नई दिल्ली। विपक्षी दल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए अभी भले ही किसी गठबंधन को मूर्त रूप नहीं दे सके हों, लेकिन जातिगत जनगणना और आरक्षण की सीमा हटाने की उनकी मांग विपक्षी एकजुटता का मुख्य आधार बनती नजर आ रही है। कुछ विपक्षी नेता इसे भाजपा और उसके हिंदुत्व के कार्ड का मुकाबला करने का ‘ब्रह्मास्त्र’ भी मानते हैं। जातिगत जनगणना और आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा हटाने की मांग से जुड़े मुद्दे पर विपक्षी दल एकमत नजर आ रहे हैं।
विपक्षी नेताओं का मानना है कि इस मुद्दे की बदौलत वे उन पिछड़े समुदायों को अपने साथ ला सकते हैं जो हाल के वर्षों में भाजपा के साथ चले गए हैं। हाल ही में द्रमुक द्वारा सामाजिक न्याय विषय पर आयोजित एक सम्मेलन में राष्ट्रीय जनता दल के नेता और बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कहा था कि भाजपा की ध्रुवीकरण की राजनीति को हराने का एकमात्र तरीका सामाजिक न्याय आधारित राजनीति है।
हाल ही में कर्नाटक की एक चुनावी सभा में कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने जाति आधारित जनगणना और आरक्षण की 50 प्रतिशत की सीमा खत्म किए जाने की मांग आक्रामक ढंग से उठाई और केंद्र सरकार को निशाने पर लिया।
भारत जोड़ो यात्रा के दौरान कई संगठनों ने उठाई थी मांग: रमेश
जातिगत जनगणना को लेकर कांग्रेस के इस रुख के बारे में पूछे जाने पर पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने ‘पीटीआईभाषा’ से कहा, भारत जोड़ो यात्रा के दौरान सामाजिक संगठनों के लोगों ने राहुल गांधी से जाति आधारित जनगणना की मांग मजबूती से रखी थी। कांग्रेस उसी मांग को लेकर आगे बढ़ रही है। संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के समय सामाजिक, आर्थिक और जाति जनगणना हुई थी, लेकिन कई कारणों के चलते आंकड़े प्रकाशित नहीं हुए।
ये पार्टियां कर रही हैं जनगणना की हिमायत
राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल (यूनाइटेड), समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे विपक्षी दल भी जातिगत जनगणना की पैरवी कर रहे हैं। राज्यसभा सदस्य कपिल सिब्बल का कहना है कि विपक्षी दल 2011 के जनगणना के जातिगत आंकड़ों को प्रकाशित करने की मांग कर रहे हैं, लेकिन भाजपा का इस पर दोहरा रवैया रहा है। उन्होंने आरोप लगाया, भाजपा अगड़ी जातियों का वोट मांगती है, जबकि वह पिछड़े वर्गों को लेकर दोहरा मापदंड अपनाती है।
लम्बे समय से जारी है मांग: मनाेज
राष्ट्रीय जनता दल के मनोज झा ने कहा, हम लंबे समय से जाति जनगणना की मांग करते आ रहे हैं। लालू यादव, मुलायम सिंह और शरद यादव ने मांग की थी तो 2011 में यह शुरू हुई। नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद मैंने और कई अन्य सांसदों ने यह सवाल उठाया कि जातिगत आंकड़ों का क्या हुआ तो हमें बताया गया कि डेटा करप्ट हो गया है। मैं नहीं जानता कि ‘करप्शन’ डेटा का हुआ है या कहीं और हुआ है।
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