मेहनत और सफलता का चोली दामन का साथ है। सीकर की संतोष पचर महिला किसान हैं और इन्होंने अपनी मेहनत से ये भी साबित किया है। आठवीं क्लास तक शिक्षित संतोष ने ठान लिया था कि वे ऐसा कुछ करेंगी जिससे उनकी उपज को एक पहचान मिले और वे ये साबित करने में जुट गईं। वे तीस बीघा जमीन पर जैविक खेती करती हैं और पारंपरिक फसलें उगाती हैं। गौरतलब है कि अच्छी गुणवत्ता के बीज बनाकर संतोष अपने खेत पर ढाई फीट की गाजरें उगाकर कमाल कर रही हैं।
संतोष कहती हैं, पहले हमारे खेतों मैं जो गाजर उगती थी उनमें कई पतले और अलग-अलग आकार के होते थे जो देखने में अच्छे नहीं लगते थे। इससे ग्राहक इन्हें कम पसंद करते और उनकी बिक्री भी कम होने से आय पर भी असर हो रहा था। संतोष बताती हैं कि उनके खेतों में जो गाजर उगते थे, वे काफी पतले और टढे़-मेढ़े दिखते थे। इसलिए बाज़ार में ग्राहक उनके गाजर खरीदने में कुछ खास दिलचस्पी नहीं दिखाते थे और इसका सीधा असर उनकी आय पर पड़ रहा था। ऐसे में बड़ी मुश्किल से उनका गुजारा चल रहा था। मेरे पति के पास इसका कोई उपाय नहीं था। फिर हमने अच्छी किस्मों के बारे में जानकारी जुटानी शुरू की। हम दोनों राज्य सरकार द्वारा लगाए जाने वाले कृषि मेलों में भाग लेने लगे।
संतोष कहती हैं, मेलों में सरकारी अधिकारी और कृषि विशेषज्ञों से बात होने लगी तो जानकारी बढ़ी और खेती के बारे में जानकारियां बढ़ने लगी। वहीं पता चला कि गाजर की खराब फसल और आकार का कारण खराब बीज होते हैं। संतोष ने नए तरीके से बीजों को उपचारित करने का मन बनाया और 15 एमएल शहद और 5 एमएल घी के साथ भिगोकर छाया में सूखने के लिए रखा।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखती हैं
संतोष कहती हैं, सब्जियां और फल हमें तरोताजगी दे सकते हैं तो हमें भी इन्हें ऐसी चीजों की पोषकता से भिगोना चाहिए ताकि ये हमें और ज्यादा सेहत दे सकें। मैं इन्हें जीवित दृष्टिकोण से देखती हूं। इसलिए मैंने इनमें घी और शहद इस उम्मीद से मिलाया जो वाकई सेहत के लिए रामबाण होते हैं। मेरा तरीका कारगर रहा और इन बीजों से उगाई गाजरें शहद सी मीठी और चमकदार थीं। इस नवाचार से अच्छे बीज प्राप्त करने में सफल रही मैं।
पहले से दोगुनी ज्यादा है आय
संतोष बताती हैं, पहले हम जो भी बीज मिलते उन्हें ही उगा लेते लेकिन अब मैं अच्छी क्वालिटी के बीजों को तरीके से उपचारित कर खेत में बोती हूं। इससे गाजर की अच्छी किस्म तैयार होने में लगभग आठ साल का समय लगा लेकिन अब वे इन विशेष बीजों के बारे में ऑथेंटिक तरीके से बताती हैं, जो ग्रेडिंग कहलाता है। ये नए तरीके के बीज जल्द ही अंकुरित भी होते हैं और पारंपरिक किस्म की तुलना में उपज भी जल्दी देते हैं।
कृषि अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने इन बीजों को जांच करके नई किस्म का घोषित किया है। संतोष द्वारा तैयार इस किस्म को एसपीएल 101 का नाम दिया गया है। अब संतोष डेढ़ गुना ज्यादा लाभ ले रही हैं। इन नवाचारों के लिए संतोष को वर्ष 2013 और 2017 में राष्ट्रपति पुरस्कार भी हासिल हुआ है। अब तक संतोष सात हजार से ज्यादा किसानों को जैविक तरीके से गाजर उगाने की ट्रेनिंग दे चुकी हैं और वे अपनी आय से ज्यादा मुनाफा ले पा रहे हैं।