पंचतत्व में विलीन हुए मेजर आशीष धौंचक, मां ने जोड़े रखे हाथ…तिरंगे से लिपट खूब रोए पिता

आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए मेजर आशीष धौंचक का शुक्रवार दोपहर उनके पैतृक गांव बिंझौल में सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया।

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Major Ashish Dhonchak : जम्मू-कश्मीर में अनंतनाग जिले के कोकेरनाग में 13 सितंबर को आतंकियों से मुठभेड़ में शहीद हुए मेजर आशीष धौंचक का शुक्रवार दोपहर उनके पैतृक गांव बिंझौल में सैन्य सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया। इस मौके पर चचेरे भाई मेजर विकास ने शहीद को मुखाग्नि दी।

इससे पहले सिख रेजीमेंट के अधिकारियों व जवानों ने सशस्त्र सलामी दी। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार किया गया। इस मौके पर हर किसी की आंखें नम थी और भारत माता की जय…मेजर आशीष अमर रहे की नारों में आसमान गुंजायमान हो उठा।

इससे पहले शहीद मेजर आशीष के पार्थिव शरीर को शुक्रवार सुबह पानीपत में टीडीआई सिटी स्थित उनके नए मकान पर लाया गया। यहां पर अंतिम दर्शन के लिए जनसैलाब उमड़ा पड़ा। बता दें कि इस मकान को आशीष दो साल से बनवा रहे थे और अक्टूबर में अपने बर्थडे पर गृह प्रवेश का प्लान था। लेकिन, उनके शहीद होने के बाद सबसे पहले उनकी पार्थिव देह को यहां पर लाया गया।

अंतिम यात्रा में उमड़ा जन सैलाब

Major Ashish Dhonchak1 | Sach Bedhadak

इसके बाद सैन्य अधिकारी और परिवार वाले मेजर के पार्थिव शरीर को लेकर गांव बिंझौल पहुंचे। अंतिम यात्रा के साथ शहीद मेजर आशीष की बहनें और मां भी बिंझौल आईं। शहीद की अंतिम यात्रा के साथ एक किलोमीटर लंबे काफिले में करीब 10 हजार लोग शामिल हुए। अंतिम यात्रा में शामिल लोग जब तक सूरज चांद रहेगा… आशीष तेरा नाम रहेगा, भारत माता की जय और मेजर आशीष अमर रहे… के नारे लगाते नजर आए।

मां पूरे रास्ते हाथ जोड़े रहीं और भाई को सैल्यूट करती रही बहन

खास बात ये रही कि मां पूरे रास्ते में हाथ जोड़े रहीं, जबकि बहन भाई को सैल्यूट करती रही। इस दृश्य को जिस किसी ने भी देखा खुद को रोने से नहीं रोक सका। सड़क के दोनों तरफ खड़े लोगों ने आशीष की पार्थिव देह पर फूल बरसाकर उन्हें विदा किया। झुग्गी झोपड़ी में रहने वाली महिलाओं ने भी शहीद मेजर आशीष को सैल्यूट कर नम आंखों से विदाई दी।

पहले ही प्रयास में लेफ्टिनेंट बने थे आशीष

23 अक्टूबर 1987 को जन्मे आशीष 1 जून 2013 को भारतीय सेवा में लेफ्टिनेंट बने और देहरादून में ट्रेनिंग हुई। वो पहले ही प्रयास में एसएसबी की परीक्षा पास कर लेफ्टिनेंट बने थे और जम्मू कश्मीर में पहली पोस्टिंग मिली थी। इसके बाद बठिंडा और मेरठ सेवाएं दी। दो साल पहले ही उनकी पोस्टिंग जम्मू कश्मीर में हुई थी। वो पढ़ाई के साथ-साथ बैडमिंटन के भी अच्छे खिलाड़ी थे।

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