आज नूपुर शर्मा (Nupur sharma) की गिरफ्तारी करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई थी। जिस पर कोर्ट ने तत्काल सुनवाई से इनकार कर दिया। इस याचिका में अधिकारियों को नूपुर शर्मा के खिलाफ कार्रवाई करने और गिरफ्तार करने के निर्देश दिए जाने की मांग की गई थी। जिस पर याचिकाकर्ता के वकील अबु सोहेल को जस्टिस इंदिरा बनर्जी और जस्टिस जेके माहेश्वरी की पीठ ने रजिस्ट्रार के सामने इस मामले को रखने की सलाह दी।
कोर्ट का तत्काल सुनवाई से इनकार
याचिका में नूपुर शर्मा के खिलाफ कार्रवाई को लेकर निर्देश देने के लिए सुनवाई को कहा था, उन्होंने कहा था कि नूपुर के खिलाफ शिकायत दर्ज होने के बावजूद उन पर अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। इस पीठ ने वकील से कहा कि इस याचिका की सुनवाई अवकाश पीठ के सामने क्यों रखी जा रही है। इसका रजिस्ट्रार के समक्ष उल्लेख किया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने नूपुर शर्मा पर की थी तल्ख टिप्पणी
पैगंबर मोहम्मद पर दी गई विवादित टिप्पणी को लेकर नूपुर शर्मा को सुप्रीम कोर्ट से कड़ी फटकार मिली थी। इसके अलावा दिल्ली पुलिस को फटकार को मिली थी। नूपुर शर्मा से कोर्ट ने कहा थी कि आज जो भी देश में हो रहा है उसकी वजह सिर्फ आपका वो एक बयान है। जिससे पूरे देश का माहौल बिगड़ा है। यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने उदयपुर की घटना के लिए नूपुर शर्मा को जिम्मेदार ठहराया था। कोर्ट ने कहा कि नूपुर शर्मा के उस एक बयान के कारण ही पूरे देश में आज आग लगी हुई है। नूपूर शर्मा को टीवी पर आकर पूरे देश से माफी मांगनी चाहिए। साथ ही कोर्ट ने कहा कि आपने (नूपुर शर्मा) ने माफी मांगने में बहुत देर की है।
हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज समेत 117 लोगों ने टिप्पणी पर जताई थी नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट की इस टिप्पणी पर देश और समाज के कई वर्गों में नाराजगी है। जिस पर कल यानी 5 जुलाई को देश की 117 हस्तियों ने सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस को एक पत्र भेजा था, जिसमें उन्होंने नूपुर शर्मा पर की गई कोर्ट की टिप्पणी पर विरोध जताया। इस चिट्ठी में इन 117 लोगों ने अपने साइन किए हुए हैं। इन लोगों में 15 रिटायर्ड जज (Retired Judges), 77 रिटायर्ड नौकरशाह ( Retired Bureaucrats ) औऱ 25 रिटायर्ड आर्म्ड फोर्सेस ( Retired Armed Forces) के अधिकारी शामिल हैं। उनका कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता के मौलिक अधिकार की रक्षा करने के बजाय, याचिका पर संज्ञान लेने से इनकार कर दिया। और हाईकोर्ट में अपील करने पर मजबूर किया। यह जानते हुए भी कि हाईकोर्ट के पास ट्रांसफर करने का अधिकार क्षेत्र नहीं है।