बेंगलुरू। मानव स्वाभाविक रूप से बहुत कम उम्र से ही चेहरों को पहचानने और याद रखने की क्षमता रखता है। नवजात शिशु चेहरे देखने में रुचि दिखाते हैं और जैसे-जैसे वे बड़े होते हैं, उनकी यह क्षमता अधिक परिष्कृत होती जाती है। चेहरे की पहचान को अक्सर समग्र प्रसंस्करण की विशेषता होती है, जहां मस्तिष्क व्यक्तिगत विशेषताओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय समग्र रूप से चेहरों को देखता है और याद रखता है। बता दें कि मनुष्य लंबे समय तक लोगों और रिश्तों को याद रखने की अपनी क्षमता के लिए जाने जाते हैं, लेकिन यह आश्चर्यजनक जानकर सामने आई है कि वानरों में यह क्षमता इंसानों से ज्यादा होती है।
यह खबर भी पढ़ें:-IISC का फुल प्रूफ वैक्सीन करेगी कोरोना के सभी वेरिएंट का होगा जड़ से सफाया!
आई-ट्रैकिंग परीक्षण से किया अध्ययन
हाल ही में हुए अध्ययन में दिलचस्प निष्कर्ष सामने आए हैं, जिसमें बताया गया है कि चिंपैंजी और बोनोबोस 26 साल तक अलग रहने के बाद भी परिचित चेहरों को पहचानने की अद्भुत क्षमता रखते हैं। एक आई-ट्रैकिंग परीक्षण के माध्यम से, शोधकर्ताओं ने देखा कि वानरों के पास चेहरों को याद रखने और पहचानने की गजब की क्षमता होती है। विशेष रूप से, उनकी टकटकी की अवधि उनके पिछले रिश्तों की गुणवत्ता के साथ सह-संबद्ध प्रतीत होती है, साथ ही उन लोगों पर लंबी नजरें निर्देशित होती हैं, जिनके वे करीब थे।
वानरों से ही मनुष्यों का हुआ विकास
ये खोज इस धारणा को समर्थन देती है कि मनुष्यों के पूर्वज वानर थे और उनमें याद रखने की क्षमता चिंपैंजी और बोनोबोस से ही विकसित हुई है, जो संभवतः लाखों साल पहले एक सामान्य पूर्वज से उत्पन्न हुई थी। शोध की पहली लेखिका डॉ. लॉरा लुईस ने बताया, ‘ये परिणाम अब तक गैर-मानव जानवरों में पाई गई सबसे लंबी दीर्घकालिक यादों में से कुछ का प्रतिनिधित्व करते हैं।’
यह खबर भी पढ़ें:-8 साल पहले रहस्यमयी तरीके से गायब हुआ था वायुसेना का विमान… अब समंदर में मिला मलबा