के दिलो दिमाग तक पहुंचाने के लिए गायत्री देवी और उनके समर्थकों को कड़ी मशक्कत करनी पड़ी। मतदाताओं को भ्रमित करने के लिए गायत्री देवी पत्नी कृ ष्णचन्द्र को प्रत्याशी बनाया गया। मतगणना में बढ़त लेने वाली गायत्री देवी को 1 लाख 92 हजार 909 (77.08 प्रतिशत) वोट मिले। प्रतिद्वंदी कांग्रेस की शारदा देवी को मात्र 39 हजार 217 मत प्राप्त हुए।
एक अन्य गायत्री देवी को के वल 2141 वोट मिले। कु ल 21 उम्मीदवार थे जिनमें गायत्री देवी की जीत हुई और सभी की जमानत जब्त हुई। देश में सर्वाधिक बहुमत से मिली इस सफलता को गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्जकिया गया। जुलूस विभिन्न मार्गों से होते हुए गोविंददेवजी के मंदिर पहुंचा। सिटी पैलेस के बाहर त्रिपोलिया द्वार पर महाराजा मानसिंह ने विजयी जुलूस का स्वागत कर सिक्कों की बौछार की।
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राजपरिवार के 3 सदस्यों को मिली थी जीत राज परिवार के लिए चुनावी जीत की तिगुनी खुशी थी। सवाई मानसिंह के पुत्र पृथ्वीराज ने दौसा संसदीय क्षेत्र में कांग्रेस के नारायण सिंह को 1 लाख 52 हजार 902 वोटों के मुकाबले 89 हजार 696 मतों से पराजित किया। वहीं पुत्र जयसिंह ने मालपुरा विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के दिग्गज नेता गृहमंत्री दामोदर लाल व्यास को हराया। भारतीय राजनीति में ‘ब्यूटी विद ब्रेन’ के रूप में प्रसिद्ध गायत्री देवी ने 1967 में नेताजी सुभाषचन्द्र बोस के सहयोगी डॉ. कर्नल राजमल कासलीवाल को 60 प्रतिशत एवं 1977 में कांग्रेस प्रत्याशी पी के चंदेरी को 56.09 प्रतिशत वोट लेकर परास्त किया। बाद में वह चुनावी राजनीति के प्रति उदासीन हो गई।
गुलाब बत्रा, वरिष्ठ पत्रकार