राहुल गांधी के नेतृत्व में इस समय दक्षिण भारत में भारत जोड़ो यात्रा (Bharat Jodo Yatra) निकाली जा रही है। वैसे यह यात्रा कन्य़ाकुमारी से कश्मीर से तक 3750 किलोमीटर की दूरी तय करेगी। अभी इस यात्रा को दक्षिण भारत के कर्नाटक में निकाला जा रहा है। यह यात्रा देश के 12 राज्यों से होकर गुजरेगी। कांग्रेस पार्टी के नेताओं के मुताबिक इस यात्रा को दक्षिण में बेहद प्यार भी मिल रहा है। खास से लेकर आम लोग इस यात्रा में शामिल हो रहे है। यही नहीं बच्चे भी इस यात्रा में शामिल हो रहे हैं। उनके साथ राहुल गांधी की कई तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो रही है। राहुल गांधी के साथ-साथ अशोक गहलोत समेत राजनीति के कई दिग्गज नेता इस य़ात्रा को सफल बता चुके हैं।
पदयात्रा के जरिए सत्ता की कुर्सी तक का रास्ता !
लेकिन इन सबके बीच सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या कांग्रेस नेता जिस सरह से दक्षिण भारत में इस यात्रा के सफल होने का दावा कर रहे हैं। क्या उसी तरह से यह उत्तर भारत में भी सफल हो पाएगी। क्यों कि अगर हम थोड़ा पीछे जाते हैं तो देखेंगे कि राहुल गांधी के लिए उत्तर भारत में चुनौतियों का अंबार है। वैसे तो पार्टी की तरफ से कहा गया है कि यह यात्रा देश की जनता को शांति-सद्भावना-अहिंसा का संदेश देने के लिए निकली है। लेकिन जिस हिसाब से राजनेताओं का भारत में पदयात्रा निकालने का इतिहास रहा है उससे इसके राजनीतिक निहितार्थ भी निकाल जा रहे हैं। पदयात्राएं राजनेताओं के लिए सत्ता की कुर्सी तक जाने का रास्ता माना जाता है। विशेषज्ञों की मानें तो जाहिर है राहल गांधी भी इस रास्ते पर जाने के लिए पदयात्रा का सहारा ले रहे हैं।
उत्तर भारत में सफलता कैसे…जब यूपी को ही कर रहे नजरअंदाज
लेकिन यहां एक बात गौर करने वाली है कि राहुल गांधी की यह भारत जोड़ो यात्रा यूपी जैसे देश के बड़े राज्य में सिर्फ एक जिले से होकर गुजरेगी। यह बेहद आश्चर्य की बात है कि देश की राजनीति के केंद्र में रहने वाले उत्तर प्रदेश में सिर्फ 1 जिला ही क्या राहुल गांधी की अहमियत में है। क्योंकि अगर चुनावों की बात भी करें तो राहुल गांधी के नेतृत्व में हुए अब तक चुनावों में उन्हें सफलता नहीं मिली है। आकड़ों की बात करें तो उपाध्यक्ष बनने के बाद से राहुल गांधी 27 चुनाव हार चुके है। उन्होंने कुल 49 चुनाव लड़े थे। इसमें राज्यों के विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव भी शामिल हैं। यूपी विधानसभा चुनाव 2022 की हार पार्टी की अब तक की सबसे बड़ी हार मानी जाती है। जबकि इस चुनाव में यूपी की प्रभारी बनाई गईं प्रियंका गांधी ने 250 से ज्यादा रोडशो और रैलियां, जनसभाएं की थी। हालांकि इस चुनाव में राहुल गांधी भी उपाध्यक्ष थे, लेकिन इस हार के बाद उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था।
उत्तर भारत में कांग्रेस की बेहद पस्त है हालत
सबसे बड़ी बात यह है कि यूपी में तो उनके गांधी परिवार का भी भावनात्मक और राजनीतिक जुड़ाव भी है। अमेठी और रायबरेली तो उनकी पैतृक सीट मानी जाती है। यूपी में तो कांग्रेस का सत्ता में भागीदारी न के बराबर हो गई है। इस विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस को सिर्फ 2 सीटें ही मिली थीं। इसलिए यह सवाल उठना लाजिमी है कि उत्तर भारत में यात्रा को सफल कराने के लिए राहुल गांधी को देश के सबसे राज्य उत्तर प्रदेश को जीतना पड़ेगा। जो कि उनकी लिए एक अग्निपरीक्षा से कम नहीं होगा।
उत्तर भारत के दूसरे राज्यों जैसे जम्मू एवं कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और झारखंड में भी कांग्रेस की स्थिति अच्छी नहीं है। इसमें सिर्फ राजस्थान और छत्तीसगढ़ में ही कांग्रेस की सरकार है। इन्हीं राज्यों में कांग्रेस के अच्छे प्रदर्शन की उम्मीद की जा सकती है। राजस्थान में भी यह यात्रा 15 दिनों तक चलाई जाएगी। लेकिन बाकी के राज्यों में भी कांग्रेस की हालत पस्त है। राहुल गांधी को अगर दक्षिण का जादू यहां चलाना है तो उन्हें इन राज्यों में भी मेन फोकस रखना होगा।