Kailash Meghwal vs Arjun Ram Meghwal: राजस्थान में एक कहावत है ऊंट किस करवट बैठेगा, ऊंट जो करवट लेता है उसका पलड़ा भारी होता है…पिछले कुछ महीनों से सूबे की सियासत में बीजेपी हो या कांग्रेस दोनों ही खेमों के लिए यह कहावत चरितार्थ हो रही है जहां आपसी कलह, खींचतान से जूझ रहे दोनों मुख्य दल अब चुनावों की दहलीज पर खड़े हैं. कांग्रेस में जहां शांति की आहट सुनाई देने लगी है.
वहीं बीजेपी में दबे मुंह होने वाली चर्चाएं अब खुलकर बाहर आ गई है जहां बुधवार को बीजेपी के वरिष्ठ नेता कैलाश मेघवाल ने अपनी ही पार्टी के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. कैलाश मेघवाल ने केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाने के साथ ही सीधे पीएम मोदी की नैतिकता पर सवालिया निशान लगा दिया.
मेघवाल की जुबां से आया सियासी बवंडर!
वहीं बीजेपी की गुटबाजी पर खुलकर बोलने के साथ ही वसुंधरा राजे और उनके लोगों को दरकिनार करने की सार्वजनिक तौर पर हामी भरी. हालांकि बीजेपी ने राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष कैलाश मेघवाल को ‘अनुशासनहीनता’ के आरोप में तुरंत पार्टी की प्राथमिक सदस्यता से निलंबित कर दिया लेकिन मेघवाल के आरोपों के बाद मरुधरा की सियासत में शांत पड़ा सियासी बवंडर अब फिर उठने को है.
कैलाश मेघवाल बीजेपी के खांटी नेता हैं और भैरोसिंह शेखावत के जमाने में राजनीति की एबीसीडी सीखकर सियासत में सीढ़ी दर सीढ़ी चढ़े हैं. 89 साल की उम्र में एक बार फिर राजस्थान की शाहपुरा सीट से चुनाव लड़ने को तैयार हैं. मेघवाल अपने राजनीतिक करियर में 3 बार सांसद रहे और 6 बार के विधायक रहे हैं. इसके अलावा वह पूर्व में राजस्थान विधानसभा के अध्यक्ष भी रह चुके हैं.
2018 में बनाया था रिकॉर्ड
इधर मेघवाल ने 2018 के विधानसभा चुनावों में सबसे ज्यादा मतों के अंतर से जीतने वाले विधायक के रूप में अपना नाम दर्ज करवाया जहां मेघवाल ने 1977 के चुनावों के बाद से लेकर अब तक की सबसे बड़ी जीत हासिल की थी. बता दें कि मेघवाल 74542 मतों के अंतर से जीते थे.
मेघवाल राजस्थान विधानसभा के पूर्व अध्यक्ष, भारत सरकार में पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रह चुके हैं. वह 14वीं लोकसभा में टोंक से सांसद रहे हैं. इसके अलावा 2003 से 2004 तक वह सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री भी रहे. वहीं मेघवाल 1975 के आपातकाल के दौरान जेल भी गए जहां 1977 में उन्हें रिहा किया गया.
कोई नहीं उखाड़ सकता ‘बूटा सिंह का खूंटा’
बता दें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के नजदीकी रहे बूटा सिंह को राजीव गांधी ने अपने समय में राजस्थान के जालोर में स्थापित किया था जिसके बाद राजस्थान में एक कहावत कही जाने लगी कि ‘बूटा सिंह का खूंटा’ कोई नहीं उखाड़ सकता है और जालोर-सिरोही कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ हो गई थी.
मालूम हो कि बूटा सिंह जालोर और सिरोही से चार बार सांसद रहे लेकिन 1989 में उनकी हार देश भर में चर्चा का विषय रही. बूटा सिंह को 1989 में हराने का जिम्मा लिया पूर्व उपराष्ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत ने जिन्होंने उन्हें हराने की चुनावी रणनीति बनाई जो काम कर गई. भैरों सिंह शेखावत ने ‘बूटा सिंह का खूंटा’ कोई नहीं उखाड़ सकता यह मिथक भी तोड़ा.
मेघवाल ने उखाड़ा था बूटा का खूंटा
गौरतलब है कि बूटा सिंह पंजाब के प्रभावशाली दलित नेता माने जाते थे लेकिन 1984 के लोकसभा चुनाव से पहले ऑपरेशन ब्लू स्टार और इंदिरा गांधी की हत्या के बाद राजीव गांधी को यह डर सताने लगा कि कहीं बूटा सिंह हार ना जाए इसलिए उन्हें कांग्रेस के किले जालोर-सिरोही से चुनाव लड़ाया गया था और वह जीत गए लेकिन 1989 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले बोफोर्स घोटाला सामने आया और शेखावत ने उदयपुर के कैलाश मेघवाल को जालोर-सिरोही सीट पर भेजा.
हालांकि बताया जाता है कि मेघवाल इसके लिए राजी नहीं थे लेकिन शेखावत के आदेश के बाद उन्होंने नामांकन दाखिल किया और उन चुनावों में नारा गूंजा ‘बूटा को वापस पंजाब भेजो, राजस्थानी को अपना प्रतिनिधी चुनकर लोकसभा में भेजो’..बस इस नारे ने नतीजों को बदल दिया और मेघवाल वहां से जीत गए.