Rajasthan Election 2023: जयपुर। राजस्थान कांग्रेस में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बाद सबसे बड़ा चेहरा निर्विवाद रूप से पूर्व उपमुख्यमंत्री व पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सचिन पायलट हैं। कांग्रेस में पिछली सरकार के कार्यकाल में हुए सचिन पायलट से जुड़े घटनाक्रमों और बाद में उनके अचानक शांत हो जाने के बाद उन्हें कांग्रेस की सरकार बनने की स्थिति में मुख्यमंत्री का भी प्रबल दावेदार माना जा रहा है। प्रदेश में चुनाव प्रचार में वे सक्रिय भी हैं। लेकिन पूर्वी राजस्थान, जहां से लड़कर पायलट विधानसभा पहुंचे, वहां चुनाव प्रचार भी उनके चेहरे पर ही टिका हुआ है।
पूर्वी राजस्थान में गुर्जर मतदाताओं का बाहुल्य है और दोनों ही पार्टियां गुर्जरों को साधने के लिए पायलट के चेहरे का सहारा ले रही हैं। कांग्रेस जहां पायलट के नाम पर गूर्जरों का ध्रुवीकरण करने में जुटी है वहीं भाजपा पायलट को ‘विक्टिम’ साबित कर सहानुभूति के नाम पर गुर्जर वोटों पर डोरे डाल रही है। पूरे प्रदेश की बात करें तो भरतपुर, धौलपुर, अलवर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा, टोंक, भीलवाड़ा, अजमेर, झालावाड़, बारां और कोटा जिले में गुर्जर मतदाता बहुलता में हैं। इन सीटों पर गुर्जर समाज पर पायलट फैक्टर किस तरह काम करेगा यह देखने वाली बात होगी।
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वर्तमान में कांग्रेस विधायक दल में आठ विधायक गुर्जर समाज के हैं। इनमें डॉ. जितेंद्र सिंह, जोगिंदर सिंह अवाना, अशोक चांदना, शकुंतला रावत और राजेंद्र सिंह बिधूडी पहले भी जीत चुके हैं। अपने- अपने क्षेत्र में अच्छा दबदबा रखते हैं लेकिन ये सचिन पायलट के साथ नहीं हैं। शेष तीन विधायकों में सचिन पायलट खुद, जीआर खटाना और इंद्राज गुर्जर हैं। खटाना और इंद्राज को पायलट के बूते ही टिकट मिला था। पूर्वी राजस्थान की दो प्रमुख सीट टोंक व सवाई माधोपुर के भाजपा प्रत्याशियों के माध्यम से इस रणनीति को समझते हैं। पायलट खुद टोंक से चुनाव लड़ रहे हैं।
भाजपा की तीन ओर से घेरने की कोशिश
भाजपा ने कर्नल किरोड़ी बैंसला के बेटे विजय बैंसला को देवली-उनियारा से प्रत्याशी बनाया है। ऐसा करके भाजपा ने पायलट को गुर्जर कार्ड के नजरिए से टोंक तक ही सीमित करने का प्रयास किया है। इससे पहले दक्षिण दिल्ली से सांसद रमेश बिधूड़ी को टोंक जिले का प्रभारी बनाने का ऐलान किया गया था। साथ ही सांसद सुखबीर सिंह जौनापुरिया पहले ही यहां कैम्पेनिंग कर रहे हैं। भाजपा के इस तीन तरफा घेराव से पायलट की मुसीबतें बढ़ती हुई दिखाई देती हैं।
टोंक जिले के सियासी गणित पर नजर डालें तो 11 लाख मतदाताओं वाले इस क्षेत्र में जाट, गुर्जर, मीणा व अल्पसंख्यकों का बाहुल्य है। जिले की चार सीटों में गुर्जर मतदाताओं की तादाद बहुत ज्यादा है, जो जिले की चारों सीटों को प्रभावित करती है। 2013 और वर्ष 2018 में इसका प्रमाण भी देखने को मिला था। टोंक में करीब 35 हजार, देवली-उनियारा में करीब 60 हजार, निवाई-पीपलू में 40 हजार व मालपुरा-टोडारायसिंह में 38 हजार गुर्जर मतदाता हैं। भाजपा की रणनीति सचिन पायलट को टोंक में ही घेरकर राजस्थान की बाकी सीटों पर पायलट फैक्टर को खत्म करने की है।
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इस बार नहीं मिलेगा सीएम चेहरे का फायदा: मेहता
कांग्रेस नेता सचिन पायलट के साथ अपने विधानसभा चुनाव मुकाबले को ‘स्थानीय-बनाम-बाहरी’ लड़ाई के रूप में पेश करते हुए टोंक से भाजपा के उम्मीदवार अजीत सिंह मेहता का कहना है कि पायलट को इस बार मुख्यमंत्री पद के चेहरे का लाभ नहीं मिलेगा जो उन्हें 2018 में मिला था। मेहता 2013 से 2018 तक इस निर्वाचन क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। मेहता का कहना है कि पायलट एक ‘बाहरी व्यक्ति’ हैं जिन्होंने पिछली बार ‘मुख्यमंत्री पद का चेहरा’ होने का लाभ उठाते हुए बड़ी जीत हासिल की थी।
एक जनसभा के दौरान मेहता ने कहा कि पायलट के सामने पहली बार स्थानीय उम्मीदवार है। इस बार वे मुख्यमंत्री के चेहरे के रूप में नहीं बल्कि विधायक बनने के लिए लड़ रहे हैं। मेहता ने पायलट पर पिछले
पांच वर्षों में निर्वाचन क्षेत्र के लोगों के बीच नहीं रहने का भी आरोप लगाया।
पायलट के साथ विश्वासघात हुआ: किरोड़ी लाल मीणा
भाजपा सांसद व सवाई माधोपुर से प्रत्याशी किरोड़ी लाल मीणा का कहना है कि राजस्थान में गुर्जर समुदाय ने भाजपा में ‘घर वापसी’ की है क्योंकि उसके ‘वरिष्ठ नेता’ सचिन पायलट के साथ कांग्रेस ने विश्वासघात किया। कांग्स प्रत् रे याशी दानिश अबरार के खिलाफ ताल ठोक रहे भाजपा उम्मीदवार मीणा का कहना है कि इससे गुर्जर समुदाय ‘अपमानित’ महसूस कर रहा है क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने पायलट को अपशब्द कहे थे।
भाजपा द्वारा परीक्षा के प्रश्नपत्र लीक जैसे मुद्दों पर चलाए जा रहे अभियान में अग्रिम मोर्चे पर कमान संभाल रहे मीणा ने राजस्थान में कांग्रेस के शासनकाल में ‘अप्रत्याशित भ्रष्टाचार’ होने का दावा किया। मीणा का कहना है कि गुर्जर समाज के बड़े नेता पायलट को कांग्रेस ने पिछले चुनाव में मुख्यमंत्री बनाने का आश्वासन दिया था लेकिन उनके साथ विश्वासघात किया गया।