Same Sex Marriage: देश की सुप्रीम कोर्ट ने समलैंगिक शादियों को लेकर मंगलवार को एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया जहां कोर्ट ने सेम सेक्स मैरिज को मान्यता देने से इनकार कर दिया. SC ने फैसला सुनाते हुए कहा कि यह विधायिका का अधिकार क्षेत्र है और इसके बाद कोर्ट की संविधान पीठ ने 3-2 से यह फैसला सुनाया जहां कोर्ट ने कहा कि समलैंगिक जोड़े के लिए शादी का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है और इस बारे में देश की संसद ही कानून बना सकती है.
सेम सेक्स मैरिज पर फैसला सुनाते हुए चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट विशेष विवाह अधिनियम के प्रावधानों को रद्द नहीं कर सकती है और यह कोर्ट कानून नहीं बना सकता, सिर्फ उसकी व्याख्या कर लागू करवा सकता है. कोर्ट ने यह भी कहा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के प्रावधानों में बदलाव की जरूरत है या नहीं यह तय करना संसद का काम है.
मालूम हो कि सेम सेक्स मैरिज का समर्थन कर रहे याचिकाकर्ताओं ने कोर्ट से इसे स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत रजिस्टर्ड करने की मांग की थी. वहीं कोर्ट में केंद्र सरकार ने दलील दी थी कि सेम सेक्स मैरिज भारतीय समाज के खिलाफ है. इसके अलावा कोर्ट ने समलैंगिक समुदाय के खिलाफ भेदभाव को रोकने के लिए केंद्र और पुलिस बलों को कई दिशा-निर्देश भी दिए हैं.
5 जजों की बेंच में हुई सुनवाई
जानकारी के मुताबिक सीजेआई के फैसले के बाद जस्टिस संजय किशन कौल ने समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों की वकालत की. वहीं समलैंगिक शादी को लेकर चार जजों सीजेआई, जस्टिस कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट्ट और जस्टिस पीएस नरसिम्हा ने बंटा हुआ फैसला दिया. इसके अलावा जस्टिस हिमा कोहली भी इस बेंच में शामिल थी.
शादी नहीं तो समलैंगिकों को क्या मिला?
कोर्ट में समलैंगिकों को शादी की ना करने के अलावा CJI ने केंद्र और राज्य सरकारों को समलैंगिक जोड़ों के अधिकारों को सुनिश्चित लिए उचित कदम उठाने के आदेश दिए हैं जिसके लिए केंद्र सरकार से मुख्य सचिव की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाने का भी कहा है.
कोर्ट की ओर से बनाई गई यह कमेटी इस पर विचार करेगी कि क्या हेल्थ, जेल यात्रा, शव लेने जैसे अधिकारों के तहत समलैंगिकों को परिवार माना जा सकता है. इसके अलावा कमेटी बैंक खाते के लिए नामांकन करने, वित्तीय लाभ, पेंशन, ग्रेच्युटी जैसी सुविधाओं पर भी विचार करेगी.
बच्चे भी नहीं ले सकते गोद
वहीं सीजेआई ने फैसले में कहा कि समलैंगिक जोड़ों को बच्चे गोद लेने का अधिकार है हालांकि जस्टिस एस रवींद्र भट, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने इस पर असहमति जताई. इसके अलावा सीजेआई ने कहा कि जीवन साथी चुनना जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है और किसी को भी अपना जीवन साथी चुनने की पूरी स्वतंत्रता है.