जयपुर। धरती के भगवान अपना सेवा कार्य भूल लगातार 5वें दिन भी हड़ताल पर है। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के आह्वान के बाद आज भी निजी अस्पतालों में इमरजेंसी और ओपीडी सेवाएं बंद है। जिसके चलते मरीजों को परेशानी का सामना करना पड़ेगा। वहीं, निजी चिकित्सकों के साथ-साथ सरकारी रेजिडेंट्स डॉक्टर्स की हड़ताल के चलते इलाज के अभाव में एक चार महीने के बच्चे की मौत हो गई। ऐसे में बड़ा सवाल ये है कि आखिर मासूम की मौत का जिम्मेदार कौन है?
बता दें कि निजी अस्पतालों के डॉक्टर राइट टू हेल्थ के विरोध कर रहे है। वहीं, डॉक्टर पर हुए लाठीचार्ज और पानी की बौछार के विरोध में साथ सरकारी रेजिडेंट्स डॉक्टर्स भी हड़ताल कर रहे है। बुधवार को भी राइट टू हेल्थ बिल के विरोध में डॉक्टर्स की हड़ताल रही। ऐसे में इलाज के अभाव में मरीजों के साथ-साथ परिजनों को भी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। ऐसे में कई मरीजों की जान पर बन आई है।
तबीयत खराब होने पर लाए थे सीकर के जनाना अस्पताल
ऐसा ही मामला राजस्थान के सीकर जिले में सामने आया है। जहां 4 महीने के बच्चे रूबिन के इलाज के लिए परिजन सीकर से जयपुर तक भटकते रहे है। हालांकि, डॉक्टरों की हड़ताल के चलते इलाज के अभाव में मासूम बच्चे की मौत हो गई। जानकारी के मुताबिक बुधवार सुबह परिजन बीमार रुबिन को लेकर सीकर के जिला अस्पताल पहुंचे। सीकर के जनाना अस्पताल से परिजनों को बच्चे को जयपुर ले जाने के लिए कहा गया। इस पर परिजनों ने सरकारी एंबुलेंस बुलाई, लेकिन उसमें आईसीयू की सुविधा नहीं थी।
जयपुर लाते समय थम गई बच्चे की सांसे
बाद में एक और एंबुलेंस बुलाई गई। लेकिन, कंपाडर ने साथ में जाने से मना कर दिया। आखिरकार, ढाई घंटे बाद परिजन अपने बच्चे को एंबुलेंस के जरिये सीकर से जयपुर के लिए रवाना हुए। परिजन दोपहर में जयपुर के जेके लोन अस्पताल पहुंचे। लेकिन, तब तक चार महीने के रूबिन की सांसे थम चुकी थी। ऐसे में परिजनों का रो-रोकर बुरा हाल है। उनका बस एक ही सवाल है कि आखिर बच्चे की मौत के लिए कौन जिम्मेदार है।
डॉक्टरों की हड़ताल से चरमाई स्वास्थ्य सेवाएं
राजस्थान विधानसभा में हाल ही में पारित स्वास्थ्य के अधिकार विधेयक के खिलाफ करीब 6 हजार रेजिडेंट डॉक्टर बुधवार से हड़ताल पर है। जिससे एसएमएस अस्पताल सहित अस्पतालों में स्वास्थ्य सेवाएं चरमरा गई हैं। ऑपरेशन स्थगित कर दिए गए, मरीज स्ट्रेचर पर दर्द से कराहते देखे गए। एसएमएस मेडिकल कॉलेज के एक वरिष्ठ चिकित्सक ने कहा कि सभी फैकल्टी सदस्य ओपीडी में तैनात थे, जहां काफी भीड़ थी। आपात स्थिति में मौके पर ही उपचार दिया गया, जिसके बाद मरीजों को वार्डो में स्थानांतरित कर दिया गया। नर्सिग स्टाफ और इंटर्न भी आपातकालीन सेवाओं में लगे हुए थे। रेजिडेंट डॉक्टरों के नहीं रहने से काम का दबाव बहुत अधिक था।