ERCP ( Eastern Rajasthan Canal Project ) का मुद्दा राजस्थान की राजनीति का अहम हिस्सा रहा है। जब-तब सत्ता धारी दलों ने इसकी आड़ में जनता से खूब वोट जुटाए हैं। लेकिन अब तक प्रदेश के दक्षिण-पूर्व में स्थित 13 जिलों को पानी नसीब नहीं हुआ है। इससे बड़ी बात यह है कि अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। मध्य प्रदेश सरकार की तरफ से इस मामले में याचिका दायर की है। इस पर राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ने मध्य प्रदेश और केंद्र सरकार को करार जवाब दिया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि आखिर मध्य प्रदेश ERCP को लेकर सुप्रीम कोर्ट क्यों पहुंच गया ? क्या प्रधानमंत्री मोदी के बयटान के मुताबिक वे ERCP की DPR से खुश नहीं है या फिर वह राजस्थान से समझौते के मुताबिक पानी देने के मूड में नहीं है?
आखिर क्यों छिड़ा है विवाद ?
दरअसल राजस्थान सरकार ERCP को राष्ट्रीय परियोजना का दर्जा दिलाना चाहती है। ताकि परियोजना की लागत का करीब 90% खर्च केंद्र सरकार उठाए। क्योंकि लागत का पूरा खर्च राज्य वहन नहीं कर पाएगा। वहीं केंद्र सरकार का तर्क है कि जिन नदियों के पानी से इस प्रोजेक्ट के जरिए काम करना है, वे मध्य प्रदेश से आती हैं तो राजस्थान को उनसे पहले NOC लेनी पड़ेगी। वहीं मध्य प्रदेश की सरकार ने राजस्थान तो NOC देने से मना कर चुकी हैं। यह कांग्रेस की कमलनाथ सरकार के वक्त भी हुआ था। इस मामले में केंद्र और मध्य सरकार का कहना है कि 75% जलभराव हिस्सेदारी के हिसाब से राजस्थान डीपीआर बना कर दे। केंद्र तभी 90% हिस्सेदारी उठाएगा। 50% हिस्सेदारी से 3700 एमक्यूएम और 75% हिस्सेदारी से 1700 एमक्यूएम पानी मिलेगा। इसलिए राजस्थान सरकार को जलभराव में 50% की हिस्सेदारी चाहिए क्योंकि उससे पानी ज्यादा मिलेगा।
अब मध्य प्रदेश से ERCP पर समझौते को लेकर राजस्थान सरकार कई दौर में बातचीत कर चुकी है। एक बार को लगा था कि यह बातचीत उस रास्ते पर है जिसे एक मंजिल मिल सकती है, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार के अचानक सुप्रीम कोर्ट चले जाने पर इस उम्मीद को गहरा झटका लगा है।
सीएम गहलोत ने कहा- भुगतना पड़ेगा अंजाम
ERCP को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करने को लेकर सीएम गहलोत ने कहा कि राजस्थान में जलमंत्री की बातों की पोल खुल गई, मोदी ने दौसा में जो बयान दिय़ा था और नया फॉर्मूला दिया था वह भी एक्सपोज हो गया। अब जिस तरह से इस प्रोजेक्ट को बनाया गया है, उसे लेकर, भाजपा सरकार के दौरान, एमपी और राजस्थान के बीच समझौता हुआ था और 2010 में बनी केंद्रीय जल आयोग की गाइडलाइन के मुताबिक राजस्थान में जो काम चल रहा है उसके बावजूद ये लोग उस काम को रूकवाने के लिए चले गए।
इससे तो यही पता चलता है कि किस तरह से भाजपा शासित राज्य इस योजना को बंद कराने के लिए ही आगे आया है, इससे राज्य की जनता में जबरदस्त आक्रोश है। इस तरह से पूरी तरह से केंद्र सरकार के मंत्री और कार्यकर्ता खुद ही एक्सपोज हो गए हैं। इस बात को प्रधानमंत्री को स्वीकार करना चाहिए और यह जनता को बताना चाहिए कि आखिर इस काम को रुकवाने केलिए मध्य प्रदेश आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट तक चली गई। इस मामले में प्रधानमंत्री को हस्तक्षेप करना चाहिए। अभी वे आकर भी गए हैं राजस्थान में, अन्यथा इसका अंजाम इन्हें आगे भुगतना पड़ेगा।
क्या है ERCP?
ERCP का मतलब है ईस्टर्न राजस्थान कैनाल प्रोजेक्ट ( Eastern Rajasthan Canal Project )। इस योजना का मुख्य उद्देश्य दक्षिणी राजस्थान में बहने वाली चंबल और उसकी सहायक नदी कुन्नू, पार्वती, कालीसिंध में बारिश के दौरान ओवरफ्लो होते पानी को इकट्ठा कर उसे राजस्थान के दक्षिण-पूर्वी जिलों में भेजना है जिससे वहां पीने के पानी और फसलों की सिंचाई के लिए होती कमी को पूरा किया जा सके। इस य़ोजना की अनुमानित लागत लगभग 60 हजार करोड़ रुपए है। इस परियोजना से राजस्थान की 40 प्रतिशत जनता की प्यास बुझाने का उद्देश्य है। साथ ही करीब 4.31 लाख हेक्टेयर भूमि को सिंचाई के लिए पानी का सामाधान होगा।