नई संसद के उद्घाटन को लेकर विवाद थमता नजर नहीं आ रहा है। अब सेंगोल के लेकर नई बहस छिड़ गई है। कांग्रेस ने सेंगोल को पॉवर ट्रांसफर का प्रतीक का मानने से इनकार कर दिया है। कांग्रेस की इस बात पर अमित शाह ने कांग्रेस को भारतीय परंपरा का विरोधी बता दिया। अमित शाह ने कहा कि आखिर कांग्रेस को भारतीय परंपरा से इतनी नफरत क्यों है।
कांग्रेस को भारतीय परंपरा से नफरत क्यों
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने संगोल को नई संसद में स्थापित करने को लेकर इसे कपोर कल्पना बता दिया। उन्होंने कह दिया कि जिस सेंगोल को पॉवर ट्रांसफर का प्रतीक बोल कर भाजपा इसे संसद में स्थापित करने वाली है वो तो इसका चिह्न है ही नहीं। इसका कोई दस्तावेज ही नहीं है। इस पर अमित शाह ने पूछ लिया कि आखिर कांग्रेस को भारतीय परंपरा से इतनी नफरत क्यों है।
इधर सेंगोल पर समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि ऐसा लगता है कि अब भाजपा ने मान लिया है कि सत्ता सौंपने का वक्त आ गया है. हर कोई अपनी तरह से इस सेंगोल को देख रहा है। JDU तो नई संसद के उद्घाटन के विरोध में कल अनशन पर बैठेगी। JDU के नेता केसी त्यागी ने कहा कि सेंगोल को इस तरह ये स्थापित किया जा रहा है कि जैसे ये कोई राजा-रजवाड़े का समय है, उन्हें पता नहीं क्या कि अब भारत में लोकतंत्र है।
सेंगोल की स्थापना को लेकर विपक्ष के सवालों पर भाजपा नेता पलटवार कर रहे हैं। भाजपा नेता स्मृति ईरानी ने कहा कि सेंगोल हमारे भारत के लोकतंत्र का प्रतीक है. ये हमारे भारत के गौरवशाली और स्वर्णिम इतिहास का प्रतीक माना जाता है। कांग्रेस ने तो इस सेंगोल को वॉकिंग स्टिक की तरह एक बंद अंधेरे में रखा हुआ था। अब जब इसकी असली जगह पर सेंगोल को राजस्थान पहुंचा रही है।
Transfer Of Power का है प्रतीक
सेंगोल के बारे में इतिहास बताता है कि देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने साल 1947 में अंग्रेजों से ये सेंगोल स्वीकार किया था। जब भारत को आजादी मिली थी। यह सत्ता के हस्तांतरण यानी Transfer Of Power का प्रतीक है। यह सदियों पुरानी परंपरा है, जिसे तमिल भाषा में सेंगोल कहा जाता है। आजादी के 75 साल बाद भी जनता को इसकी जानकारी नहीं है।
दरअसल सेंगोल को संग्रहालय में नहीं रखा जाता। यह उसके पास रहता है जिसे सत्ता या शक्ति दी जाती है या स्थानानंतरित की जाती है। खुद प्रधानमंत्री मोदी ने सेंगोल के बारे में रिसर्च करवाई हुई है। इसके बाद इसे देश के सामने संसद भवन में स्पीकर की कुर्सी के बगल रखने का फैसला लिया गया। इससे पहले यह सेंगोल इलाहाबाद में रखा हुआ था।