विद्याशंकर मंदिर कर्नाटक के चिकमंगलूर जिले के पवित्र शहर शृंगेरी में स्थित है। इस मंदिर का निर्माण 1338 ई. में ‘विद्यारण्य’ नाम के एक ऋषि द्वारा किया गया था। ‘विद्यारण्य’ ऋषि कर्नाटक और दक्षिण भारत के इतिहास में एक महत्वपूर्ण व्यक्ति माने जाते हैं।यह मंदिर होयसल और द्रविड़ युग की स्थापत्य शैली का प्रतिनिधित्व करता है। अपने धार्मिक महत्व के अलावा मंदिर वास्तुकला में रुचि, प्रेम और जिज्ञासा रखने वाले लोगों के लिए एक अतुलनीय, अनुपम और दुर्लभ स्थान है।
अद्वैत मठों में से प्रथम मठ है शृंगेरी
शृंगेरी स्वयं आदि शंकराचार्य द्वारा स्थापित अद्वैत मठों में से प्रथम मठ है। इसकी एक सतत परंपरा है और आठवीं शताब्दी से इतिहास में दर्ज है। श्री आदि शंकराचार्य के शिष्य सुरेश्वराचार्य इस मठ के पहले प्रमुख थे। विभिन्न अभिलेखों के माध्यम से शृंगेरी मठ की निरंतर वंशावली का पता लगाया जा सकता है। इस मठ के दो सबसे प्रसिद्ध पुजारी विद्या शंकर या विद्यातीर्थ और उनके शिष्य विद्यारण्य हैं। विद्यारण्य के काल में दक्षिण में मुस्लिम घुसपैठ की शुरुआत हो चुकी थी।
विद्यारण्य ने दो हिन्दू ब्राह्मण भाइयों हरिहर और बुक्का को शुद्ध कर विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। विजयनगर जहां राजा रायकृष्णदेव जैसे महान राजा हुए, जिनके दरबार में तेनालीराम था। वह उत्तर से मुस्लिम आक्रमणकारियों की हिंसा, क्रूरता और शमनकारी नीतियों के खिलाफ हिंदू परंपराओं और मंदिरों की रक्षा के लिए एक किले के रूप में 500 वर्ष तक डटा रहा। ऐसा माना जाता है कि विद्यारण्य ने हरिहर और बुक्का को अपने गुरु, विद्यातीर्थ की समाधि के ऊपर एक मंदिर बनाने के लिए प्रेरित किया, इस मंदिर को विद्याशंकर मंदिर के नाम से जाना जाता है।
गर्भगृह के शीर्ष पर एक राजसी वर्गाकार विमान
मंदिर के अंदर, फर्श पर, प्रत्येक स्तंभ द्वारा डाली गई छाया के अनुरूप रेखाओं के साथ एक वृत्त खींचा जाता है। यहां पांच तीर्थ हैं। मुख्य मंदिर में श्री विद्याशंकर की समाधि के ऊपर एक शिव लिंग है और इसे विद्या शंकर लिंग के रूप में जाना जाता है। अन्य मंदिर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और दुर्गा के लिए हैं। गर्भगृह के शीर्ष पर एक राजसी वर्गाकार विमान है।
माणिक से बनी वेणुगोपाला और श्रीनिवास की प्रतिमा
इस मंदिर में शारदम्बा की एक टूटी हुई चंदन की मूर्ति भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि आदि शंकराचार्य द्वारा स्वयं शारदम्बा मंदिर में स्थापित की गई थी। ऐसा माना जाता है कि यह मूर्ति मुस्लिम आक्रमण के दौरान क्षतिग्रस्त हो गई थी और श्री विद्यारण्य ने इसके स्थान पर शारदम्बा की वर्तमान सोने की मूर्ति स्थापित की थी। विद्याशंकर मंदिर के अलावा यहां शक्ति को समर्पित कुछ अन्य मंदिर भी हैं- भगवान गणेश, महिषासुरमर्दिनी, देवी भुवनेश्वरी और राजराजेश्वरी।
मंदिर में माणिक से बनी वेणुगोपाला और श्रीनिवास की प्रतिमा भी स्थापित है। मंदिर में मोती से बने नंदी भी स्थापित हैं। कई शिलालेख खुदे हुए हैं, जो विजयनगर के शासकों के योगदान के बारे में बताते हैं। मंदिर तुंगभद्रा नदी के तट पर स्थित है। ऐसा अद्तभु मंदिर शायद ही विश्व में कहीं और हो, जो इतने वैज्ञानिक तरीके से सूर्य की किरणों के पड़ने के साथ महीने की घोषणा भी करता हो। हमारे महान देश भारत के महान लोगों की महान देन है ये मंदिर।
छह द्वार व बारह स्तम्भ
विद्यातीर्थ की समाधि के चारों ओर निर्मित यह एक सुंदर मंदिर है, जो एक पुराने रथ के समान दिखता है। यह द्रविड़ शैली की सामान्य विशेषताओं को विजयनगर शैली के साथ जोड़ती है। एक समृद्ध मूर्ति शिल्प वाले चबूतरे पर निर्मित इस मंदिर में छह द्वार हैं। मंदिर में 12 स्तंभ हैं, जो हिन्दूधर्म के 12 महीनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। बारह स्तम्भ बारह राशियों की आकृतियों वाले मंडप को घेरे हुए हैं। इनका निर्माण इतने सरल तरीके से किया गया है कि हिंदू कैलेंडर के बारह महीनों के कालानुक्रमिक क्रम में सूर्य की किरणें प्रत्येक स्तंभ पर पड़ती हैं। प्रत्येक सुबह जब सूर्य की किरणें मंदिर में प्रवेश करती हैं तो वह महीने का संकेत करने वाले एक विशेष स्तम्भ से टकराती हैं। इस तरह प्रत्येक महीने सूर्य की किरणें अलग-अलग स्तंभों से टकराती हैं और लोगों को हिन्दूधर्म के महीनों की सटीक जानकारी प्राप्त होती है।
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