Javelin Thrower Champion Neeraj Chopra: राजस्थान से मेरा खास लगाव है। अगर हरियाणवी मेरी मां है तो राजस्थानी मौसी की तरह है। राजस्थान के लोगों ने अपनी बोली को भुलाया नहीं है और दिल को छूने वाली सादगी को उन्होंने बरकार रखा है। टोक्यो ओलंपिक 2021 में भाला फेंक में गोल्ड मेडल जीतकर इतिहास रचने वाले जैवलिन थ्रोअर चैंपियन नीरज चोपड़ा ने यह बात कही। स्थानीय बोलियों को प्रमोट करने के ध्येय पर काम कर रहे ओटीटी प्लेटफॉर्म स्टेज के ब्रांड एंबेसडर नियुक्त होने पर नीरज चोपड़ा ने अपने विचार रखे।
स्थानीय बोली में अपनापन…
नीरज के साथ शुरू हुए स्टेज के सफर की शानदार शुरुआत हुई। हरियाणवी कलाकार विकास सातरोड़ और राजस्थानी कलाकार भुट्टे खान मांगणियार ने सांस्कृतिक प्रस्तुति दी। देसी अंदाज में नीरज चोपड़ा ट्रैक्टर पर सवार होकर पहुंचे। इस दौरान नीरज चोपड़ा ने कहा कि हमें अपनी जड़ों से जुड़ना होगा। स्थानीय बोली हमारी पहचान है, इसे बचाने के लिए हमें आपस में भी स्थानीय भाषा में बातचीत शुरू करनी होगी। पूरे आत्मविश्वास से अपनी बोली में बात करें, हममें कॉन्फिडेंस होगा तो लोग सबटाइटल में भी हमारी बात समझेंगे। उन्होंने कहा कि स्थानीय बोली में अपनेपन का भाव होता है।
दाल-बाटी-चूरमा पसंद…
नीरज ने कहा कि हरियाणा की तरह महाराणा की भूमि मतलब राजस्थान से भी मेरा जुड़ाव है क्योंकि महाराणा प्रताप का अस्त्र भाला ही तो मेरी पहचान है और जैसे महाराणा को अपने भाले पर मान था वैसे ही मेरे मन में भाले के लिए मान है, सम्मान है। उन्होंने कहा कि महाराणा प्रताप ही मेरी प्रेरणा है। उन्होंने कहा कि राजस्थान के बहुत साथी मेरे साथ ट्रेनिंग करते है, उनसे मुलाकात करने मैं अक्सर राजस्थान आता हूं। जयपुर का दाल बाटी चूरमा मुझे बेहद पसंद है। सालासर बालाजी में जाता रहता हूं। हरियाणा और राजस्थान सीमावर्ती राज्य है तो बोली में भी समानता होने के कारण अपनापन महसूस होता है।
बोलियों की क्रांति…
नीरज ने कहा कि स्थानीय बोलियों को बढ़ावा देने के लिए क्रांति की जरूरत है। स्टेज के युवा साथियों ने यह बीड़ा उठाया है जो प्रशंसनीय है। स्टेज के सह संस्थापक विनय सिंघल ने कहा कि नीरज अपनी बोली को भरपूर सम्मान देते हैं। वैश्विक चेहरा होने के बाद भी वे बेझिझक इंटरव्यू अपनी बोली में देते हैं। नीरज अपने खेल से तो युवाओं के लिए प्रेरणा है ही साथ ही युवाओं को नीरज के अपनी बोली और संस्कृति के प्रति प्रेम से भी प्रेरणा लेनी चाहिए।
जनता की पहुंच हुई आसान…
विनय सिंघल ने कहा कि स्थानीय बोलियों में भी काफी अच्छा कंटेंट हमारे सामने आता है लेकिन जनता तक इसकी पहुंच अब तक नहीं थी, हरियाणवी हो या राजस्थानी दोनों में ही काफी मूवीज़ बन रही है लेकिन उन्हें रिलीजिंग में काफी दिक्कत होती है, स्टेज एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जिसने लोगों तक इस कंटेंट को पहुंचाने में सफलता हासिल की है।
स्टेज के सह संस्थापक शशांक वैष्णव और प्रवीण सिंघल ने कहा कि नीरज के स्टेज के साथ आने से क्षेत्रीय बोलियों के प्रति युवाओं का प्रेम और सम्मान बढ़ेगा और स्टेज हमेशा बोलियों को आगे बढ़ाने में प्रयासरत रहेगा। जहां राजस्थान के युवा मुंबई में फ़िल्म और टेलीविज़न में काम करने के लिए मुंबई में संघर्ष करते थे आज स्टेज के आने के बाद युवाओं को मुंबई जाने की ज़रूरत महसूस नहीं होती। राजस्थान के फ़िल्म मेकर जहां फ़िल्म बनाने के लिए संघर्षरत थे, आज इन प्रदेशों में हर महीने 5-6 वेब सीरीज और फ़िल्मों के शूट हो रहे हैं।
क्षेत्रीय बोलियों में तैयार मूवीज
गौरतलब है कि ओटीटी प्लेटफॉर्म स्टेज पर हरियाणा और राजस्थानी में विभिन्न वेब सीरीज रिलीज की गयी है। क्षेत्रीय बोलियों में तैयार इन मूवीज की कहानियां स्थानीय परिवेश से प्रेरित रहती है। राजस्थानी मूवीज़ में डाम, मुकलावो, बींद बणुगो घोड़ी चढ़ूँगो, चौधरी साब री चतुर फ़ैमिली, अँगूठो, सरपंच और नुचवाणा समेत ढेर सारी फ़िल्में और वेब सीरीज उपलब्ध है।