जयपुर। राजस्थान में एक बार फिर हर पांच साल में सरकार बदलने का ट्रेंड जारी है। पिछले 30 सालों से चला आ रहा रिवाज एक बार फिर कायम रहा। कांग्रेस के बाद बीजेपी की सत्ता में वापसी हो रही है। विधानसभा चुनाव में भाजपा बहुमत की ओर जाती दिख रही है। चुनाव आयोग के मुताबिक भाजपा 105 और कांग्रेस 73 सीटों पर आगे है, वहीं 14 सीटों पर अन्य उम्मीदवार आगे हैं। कांग्रेस ने प्रदेश में विकास कराने के बाद आखिर हार की क्या-क्या वजह रही हैं, आइए जानते है।
पेपर लीक पड़ा भारी…
राजस्थान में कांग्रेस की हार का सबसे बड़ा कारण पेपर लीक माना जा रहा है। क्योंकि भर्ती परीक्षाओं में पेपर लीक मामला बीजेपी ने चुनाव के दौरान इस मुद्दे को लेकर कांग्रेस को खूब घेरा। पेपर लीक को लेकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को युवाओं के गुस्से का शिकार होना पड़ा। बता दें कि पिछले पांच साल के सीएम गहलोत के कार्यकाल में कई परीक्षाओं के पेपर लीक के मामले सामने आए, जिसको लेकर बीजेपी ने गहलोत पर एक्शन ना लेने का आरोप भी लगाया। ये मुद्दा गहलोत सरकार के लिए भारी पड़ा।
महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अत्याचार…
राजस्थान के चुनाव में लॉ एंड ऑर्डर भी अहम मुद्दा रहा, महिलाओं के खिलाफ अपराध की कई घटनाएं सामने आई, जिसको लेकर बीजेपी ने कांग्रेस सरकार को घेरा। बीजेपी ने गहलोत सरकार पर महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर राज्य को नंबर वन पर बताया। यहां तक कि राहुल गांधी और प्रियंका गाधी को कुछ घटनाओं पर बयान नहीं देने की वजह से निशाने पर लिया।
लाल डायरी बना चुनावी मुद्दा…
कांग्रेस की हार का कारण लाल डायरी भी माना जा रहा है। राजस्थान के चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी ने ‘लाल डायरी’ कांग्रेस पर हमला बोला। वही, ‘लाल डायरी’ जिसके कुछ पन्नों को सार्वजनिक करके राजेंद्र गुढ़ा ने अपनी ही (कांग्रेस) सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था। राजस्थान के चुनाव से पहले कथित लाल डायरी के चार पन्ने सार्वजनिक कर उदयपुरवाटी विधायक राजेंद्र गुढ़ा ने राजस्थान की सियासत को गर्मा दिया था। अशोक गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल से बर्खास्त किए गए राजेंद्र गुढ़ा ने आरोप लगाया था कि इस (लाल) डायरी में गहलोत और दूसरे नेताओं के ‘अवैध लेनदेन’ का ब्यौरा दर्ज है। डायरी के कुछ पन्नों की कथित तस्वीर सोशल मीडिया पर भी वायरल हो गई थी।
पार्टी की आपस की सिर फुटव्वल…
राजस्थान में कांग्रेस की हार की एक बड़ी वजह पार्टी की आपसी कलह भी रही। कई नेता नाराज हुए, लेकिन गहलोत ने उन्हें सही तरीके से हैंडल नहीं किया। पार्टी के अंदर गुटबाजी और कई बागी नेताओं ने पार्टी का खेल बिगाड़ा। यहां तक कि कई नेताओं ने निर्दलीय चुनाव लड़ा तो कुछ को बीजेपी ने अपने पाले में कर लिया।
सचिन पायलट और गहलोत की लड़ाई…
सचिन पायलट और अशोक गहलोत की लड़ाई तो पूरे देश में चर्चा का मुद्दा रही, दोनों नेता काम छोड़कर आपसी लड़ाई पर ज्यादा फोकस करते दिखे। सरकार बनते ही दोनों के बीच खींचतान शुरू हुई तो खत्म होने का नाम नहीं लिया। कई बार मीडिया के सामने आकर मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सचिन पायलट को निकम्मा और गद्दार तक कह दिया। कई बार आलाकमान ने दोनों को मनाने की कोशिश की, यहां तक कि राहुल गांधी ने खुद चुनाव प्रचार के दौरान दोनों को एक साथ मंच पर लाकर ये संदेश देने की कोशिश की कि पार्टी में सबकुछ ठीक है, लेकिन दोनों के दिल नहीं मिले।