कोलकाता। ओडिशा में बीते शुक्रवार की शाम तीन ट्रेनों की भीषण भिड़ंत हो गई। दर्दनाक हादसे में 275 लोगों की मौत हो गई और एक हजार लोग घायल हुए है। ओडिशा के बालासोर जिले में हुए भीषण रेल हादसे से जुड़े कई ऐसे दृश्य सामने आए हैं जो किसी को भी भावुक कर दें। बहानगा ट्रेन हादसे को लेकर अब तक कई दर्दनाक कहानियां सामने आ रही हैं, जिसमें किसी का पूरा परिवार खत्म हो गया तो किसी ने अपने प्रियजनों को खो दिया है। लोग अपनों को तलाशने के लिए पूरी जद्दोजहद कर रहे हैं। ऐसा ही एक नजारा बालासोर में एक मुर्दाघर में देखने को मिला। एक पिता के विश्वास के कारण उन्हें उनका बेटा जीवित मिल गया। दरअसल, कोरोमंडल एक्सप्रेस में सवार विश्वजीत मलिक (24) नामक युवक के पिता हेलाराम मलिक ने ये मानने से इनकार कर दिया कि हादसे में उनके बेटे की जान चली गई है।
हादसे के बाद बेटे को बार-बार लगाते रहे फोन
जानकारी के अनुसार, पश्चिम बंगाल का रहने वाला विश्वजीत मलिक को उनके पिता हेलाराम मलिक ने 2 जून को शालीमार स्टेशन से कोरोमंडल एक्सप्रेस में छोड़ा था, लेकिन तब उन्होंने नहीं सोचा था कि उनके बेटे के साथ इतना बड़ा हादसा हो जाएगा। कुछ घंटे बाद जब विश्वजीत के पिता हेलाराम को खबर मिलती है कि ट्रेन हादसे की शिकार हो गई है। हादसे में 275 लोगों की जान चली गई और 1,100 से अधिक घायल हो गए। ट्रेन हादसे की खबर मिलते ही उन्होंने तुरंत अपने बेटे को फोन लगाया, लेकिन जिसके बाद उसने फोन उठाया, लेकिन चोट के कारण वह ज्यादा कुछ बोल नहीं पा रहा था। उसने सिर्फ इतना ही जवाब दिया और कहा कि वो अभी भी जिंदा है, लेकिन बुरी तरह से घायल है।
एंबुलेंस लेकर बेटे की तलाश में निकला हेलाराम
फोन उठाते ही हेलाराम को उम्मीद हो गई उनका बेटा जिंदा है। ऐसे में की दर्दभरी आवाज सुनने के बाद हेलाराम ने बालासोर जिले में दुर्घटनास्थल पर पहुंचने के लिए स्थानीय एंबुलेंस चालक पलाश पंडित से संपर्क किया। इसके बाद उन्होंने अपने बहनोई दीपक दास को साथ चलने के लिए कहा और उसी रात बालासोर के लिए एंबुलेंस में रवाना हो गए। उन्होंने उस रात करीब 230 किमी से अधिक की यात्रा की, लेकिन उन्हें किसी भी अस्पताल में विश्वजीत नहीं मिला।
हेलाराम हर उस अस्पताल में गए जहां घायलों का इलाज हो रहा था, लेकिन कहीं किसी भी अस्पताल में उनके बेटे विश्वजीत की कोई खबर नहीं मिली। इसके बाद हेलाराम से एक शख्स ने कहा कि आपको बहानागा हाई स्कूल देखना चाहिए, जहां शव रखे गए हैं। ये बात सुनने के बाद हेलाराम घबरा गए। इसके बाद भी वह अपने साले दीपक के साथ आखिरकार मुर्दाघर चले गए।
अस्थायी मुर्दाघर में उन्हें शवों को देखने की अनुमति नहीं थी। लेकिन, जब मुर्दाघर में कुछ लोगों ने देखा कि एक पीड़ित का दाहिना हाथ कांप रहा था, तब हेलाराम और दीपक दास वहां मौजूद थे। वह शख्स कोई और नहीं बल्कि विश्वजीत था, जिसे मृत मान कर मुर्दाघर में रख दिया गया था। इसके बाद हेलाराम अपने बेटे को तुरंत नजदीकी अस्पताल ले गए, जहां से उसे कटक मेडिकल कॉलेज अस्पताल रेफर कर दिया गया, लेकिन हेलाराम ने अपने बेटे को कटक अस्पताल से छुट्टी दिलाकर कोलकाता ले आए। यहां एसएसकेएम अस्पताल की ट्रॉमा केयर यूनिट में उसकी सर्जरी हुई। फिलहाल, विश्वजीत की हालत खतरे से बाहर बताई जा रही है। खैर, एक पिता के विश्वास के कारण उन्हें उनका बेटा विश्वजीत जीवित मिल गया।