आजकल किसान कृषि में कई नवाचार अपना कर खेती को उन्नत बना रहे हैं। कई किसान पुरानी फसलों को ही नए तरीके से उगाकर अच्छी कमाई भी कर रहे हैं। ऐसी ही एक फसल है खीरा। जिससे अच्छी पैदावार के साथ-साथ कमाई भी अच्छी होती है। सलाद के रूप में खाया जाने वाला खीरा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। व्रत व उपवास में भी इसे फलाहार के रूप में खाया जाता है। इससे कई प्रकार की मिठाइयां भी बनाई जाती है। खीरे का उपयोग औषधी के रूप में भी किया जाता है।
इससे पेट, गैस व कब्ज की समस्या दूर होती है। इसे अधिक मात्रा में फाइबर मौजूद होता है, जो कि कब्ज दूर करने में कारगर साबित होता है। इसके अलावा पीलिया, मधुमेह, बुखार, शरीर की जलन, गर्मी के दोष तथा चर्म रोगों में भी यह लाभदायक है। खीरे का जूस पीने से पथरी रोगियों को राहत मिलती है। इसलिए चिकित्सक भी सलाह देते हैं कि पर्याप्त मात्रा में खीरे का सेवन करना चाहिए।
जायद की फसल
खीरा जायद की फसल है। इसका वैज्ञानिक नाम कुकुमिस साटिवस है। इसे अंग्रेजी में कुकुम्बर कहा जाता है। खीरे की खेती वर्षभर की जाती है। गर्मी के दिनों में फरवरी से मार्च माह के बीच इसकी बुवाई की जाती है। वर्षा ऋतु में जून से जुलाई माह में की जाती है। जबकि पर्वतीय क्षेत्रों में मार्च से अप्रैल का महीना बुवाई के लिए उपयुक्त माना जाता है। एक हेक्टेयर में बुवाई करने के लिए करीब 2 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है।
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कुछ किसान अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए बुवाई से पहले खेत में 20 से 25 टन गोबर की सड़ी-गली खाद मिला देते हैं। यह जायद की फसल है इसलिए उच्च तापमान के कारण इसे अधिक नमी की जरूरत होती है। इसलिए एक सप्ताह में एक बार हल्की सिंचाई करने की आवश्यकता होती है। खीरे की फसल बुवाई के लगभग दो महीने बाद फल देने लगती है। अनुमान के मुताबिक एक हेक्टेयर में 50 से 60 क्विन्टल खीरा उगाया जा सकता है।
कैसी हो भूमि व जलवायु
इसकी खेती करने से पहले ध्यान देने योग्य बात यह है कि आखिर खीरे की खेती के लिए कौनसी भूमी ऊपजाऊ मानी जाती है और किस प्रकार की जलवायु उचित मानी जाती है। खीरे की खेती करने के लिए सभी प्रकार की भूमी उपजाऊ रहती है। भूमी ऐसी हो जहां जल निकासी का उचित प्रबन्ध किया गया हो। इसके लिए हल्की अम्लीय भूमी उपजाऊ रहती है, जिनका पी.एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। जीवांश पदार्थयुक्त दोमट मिट्टी में खीरे की अच्छी उपज होती है। यूं तो किसी भी ऋतु में यह फसल की जा सकती है, लेकिन वर्षा ऋतु में इसकी अधिक पैदवार होती है। खीरे के लिए पाला नुकसान दायक होता है। पाले से यह फसल नष्ट हो जाती है।
खीरे की जातियां
अब बात करें इसकी जातियों की तो खीरे की विभिन्न उन्नत जातियां है। जैसे- जापानीज लाग, ग्रीन पोइनसेट, खीरी पूना, फैजाबादी तथा कल्याणपुर मध्यम। खीरे की फसल के लिए बुवाई करते समय यह ध्यान रखा जाता है, कि इसे एक लाइन में करीब 1.5 मीटर दूरी बनाकर बोया जाए। इसमें लगने वाले कीट व बीमारियों के नाम लाल कीडा, फल कीडा, फ्यूजेरियम रूट हाट तथा एन्थ्रेकनोज है।
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