जयपुर। भारतीय सेना में नाथुला टाइगर के नाम से विख्यात कर्नल बिशन सिंह राठौड़ का रविवार सुबह यहां निधन हो गया। वे 84 वर्ष के थे। उनका अंतिम संस्कार सोमवार सुबह ग्यारह बजे सीकर रोड स्थित मोक्षधाम में पूरे सैन्य सम्मान से किया जाएगा। कर्नल राठौड़ कुछ दिनों से बीमार थे। एक निजी अस्पताल में उनका उपचार चल रहा था। रविवार सुबह उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी शवयात्रा सोमवार सुबह दस बजे उनके निवास स्थान डी-2, शैतान विहार, विद्याधर नगर, सेक्टर-1 से रवाना होकर सीकर रोड मोक्षधाम पहुंचेगी। उनके परिवार में दो पुत्र, पुत्रवधू और दो पौत्र हैं। उनकी पत्नी श्रीमती जतन कंवर का गत वर्ष निधन हो गया था।
बिशन सिंह का जन्म 10 नवम्बर 1938 को नागौर जिले की नावां तहसील के भगवानपुरा गांव में हुआ। पिलानी के बिरला साइंस कॉलेज से स्नातक करने के बाद 1961 में वे सेना में भर्ती हुए। उन्होंने 1967 के भारत- चीन युद्ध में नाथुला में सेना की टुकड़ी की कमान संभाली। युद्ध के दौरान हाथ में गोली लगने से वह घायल हो गए पर उनकी टुकड़ी के अदम्य साहस से चीन की सेना को वापस लौटना पड़ा। इसीलिए बिशन सिंह को ‘नाथुला टाइगर’ के नाम से जाना जाता है।
बिशन सिंह को सेना मेडल से नवाजा गया…
युद्ध में वीरता के लिए उन्हें सेना मेडल से नवाजा गया। कर्नल बिशन सिंह वर्ष 1990 में सेना से रिटायर हुए। फिल्म निर्देशक जे पी दत्ता ने वर्ष 2018 में कर्नल बिशन सिंह राठौड़ के जीवन पर आधारित फिल्म पलटन बनाई थी। फिल्म में सोनू सूद ने बिशन सिंह का किरदार अदा किया था। कर्नल राठौड़ पिछले कुछ वर्षोँ से लेखन कार्य कर रहे थे। उनकी रचित एक किताब ‘Transcending sorrow and suffering’ प्रकाशित हो चुकी है। उनकी नई किताब ‘MODI’ (Mindfulness Of Divine Insight) कुछ ही दिनों में प्रकाशित होने वाली है।
चीन ने नाथु ला बॉर्डर खाली करने को कहा…
साल 1967 में भारत-चीन में टकराव तब शुरू हुआ, जब भारत ने नाथु ला से सेबू ला तक तार लगाकर बॉर्डर को परिभाषित किया। बता दें कि 14,200 फीट पर स्थित नाथु ला दर्रा तिब्बत-सिक्किम सीमा पर है। जिससे होकर पुराना गैंगटोक-यातुंग-ल्हासा व्यापार मार्ग गुजरता है। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के दौरान चीन ने भारत को नाथु ला और जेलेप ला दर्रे खाली करने को कहा। भारत के जेलेप ला तो खाली कर दिया, लेकिन नाथु ला दर्रे पर स्थिति पहले जैसी ही रही। इसके बाद से ही नाथु ला विवाद का केंद्र बन गया।
तारबंदी को लेकर हुआ था विवाद…
साल 1967 में चीन और भारत के बीच तारबंदी को लेकर विवाद शुरू हो गया था। 7 सितंबर को 1967 को दोनों देशों के बीच तारबंदी को लेकर विवाद की स्थिति बननी शुरू हो गई थी। इसके बाद 11 सितंबर से दोनों देशों के बीच फायरिंग शुरू हो गई थी।
भारतीय सैनिकों ने चीन को सिखाया था सबक…
इतिहास गवाह है कि साल 1967 में हमारे जांबाज सैनिकों ने चीन को जो सबक सिखाया था, उसे वह कभी नहीं भुला पाएगा। चीन की सेना को सबक सिखाने में राजस्थान के नागौर जिले के सैन्य अफसर तत्कालीन कर्नल बिशनसिंह की भी अहम भूमिका रही थी।
इधर, बिशनसिंह घायल हुए, उधर पत्नी ने बेटे को दिया जन्म…
इस युद्ध के दौरान 11 सितंबर को कर्नल बिशनसिंह के बाएं हाथ में गोली लगने से वह घायल हो गए थे। जिसके बाद उन्हें हेलीकॉप्टर की मदद से सिलिगुड़ी सैन्य अस्पताल ले जाया गया। एक तरफ जहां कर्नल बिशनसिंह का उपचार चल रहा था। वहीं दूसरी तरफ इन्हीं दिनों में उनकी पत्नी जतन कंवर ने 13 सितंबर को पुत्र को जन्म दिया था।
भारत के तेवर देखकर हैरान रह गया था चीन…
कुछ जवानों की शहादत के बावजूद भारत ने तब भी चीन को करारा जवाब दिया था और चीन को अपने इरादों के साथ पीछे धकेल दिया था। भारतीय सेना के तीखे तेवर देखकर चीन भी हैरान रह गया था। उस समय भारत के 80 सैनिक शहीद हुए थे, जबकि चीन के 300 से 400 सैनिक मारे गए थे।