सर्दी का मौसम आते ही लोग ऊनी कपड़े पहनने लगते हैं। हालांकि आजकल लोग ऊनी कपड़ों के अलावा रेग्जीन, लेदर और पॉलीस्टर से बने कपड़े भी पसंद करने लगे हैं। लेकिन सदियों से घर में ऊन से बने कपड़े पहनने की परंपरा रही है। एक समय था जब मां खुद ही घर ऊन के कपड़े बुनती थी। ऊन से शाल, स्वेटर, लोई, टोपी, सलवार कमीज के अलावा घर के सजावट के सामान भी बनते हैं। विश्व का सबसे बड़ा ऊन उत्पादक देश ऑस्ट्रेलिया है।
ऑस्ट्रेलिया में दुनिया का 25 प्रतिशत ऊन का उत्पादन होता है। इसके बाद दूसरे स्थान पर चीन का नाम आता है। हालांकि भारत में निर्मित ऊन सबसे अधिक उपयोगी मानी जाती है। इसकी महत्ता को देखते हुए इंग्लेंड जैसा बड़ा देश भी भारत से ऊन आयात करता है। इसके अलावा ऊन उत्पादक देशों में रूस, न्यूज़ीलैंड, अर्जेटाइन, आस्ट्रेलिया, चीन, दक्षिण अफ्रीका और ग्रेट ब्रिटेन प्रमुख हैं।
ऊन का इतिहास
ऐसा अनुमान है कि ऊन का उपयोग सर्वप्रथम बुनने के लिए किया जाता था। मिस्र, बैबिलोन, निनेवेह की कब्रें और ब्रिटेन निवासियों के झोपड़ियों की खुदाई में अंशावशेषों के साथ ऊनी वस्त्रों के टुकड़े मिले थे। इससे पता चला है कि ब्रिटेन के लोग रोमन आक्रमण से पहले भी ऊन का उपयोग करते थे। इसके बाद जब विंचेस्टर फ़ैक्ट्री की स्थापना हुई तो ऊन की उपयोगविधि का विकास हुआ।
ऊन को ब्रिटेन से इंग्लैंड लाने का श्रेय विजेता विलियम को दिया जाता है। इसके बाद हेनरी द्वितीय ने कानून, वस्त्रहाट और बुनकारी संघ बनाए, जिससे ऊन उद्योग को काफी बढ़ावा मिला। लेकिन 18वीं शताब्दी में सूती वस्त्र उद्योग ने इसकी महत्ता को कम कर दिया। वर्ष 1788 में अमरीका के हार्टफोर्ड में जल शक्ति से चलने वाली ऊन फेक्ट्री की स्थापना हुई। इसके बाद ऊन उद्योग को बढ़ावा मिलता गया।
रेशेदार प्रोटिन
ऊन एक प्रकार का रेशेदार या तंतुमय प्रोटीन है। यह जानवरों की त्वचा की कोशिकाओं से निकलती है। इसके लिए बड़े स्तर पर ऊन पालन किया जाता है। ऊन के रेशे उष्मा के कुचालक होते हैं। ऊन के भौतिक गुणों की बात करें तो इसके रेशे लहरदार होते हैं। इस घुंघरालेपन को ऊर्मिलता कहते हैं। इसके रेशों की लंबाई डेढ़ इंच से 15 इंच तक होती है। रेशा जितना बारीक होता है उतना अधिक लहरदार होता है। इसका घनत्व 1.3 ग्राम प्रति धन सेंटीमीटर होता है। हम सब भलि-भांति जानते हैं कि ऊन भेड़ के शरीर पर चढ़ी कोशिकाओं से बनती है। भेड़ के अलावा बकरी, याक तथा ऊंट के बालों से भी ऊन बनती है।
कई प्रकार के होते हैं ऊनी रेशे
ऊन के रेशे कई प्रकार के होतें हैं। भेड़ों की नस्ल, जलवायु, भूमि और भोजन के आधार पर इन्हें पांच भागों में विभाजित किया गया है। जैसे- महीन ऊन, मध्यम ऊन, लंबा ऊन, वर्णसंकर ऊन तथा कालीनी ऊन या मिश्रित ऊन। ऊन की लंबाई, रेशे का आकार, चमक तथा मजबूती अलग-अलग होती है। भारत की चोकला भेड़ की ऊन सबसे अधिक उत्तम मानी जाती है।
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