ढाका। ढाकेश्वरी मंदिर बांग्लादेश की राजधानी ढाका में है। ढाका का नाम इन्हीं ढाकेश्वरी माता के नाम पर रखा गया है। देवी ढाकेश्वरी को ढाका की अधिष्ठात्री देवी माना जाता है। यहां आदिशक्ति की पूजा की जाती है। यह बांग्लादेश का राष्ट्रीय मंदिर है और सबसे बड़ा हिंदू मंदिर भी है। यह मंदिर मां आदिशक्ति के 51 शक्ति पीठों में से एक है। मान्यता है कि मां सती के मुकुट की मणि यहां पर गिरी थी। देवी की मूर्ति 1.5 फीट लंबी और दस भुजाओं वाली है, जो कात्यायनी महिषासुर मर्दिनी ‘दुर्गा’ के रूप में अपने शेर पर आरूढ़ है। उनके दो पक्षों में लक्ष्मी, सरस्वती, कार्तिक और गणेश जी हैं। ढाकेश्वरी मंदिर में वर्तमान पीठासीन देवी की मूर्ति मूल मूर्ति की प्रतिकृति है।
बल्लाल सेन ने बनवाया
यह मंदिर बांग्लादेश की सांस्कृतिक विरासत का एक हिस्सा है। इस मंदिर को 12वीं शताब्दी में बंगाल में राज करने वाले सेन क्षत्रिय राजवंश के बल्लाल सेन ने बनवाया था। राजा विजय सेन की पत्नी स्नान करने के लिए गई थीं। वापस लौटते समय उसने एक बेटे को जन्म दिया, जिसे बल्लाल सेन के नाम से जाना जाता है, जो अत्यंत प्रतापी राजा था। गद्दी पर बैठने के बाद बल्लाल सेन ने अपने जन्मस्थान को गौरवान्वित करने के लिए इस मंदिर का निर्माण करवाया। यह भी किंवदंती है कि बल्लाल सेन ने एक बार जंगल के नीचे देवता का स्वप्न देखा था। बल्लाल सेन ने वहां से देवता को उजागर किया और ढाकेश्वरी के मंदिर का निर्माण किया गया। किंवदंतियां जो भी हो, हिंदू ढाकेश्वरी को ढाका की पीठासीन देवी मानते हैं, जो आदि शक्ति देवी दुर्गा का अवतार है।
देवी का अपमान करने की पाकिस्तान ने चुकाई कीमत
1971 के युद्ध के समय पाकिस्तान की हार और बांग्लादेश के बनने का कारण माता ढाकेश्वरी के श्राप को भी माना जाता है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे से पहले यह मंदिर हिन्दूधर्म के अनुयायियों के लिए एक पवित्र तीर्थस्थल था, लेकिन बंटवारे के बाद ये भाग पाकिस्तान में चला गया और पूर्वी पाकिस्तान में मुस्लिम बाहुल्य होने की वजह से इस मंदिर की देखरेख होनी बंद हो गई। इतना ही नहीं, धीरे-धीरे इस मंदिर में आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी कम हो गई, क्योंकि दर्शन के लिए आने वाले श्रद्धालुओं को तरह-तरह से परेशान किया जाता था। तब सभी श्रद्धालुओं ने मां से इस सब से निजात दिलवाने की अरदास की।
ये भी कहा जाता है कि युद्ध के दौरान भारतीयों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने के लिए पाकिस्तानी सैनिकों ने बार-बार इस मंदिर का अपमान किया था और इसे अपवित्र किया था। युद्ध के समय पाकिस्तान की फौज ने ढाका स्थित ढाकेश्वरी मंदिर को अपने कब्जे में ले लिया, पाकिस्तानी फौजी इसके जरिए यह दिखाना चाहते थे कि वे करोड़ों भारतीयों की आस्था को ठेस पहुंचा सकते हैं। उन्होंने मंदिर की पवित्रता का उल्लंघन किया। वहां उनकी फौज के हथियार भी रखे थे। यह स्थान पाकिस्तानी फौज का शस्त्रागार था। कहा जाता है कि इस स्थान पर बैठकर पाकिस्तान के फौजी अधिकारी शराब पीते, मांसाहार करते, उस समय करोड़ों हिदुंओ ने मां ढाकेश्वरी से भारत की विजय और पाकिस्तानी फौज को कठोर दंड देने के लिए प्रार्थना की।
कहा जाता है इन सभी कारणों से देवी क्रुद्ध हो गई और मंदिर और अपने भक्तों का अपमान होने की वजह से देवी ने पाकिस्तानी सेना को श्राप दिया। आश्चर्यजनक रूप से देवी के दिए श्राप के कारण पाकिस्तानी सेना को युद्ध में जबरदस्त मुंह की खानी पड़ी। पाकिस्तान के 90 हजार से ज्यादा सैनिकों ने भारतीय सेना के सामने घुटने टेके और भारत की बहुत बड़ी विजय और पाकिस्तान की करारी हार हुई। पाकिस्तान के टुकड़े हो गए। जिस मंदिर में बैठकर पाकिस्तानी जनरल ढाकेश्वरी देवी का मजाक उड़ाया करते थे, वहां से फिर वे ऐसे निकले कि फिर कभी इस जगह का रुख नहीं किया। यह मंदिर इसलिए अत्यंत चमत्कारी माना जाता है।
मूल मूर्ति कुमारतुली के मंदिर में
इस मंदिर पर कई आक्रमण हुए। आज मंदिर की स्थापत्य शैली बदल चुकी है। इसका कई बार जीर्णोद्धार, मरम्मत और पुनर्निर्माण किया गया है। 1988 में इस्लाम को बांग्लादेश का आधिकारिक धर्म घोषित किया गया। इसके बाद बांग्लादेशी हिंदू समूहों ने प्राथमिक हिंदू पूजा स्थल के लिए आधिकारिक मान्यता की मांग शुरू कर दी और 1996 में ढाकेश्वरी मंदिर का नाम बदलकर ढाकेश्वरी जातीय मंदिर (ढाकेश्वरी राष्ट्रीय मंदिर) कर दिया गया। हर साल यहां दुर्गा पूजा आयोजित की जाती है।
पूजा के कुछ दिनों बाद मंदिर से सटे परेड ग्राउंड में एक विजय सम्मेलन भी किया जाता है। वर्तमान में ढाकेश्वरी मंदिर में मौजूद दुर्गा की मूर्ति वास्तव में मूल मूर्ति की प्रतिकृति है। विभाजन के दौरान लगभग 800 साल पुरानी मूल मूर्ति को लाखों शरणार्थियों के साथ ढाका से कुमारतुली (कोलकाता) ले जाया गया। मूर्ति को पहले व्यवसायी देवेंद्र नाथ चौधरी के घर चंद्र मलिक स्ट्रीट में रखा गया था। सोने की डेढ़ फीट ऊंची मूर्ति कात्यायनी महिषासुर मर्दिनी दुर्गा के रूप में है। वर्ष 1950 में चौधरी ने कुमारतुली में देवी का मंदिर बनवा कर इस मूर्ति को वहां पर स्थापित कर दिया।
नवरात्र में यहां गूंजते हैं मां के जयकारे
नवरात्रि के दौरान ढाका में मां के इस मंदिर की रौनक देखते ही बनती है। बीते जमाने में चैत्र माह में ही ढाकेश्वरी मंदिर के प्रांगण में त्योहारों का आयोजन होता था। वर्तमान परिप्रेक्ष्य में चैत्र एवं शारदीय नवरात्र के दौरान षष्ठी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी के पवित्र अनुष्ठानों के बाद विजयादशमी को पांच दिवसीय उत्सवों के साथ इसका समापन होता है। प्रत्येक वर्ष ढाका में दुर्गा पूजा का भव्य उत्सव ढाकेश्वरी मंदिर में आयोजित होता है। कई हजार उपासक यहां माता के दर्शन को आते हैं।
दूर-दूर से आने वाले व्यापारी और भक्तगण यहां आभूषण और महंगी साड़ियां अर्पित करते हैं। उन्हीं से मां का श्रंगार किया जाता है। यहां देवी मां की प्रतिमा की सीध में ही चार शिव मंदिर हैं, जो अपने आप में अनोखी और दुर्लभ संरचना है। यह 16वीं सदी में राजा मानसिंह द्वारा बनवाए गए हैं। बताया जाता है कि दुर्गा पूजा की समाप्ति के बाद प्रतिमाओं का विसर्जन जल में नहीं, बल्कि आईना दिखाकर किया जाता है। 2015 में भारत के प्रधानमंत्री मोदी ने भी यहां पूजा कर दर्शन किए थे।