कांग्रेस के अध्यक्ष पद के रूप में मल्लिकार्जुन खड़गे नियुक्त तो हो चुके हैं पर अब कई मोर्चों पर उनकी अग्निपरीक्षा भी शुरू हो गई है। इसमें राजस्थान के बाद दूसरा नंबर आता है यूपी का। क्योंकि यूपी में कांग्रेस लंबे अरसे से अपने वजूद के लिए संघर्ष कर रही है। पिछले चुनावों में सिलसिलेवार मिली हार से कांग्रेस पूरी तरह टूट चुकी है अब मलिकार्जुन खड़गे डूबते को तिनके का सहारा बने हुए नजर आ रहे हैं।
हाल ही में कांग्रेस ने यूपी के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में बृजलाल खबरी को नियुक्त किया है जो कि दलित वर्ग से आते हैं अब अगर यहां पर गौर फरमाया जाए तो देखेंगे कि मल्लिकार्जुन खड़गे और बृजलाल खबरी दोनों ही दलित वर्ग से हैं इसका मतलब यह है कि कांग्रेस यूपी और केंद्र में दलित कार्ड का भरपूर इस्तेमाल करेगी।
मायावती का कांग्रेस पर पलटवार
कांग्रेस की मंशा को भांपते हुए बसपा सुप्रीमो मायावती ने कांग्रेस पर पलटवार किया है। उन्होंने बीते गुरुवार ट्वीट कर कहा कि कांग्रेस का इतिहास गवाह है कि इन्होंने दलितों और उपेक्षितों के मसीहा बाबासाहेब डॉक्टर भीमराव अंबेडकर और उनके समाज का हमेशा तिरस्कार किया। मायावती ने आगे कहा कि कांग्रेस को अपने अच्छे दिनों में गैर दलितों और सत्ता से बाहर रहने पर बुरे दिनों में दलितों को आगे रखने की याद आती है।
क्या यूपी से खड़गे को मिले सबसे ज्यादा वोट
उत्तर प्रदेश के परिप्रेक्ष्य में अगर देखा जाए तो कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष के चुनाव में मलिकार्जुन खरगे ने शशि थरूर को भले ही जबरदस्त लीड दी है लेकिन इसमें यूपी की बड़ी भूमिका नजर आ रही है अब यह तो कहा नहीं जा सकता कि यूपी से किसे कितने वोट मिले लेकिन जिस तरह से यूपी की पीसीसी मल्लिकार्जुन खड़गे के साथ खड़ी रही उससे यह साफ पता चलता है किस देश में सबसे ज्यादा वोटर्स वाले यूपी ने जीत के अंतर को बढ़ाने में अपनी प्रभावी भूमिका निभाई।
क्योंकि जब बीते 11 अक्टूबर को मल्लिकार्जुन खड़गे लखनऊ आए तो उससे 1 दिन पहले ही सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव का निधन हो गया था और प्रदेश में 3 दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया था। मुलायम सिंह यादव के अंतिम संस्कार में भी शामिल हुए थे जिसके बाद भी लखनऊ पीसीसी कार्यालय पहुंचे थे जब पीसीसी कार्यालय पहुंचे तो यहां पर पीसीसी सदस्यों का उन्होंने बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया था।
खड़गे-खाबरी दिलाएंगे कांग्रेस को अवसर
अब अगर कांग्रेस की रणनीति के बारे में बात करें तो खड़गे और खाबरी के जरिए कांग्रेस दलितों के बीच अपनी पैठ बढ़ाने के अवसर के रूप में देख रही है। क्योंकि बसपा से लगातार दलितों का वोट खिसकता जा रहा है जिस पर कांग्रेस अपनी नजर बनाए हुए हैं। क्योंकि 1989 के पहले दलित कांग्रेस के परंपरागत वोट बैंक का अहम हिस्सा होते थे लेकिन मायावती के आने के बाद से यह वोटर्स बसपा के पाले में जाते रहे और कांग्रेस का खाता खाली होता गया।
28 साल बाद यूपी में दलित अध्यक्ष
यहां आपको यह भी बता दे कि जब तक यूपी में कांग्रेस की सरकार रहेगी तब तक उसकी राजनीति का केंद्र बिंदु दलित ब्राह्मण और मुस्लिम के त्रिकोण पर ही था। लेकिन अगर कांग्रेस का मुकाबले में दूसरी पार्टियों को देखा जाए तो भाजपा और सपा ने अपना पूरा फोकस ओबीसी वर्ग पर किया है जिसका फायदा उन्हें मिला भी है। इसलिए यहां तस्वीर बिल्कुल साफ है कि कांग्रेस ने बेहद सोच समझकर ही यदि यह रणनीति बनाई कि अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाले व्यक्ति को 28 साल बाद प्रदेश का अध्यक्ष बनाया। खाबरी से पहले महावीर प्रसाद जो 1991 से 1994 तक कांग्रेस के अध्यक्ष रहे थे वह भी दलित समाज से ही थे।
बृजलाल खबरी के प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के कुछ दिन बाद ही मल्लिकार्जुन खड़गे का कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनना पार्टी के लिए सोने पर सुहागा सिद्ध हो रहा है। अब देखना यह है कि कांग्रेस ने जिस रणनीति के आधार पर यह नियुक्तियां की है क्या यह आने वाले चुनाव में उसे उसका फल दे पाएंगे, या फिर प्रदेश में और देश में डूबते अपने वजूद के लिए संघर्ष जारी रहेगा।
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