बेंगलुरू। इसरो ने चंद्रयान-3 के पेलोड्स की असेंबलिंग शुरू कर दी है। ये काम बेंगलुरू में हो रहा है। इसरो को पूरी उम्मीद है कि वह जुलाई में चंद्रयान-3 (Chandrayaan-3) की लॉन्चिंग कर देगा। अगर किसी तरह की तकनीकी दिक्कत नहीं आती है या फिर मौसम गड़बड़ नहीं होगा, तो लॉन्च विंडो में ज्यादा बदलाव होने की आशंका कम है। चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) में हुई गलतियां इस बार नहीं होंगी, क्योंकि इस बार चंद्रयान-3 की लैंडिंग तकनीक को सुधारा गया है। उसे नए तरीके से बनाया गया है। चंद्रयान-3 मिशन में इसरो सिर्फ लैंडर और रोवर भेजेगा, जबकि चंद्रमा के चारों तरफ चक्कर लगा रहे चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर-रोवर का संपर्क बनाया जाएगा।
हो चुकी है लैंडर और रोवर की टेस्टिंग
पिछले साल बेंगलुरु से 215 किलोमीटर दूर छल्लाके रे के पास उलार्थी कवालू में चांद के नकली गड्ढे बनाए गए थे। जिनमें लैंडर और रोवर की टेस्टिंग की जा रही थी। चंद्रयान-3 में ज्यादातर प्रोग्राम पहले से ही ऑटोमैटिक हैं। सैकड़ों सेंसर्स लगाए गए हैं, जो इसकी लैंडिंग और अन्य कार्यों में मदद करेंगे। लैंडर की लैंडिंग के समय ऊंचाई, लैंडिंग की जगह, गति, पत्थरों से लैंडर को बचाने में ये सेंसर्स मदद करेंगे।
वैज्ञानिक पूरी तरह चौकस
सेंसर्स के अनुसार ही लैंडर अपनी दिशा, गति और लैंडिंग साइट का निर्धारण करेगा। इस बार वैज्ञानिक कोई गलती नहीं करना चाहते, क्योंकि चंद्रयान-2 में सेंसर्स और बूस्टर्स में दिक्कत आने की वजह से उसकी हार्ड लैंडिंग हुई थी। चंद्रयान-2 सतह से करीब 350 मीटर की ऊंचाई से तेजी से घूमते हुए जमीन पर गिरा था। साइंटिस्ट चाहते हैं चंद्रयान-2 के ऑर्बिटर से लैंडर और रोवर का संपर्क बना रहे, ताकि किसी भी तरह की सूचना प्राप्त करनी हो तो ऑर्बिटर के जरिए आसानी से मिल सके।