दिल्ली, पश्चिम बंगाल के बाद अब दक्षिण के राज्यों में सीएम और राज्यपाल के बीच का विवाद गहराता नजर आ रहा है। दिल्ली में तो सीएम-उपराज्यपाल के बीच विवाद के बात आम हो गई थी लेकिन अब देश के दक्षिण में बसे राज्यों में भी यह विवादित नजारा देखने को मिल रहा है। बीते कुछ समय में दिल्ली के अलावा दक्षिण के 5 राज्यों में विवाद देखने को मिल रहा है। आए दिन सीएम और राज्यपाल एक-दूसरे के कार्यो में रोड़े अटकाने का आरोप लगाते रहते हैं। लेकिन आखिर ये विवाद पैदा क्यों होता है। इसकी जड़ को पहले समझते हैं।
राज्यपाल के होते हैं ये अधिकार
किसी प्रदेश के राज्यपाल को राष्ट्रपति नियुक्त करता है। संविधान में एक राज्यपाल को दो प्रदेशों की भी जिम्मेदारी भी दी जा सकती है। राज्य का राज्यपाल दोहरी भूमिका में होता है। राज्यपाल को प्रदेश के मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य होता है। राज्यपाल को केंद्र और राज्य के बीच की एक अहम कड़ी होता है। यानी केंद्र और राज्य के बीच सामंजस्य बनाने के लिए राज्यपाल एक अहम भूमिका अदा करता है। किसी प्रदेश के राज्यपाल को किसी अपराधी को क्षमादान देने का भी अधिकार है। इसके अलावा राज्यपाल को प्रदेश के मंत्रिपरिषद की सलाह मानने को बाध्य होता है। ये मंत्रिपरिषद राज्यपाल के कार्यों में सहायता और सलाह देने के लिए ही बनाया जाता है। राज्यपाल प्रदेश के किसी विधेयक को विधानसभा में पारित होने के बाद अपनी मंजूरी देता है। तभी वो प्रदेश में लागू हो पाता है। अगर राज्यपाल ने उस पारित हुए विधेयक पर अपनी सहमति नहीं दी है तो उसे रद्द करना पड़ता है। इसके अलावा राज्यपाल इस विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए भी भेजता है।
सीएम से क्यों है हितों का विवाद
प्रदेश का मुख्यमंत्री संविधान में दर्ज नियमों के अनुसार राज्य के कार्यों को संचालित करता है और नई नीतियां बनाता है। वहीं राज्यपाल केंद्र से नियुक्त होता है, वह राज्य में संचालित हो रहे कार्यों की देखरेख एक तरह से निगरानी रखता है। राज्यपाल प्रदेश के कार्यों को लेकर सीएम को सलाह देते हैं औऱ अगर उस सलाह के अनुरूप कार्य नहीं किया जा रहा है तो ये विवाद की जड़ बन जाते हैं। यहीं से सारे विवाद आगे बढ़ जाते हैं। क्योंकि जो प्रदेश का मुख्यंमत्री होता है वह मंत्रिमंडल का प्रधान है इसलिए प्रदेश को चलाने के लिए वास्तविक शक्तियां सीएम के हाथ में ही होती हैं। इस बीच किसी अनियमितता को लेकर अगर राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट केंद्र को दे दी, तो इससे विवाद और गहरा जाता है।
अब अगर देखा जाए तो दक्षिण के राज्यों में कर्नाटक को छोड़कर किसी भी राज्य में भाजपा की सरकार नहीं है और केंद्र में भाजाप की सरकार है वहीं पिछले 6 सालों से राष्ट्रपति NDA के समर्थन के नियुक्त हुए हैं। राषट्रपति और केंद्र की सलाह पर ही राज्यों में राज्यपाल नियुक्त किए जाते हैं। दक्षिण के राज्यों जैसे तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना के अलावा दिल्ली और पश्चिम बंगाल में भी गैर भाजपा की सरकार है। इसलिए ये राज्य इन राज्यपालों को भाजपा समर्थित मानते हैं जिससे अधिकारों की लड़ाई हितों के टकराव में बदल जाती है।
ये हो चुके हैं विवाद
राज्यपाल-सीएम के विवादों में सबसे पहला नाम तो देश की राजधानी दिल्ली का ही आता है। यहां जब-तब आप आदमी के मुखिया और सीएम अरविंद केजरीवाल से उपराज्यपाल के विवाद सुर्खियों में रहते हैं। पहले अनिल बैजल से तो अब विनय सक्सेना है। हाल ही में उपजा आबकारी नीति विवाद इसकी बानगी है। वहीं दूसरे राज्य की बात करें तो इसमें पश्चिम बंगाल का नाम आता है। यहां TMC मुखिया और सीएम ममता बनर्जी से पहले पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ के विवाद पूरे देश की सुर्खियां बने थे।
तो अब केरल में राज्यपाल औऱ सीएम का विवाद गहराता जा रहा है। यहां के राज्यपाल आरिफ खान ने सीएम पिनाराई विजयन को वित्त मंत्री केएन बालगोपाल को बर्खास्त करने की मांग की है। उन्होंने यह मांग की क्यों कि उनका आरोप था कि वित्त मंत्री बालगोपाल ने तिरुवनंतपुरम के एक विश्वविद्यालय में भाषण दिया था जिसमें उन्होंने क्षेत्रवाद को भड़काकर देश की एकता को चोटिल और अशांति फैलाने का काम किया है। यह मांग केरल के सीएम मानने को तैयार नहीं है उल्टा वह अब राज्यपाल को ही अब प्रदेश से हटाने की जुगत में लग गए हैं।