Kaveri Water Dispute : बेंगलुरू। कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच बढ़ा कावेरी विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। कावेरी जल विवाद के चलते अलग-अलग संगठनों ने आज बेंगलुरु में बंद बुलाया। जिसका सुबह से ही बेंगलुरु में असर दिखाई दे रहा है। बंद के चलते बेंगलुरु की रफ्तार थम गई है और सड़कों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। वहीं, स्कूल-कॉलेज भी बंद रहे। पुलिस प्रशासन ने किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना की आशंका के चलते धारा 144 लागू कर रखी है। विरोध कर रहे प्रो-कन्नड़ संगठनों ने शुक्रवार 29 सितंबर को भी पूरे राज्य में बंद का ऐलान किया है।
किसान नेता कुरुबुरु शांताकुमार के नेतृत्व में किसान संघों और अन्य संगठनों के प्रमुख संगठन ‘कर्नाटक जल संरक्षण समिति’ की ओर से आज बेंगलुरु बंद बुलाया गया है। ऑटो और टैक्सियों का संचालन करने वाले संघों और यूनियनों ने समर्थन दिया है। लेकिन, होटल ओनर्स एसोसिएशन ने ऐन वक्त पर समर्थन वापस लेने का फैसला लेते हुए कहा कि आज सभी होटल और रेस्तरां खुले रहेंगे। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धरमैया पहले ही कह चुके है कि राज्य सरकार प्रदर्शनकारियों को नहीं रोकेगी, लेकिन शांति व्यवस्था जरूरी है।
बंद का क्या पड़ा असर
बेंगलुरु में बंद के चलते स्कूल और कॉलेज नहीं खुले। इसके अलावा होटल और रेस्त्रां भी बंद रहे। प्रदर्शनकारियों ने तमिलनाडु से आने वाली बसों को भी रोक दिया। केएसआरटीसी स्टाफ एंड वर्कर्स फेडरेशन ने बेंगलुरु मेट्रोपॉलिटन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन (बीएमटीसी) के आह्वान पर सुबह 6 से शाम 6 बजे तक डिपो से कोई भी बस नहीं चलाई गई। हालांकि, राज्य के बस परिवहन निगम बीएमटीसी ने कहा है कि उनकी बसें सभी रूटों पर सामान्य रूप से परिचालन करेंगी।
धारा 144 लागू
बेंगलुरू में बंद के चलते धारा 144 लागू की गई है। साथ ही तमिलनाडु-कर्नाटक बॉर्डर पर चप्पे-चप्पे पर पुलिस तैनात की गई है। पुलिस ने बिना परमिशन मार्च निकालने के आरोप में कर्नाटक जल संरक्षण समिति अध्यक्ष सहित दर्जनों लोगों को हिरासत में लिया है। वहीं, पूर्व मुख्यमंत्री कुमारस्वामी ने बंद के दौरान हिरासत में लिए गए प्रदर्शनकारियों की रिहाई की मांग की है।
क्या है कावेरी जल विवाद?
दरअसल, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीच कावेरी नदी से जुड़ा विवाद 140 साल पुराना है। साल 1881 में मैसूर यानी कर्नाटक ने कावेरी पर बांध बनाने का फैसला किया। जिसका मद्रास यानी तमिलनाडु विरोध किया। साल 1924 में ब्रिटिश सरकार ने दोनों राज्यों के बीच समझौता कराने की पहल की, लेकिन समाधान नहीं मिला। इसके बाद 1974 में कर्नाटक ने तमिलनाडु की इजाजत के बिना नदी का रुख मोड़ना शुरू कर दिया। जिस पर 1990 में कावेरी वॉटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल का गठन किया गया। जिसने कर्नाटक को आदेश दिया कि तमिलनाडु को हर महीने पानी दिया जाएं।
साल 2007 में कावेरी वॉटर डिस्प्यूट ट्रिब्यूनल ने तमिलनाडु को 419 हजार मिलियन क्यूबिक फीट और कर्नाटक को 270 हजार मिलियन क्यूबिक फीट हर साल पानी देने का आदेश दिया। लेकिन, साल 2016 में तमिलनाडु सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और कर्नाटक से कम पानी मिलने की बात कहीं। जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने साल 2018 में तमिलनाडु को हर 404.25 हजार मिलियन क्यूबिक फीट और कर्नाटक को 284.75 हजार मिलियन क्यूबिक फीट पानी देने का आदेश दिया। लेकिन, इसी साल 13 सितंबर को कावेरी वाटर मैनेजमेंट अथॉरिटी ने आदेश दिया कि कर्नाटक अगले 15 दिन तक तमिलनाडु को कावेरी नदी से 5 हजार क्यूसेक पानी दे। जिसका कर्नाटक के किसान संगठन, कन्नड़ संस्थाएं और विपक्षी पार्टियां विरोध कर रही है।
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