जयपुर। 5.5 एमएल के एक जोल्गेन्स्मा नामक इंजेक्शन के इंतजार में 30 माह से तड़प रहा तनिष्क आखिर जिंदगी की जंग हार गया। स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी (एसएमए) नामक के रोग से ग्रसित इस बच्चे ने सोमवार को जयपुर के जेके लोन अस्पताल में आखिरी सांस ली। इस बच्चे की जिंदगी के लिए परिजन राज्य से लेकर केंद्र सरकार तक गुहार लगाते रहे, लेकिन अंतत: अपने ढाई वर्ष के लाड़ले को खो दिया। उन्हें आश्वासन तो मिले, लेकिन 16 करोड़ का इंजेक्शन नहीं। माता-पिता की इकलौती संतान था तनिष्क।
नहीं बन रहा था शरीर में प्रोटीन
स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी बीमारी के कारण शरीर में सर्वाइवल ऑफ मोटर न्यूरॉन-1 (एसएमएन-1) जीन की कमी से तनिष्क के शरीर में प्रोटीन नहीं बन पा रहा था। इस कारण वह न ठीक से खा सकता था और ना ही बैठ सकता था। धीरे-धीरे उसका तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) नष्ट हो रहा था। चिकित्सकों के अनुसार उसे बचाने के लिए जोल्गेन्स्मा नाम का इंजेक्शन की आवश्यकता थी। यही एकमात्र इलाज था, जो उसे नहीं मिल पाया। एक रिकॉर्ड के अनुसार एसएमए बीमारी विश्व स्तर पर 10 हजार बच्चों में से एक में और भारत में 7,744 बच्चों में से एक को होती है।
कें द्र सरकार से भी नहीं मिली मदद
16 करोड़ रुपए कीमत के इंजेक्शन के इंतजाम की गुहार केंद्र सरकार तक भी पहुंची थी, लेकिन मौत आ गई न इंजेक्शन मिला, ना मदद। कई सांसदों और मंत्रियों तक पीड़ित परिवार की मदद की अपील पहुंची थी। परिजनों का कहना है कि प्रदेश के स्वास्थ्य मंत्री ने भी इंजेक्शन दिलाने का भरोसा दिया था, लेकिन वह मासूम की अंतिम सांस तक नहीं मिला।
हाईकोर्ट ने माना था गंभीर
चूरू जिले के जमील नाम का बच्चा भी इसी तरह की रेयर डिजीज से पीड़ित था। उसके परिजनों ने हाई कोर्ट में याचिका लगाकर सरकार से मदद दिलाने की गुहार की थी, जिसके बाद राज्य सरकार द्वारा संबल पोर्टल बनाया गया और हाई कोर्ट के आदेश पर जमील का इलाज शुरू हुआ। जमील की याचिका पर फै सले के बाद केंद्र सरकार ने राजस्थान के एकमात्र जोधपुर एम्स को सेंटर फॉर एक्सीलेंस रेयर डिजीज के नाम से कर दिया, जिसमें कोई भी रेयर डिजीज से पीड़ित मरीज इलाज करा सकता हैं।
रेयर डिजीज स्पाइनल मस्कुलर एट्रोफी टाइप-2 से पीड़ित दो वर्षीय तनिष्क के पिता शैतान सिंह ने भी हाई कोर्ट में जनवरी 2023 याचिका लगाई थी। उस याचिका का हाई कोर्ट ने जजमेंट देते हुए राजस्थान सरकार को आदेश दिया था कि इन सभी रेयर डिजीज पीड़ितों का इलाज व दवाइयों की व्यवस्था करवाई जाए।
क्राउड फंडिग से मिलती है सहायता
जोल्गेन्स्मा प्रिसिजन की श्रेणी में आता है। नोवार्टिस कं पनी की यह दवा किसी व्यक्ति के यूनिक जेनेटिक कोड के कारण होने वाली विशिष्ट समस्याओं को टारगेट करती है। दुर्लभ बीमारियों के लिए राष्ट्रीय आरोग्य निधि योजना के तहत 20 लाख रुपए तक की वित्तीय सहायता का मिलती है। क्राउड फंडिग भी होती है। कई बार विदेशी कं पनियां भी इसे डोनेट करती हैं।