जयपुर: राजस्थान विधानसभा चुनावों से पहले नेताओं का पाला बदलने का सिलसिला शुरू हो गया है जहां 19 मई को सूबे के कई चेहरे बीजेपी का दामन थाम रहे हैं. चुनावी साल में नेताओं का पार्टी बदलने का रिवाज कोई नया नहीं है जहां नेता अपने इलाके के चुनावी समीकरणों को ध्यान में रखते हुए झंडा और चुनाव चिह्न बदल लेते हैं. राज्य में इसकी शुरूआत सीकर से होने जा रही है जहां पूर्व केंद्रीय मंत्री सुभाष महरिया शुक्रवार को बीजेपी में शामिल हो रहे हैं जहां उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे को अपनी इस्तीफा भेजकर 2019 लोकसभा चुनावों में कांग्रेस की हार की समीक्षा नहीं किए जाने पर नाराजगी जाहिर की है.
महरिया ने अपने इस्तीफे में कहा है कि प्रदेश में कांग्रेस सरकार जन घोषणापत्र के किए गए सारे वादे भूल गई है और आज प्रदेश का किसान और युवा ठगा सा महसूस कर रहा है. वहीं महरिया के अलावा दिग्गज राजपूत नेता लोकेन्द्र सिंह कालवी के बेटे भवानी सिंह कालवी और पूर्व आईपीएस रिटायर्ड रामेदव सिंह खैरवा भी बीजेपी का दामन थाम रहे हैं.
बीजेपी का चुनावों से पहले दिग्गज नेताओं की घरवापसी करवाने को कमजोर लोकसभा सीटों को साधने का दिशा में देखा जा रहा है जहां सीकर और नागौर दोनों ही लोकसभा सीट से इस प्लान को लागू किया गया है. बताया जा रहा है कि आने वाले दिनों में अन्य कई नेता भी बीजेपी के साथ हो सकते हैं. इधर चुनावी साल में कई पूर्व बीजेपी नेताओं ने बीजेपी में आने का ऐलान कर रखा है लेकिन अभी उनके नाम को लेकर आलाकमान से मंजूरी नहीं मिली है. इन नेताओं में बीकानेर से दिग्गज नेता देवी सिंह भाटी,पूर्व मंत्री राजकुमार रिणवा, पूर्व मंत्री सुरेन्द्र गोयल और पूर्व विधायक विजय बंसल जैसे नाम शामिल हैं.
बता दें कि सुभाष महरिया सीकर से जाट समाज में काफी पैठ रखते हैं और माना जा रहा है कि कांग्रेस के जाट चेहरे गोविंद सिंह डोटासरा के सामने महरिय़ा को चुनावी मैदान में भी उतारा जा सकता है. दरअसल सीकर और लक्ष्मणगढ़ इलाके जाट बाहुल है और वहां से ही गोविंद डोटासरा आते हैं ऐसे में बीजेपी को किसी बड़े जाट चेहरे की चुनावों से पहले ज़रूरत थी जिसके बाद महरिया का पार्टी में आने का रास्ता साफ किया गया.
वहीं महरिया के अलावा आज जयपुर में बीजेपी का दामन राजस्थान यूनिवर्सिटी से एनएसयूआई के पूर्व छात्रसंघ महासचिव नरसी किराड, लोकेंद्र सिंह कालवी के बेटे भवानी सिंह कालवी और पूर्व IPS डॉ रामदेव सिंह खैरवा भी थाम रहे हैं. इससे पहले पूर्व मंत्री घनश्याम तिवाड़ी को बीजेपी ने घर वापसी करवारकर राज्यसभा भेज दिया था.
बीजेपी में आने का मन बना चुके भाटी
मालूम हो कि बीकानेर से बीजेपी के कद्दावर नेता रहे देवीसिंह भाटी भी चुनावों से पहले बीजेपी में वापसी का मन बनाए हुए हैं लेकिन आलाकमान स्तर से उनकी वापसी को हरी झंडी नहीं मिली है. 2019 के लोकसभा चुनाव से पहले मार्च में पूर्व मंत्री भाटी ने बीजेपी छोड़ने का ऐलान कर दिया था जहां भाटी ने केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल को लोकसभा चुनाव में टिकट देने पर नाराजगी जाहिर की थी.
भाटी राजे की करीबी नेता माने जाते हैं और पिछले साल अक्टूबर में भाटी ने राजे के बीकानेर दौरे पर बीजेपी में आने का खुद ही ऐलान कर दिया था लेकिन बाद में बीजेपी संगठन की ओर से इसे पार्टी में आने से पहले ही अनुशासनहीनता के तौर पर देखा गया जिसके बाद भाटी की वापसी को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया. दरअसल किसी भी नेता की पार्टी में वापसी राज्य के संगठन की ओर से होती है ऐसे में तत्कालीन अध्यक्ष पूनिया के रहते भाटी की वापसी नहीं हो पाई.
बता दें कि पार्टी छोड़ने वाले अधिकतर नेता चुनावों के दौरान टिकट ना मिलने या अपने चहेते को चुनावी मैदान में नहीं उतारने जैसी नाराजगी के चलते पार्टी छोड़ देते हैं वहीं चुनावी साल में उन्हें फिर से पार्टी की याद आती है ऐसे में आलाकमान उस समय के चुनावी समीकरणों के हिसाब से नेताओं की वापसी का आधार तय करता है और उस इलाके में विपक्षी दल के नेता के जनाधार के हिसाब से फैसला लिया जाता है.
मेघवाल का बढ़ा कद बनेगा राह में रोड़ा !
दरअसल पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के पिछले साल बीकानेर संभाग में निकाली गई एक रैली के दौरान ही पूर्व मंत्री देवीसिंह भाटी और अन्य नेताओं के पार्टी में वापसी करने की चर्चाएं तेज हुई थी जिसके बाद पार्टी के प्रभारी अरूण सिंह ने एक कमेटी का गठन किया था जिसमें केन्द्रीय मंत्री अर्जुनराम मेघवाल और विधायक वासुदेव देवनानी को इन नेताओं की वापसी की जिम्मेदारी दी गई थी.
अब मेघवाल और भाटी की सियासी अदावत किसी से छुपी नहीं है जहां लोकसभा चुनावों से पहले भाटी ने मेघवाल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. वहीं बीते दिनों बीकानेर कलेक्टर सभागार में मेघवाल एक बैठक ले रहे थे जहां बीच में भाटी पहुंच गए थे और काफी हंगामा हुआ था.
इधर मेघवाल को हाल में पीएम मोदी ने प्रमोशन देते हुए कानून मंत्रालय का स्वतंत्र प्रभार दिया है जिसके बाद माना जा रहा है कि भाटी की राह में अब मेघवाल का बढ़ा हुआ कद मुसीबत बन सकता है. इसके अलावा मेघवाल की राजे गुट के नेताओं से भी खींचतान के कई मामले सामने आते रहे हैं और घरवापसी करने वाले कई नेता राजे के ही करीबी हैं. हालांकि पूनिया के जाने के बाद अब सीपी जोशी और राजेंद्र राठौड़ से बातचीत कर कमेटी आने वाले दिनों में इस पर फैसला कर सकती है जहां बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और आलाकमान की मंजूरी के बाद ही तस्वीर साफ होगी.