Monkey Pox Symptoms : पूरे विश्व में कोरोना का कहर बरपा हुआ है। अभी लोगों को इससे निजात भी नहीं मिली थी कि अब एक और महामारी से लोगों को खतरा हो गया है। पिछले कई दिनों से मंकीपॉक्स की कई खबरें मीडिया में छाई हुई हैं। अफ्रीका से निकला यह वायरस अब भारत में भी दस्तक दे चुका है। दिल्ली में एक तो केरल में इसके दो मामले दर्ज हो चुके हैं। इसके अलावा विश्व के लगभग 70 देशों में इस वायरस के मामले सामने आ चुके हैं।
मंकीपॉक्स को WHO ने इमरजेंसी की घोषित
मंकीपॉक्स के इन हालातों के देखते हुए बीते शनिवार विश्व स्वास्थ्य संगठन ( WHO ) ने मंकीपॉक्स को ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दिया है। इसके साथ ही WHO ने इस बीमारी से जल्द निपटने के लिए तरीके तलाशने शुरू कर दिए, जिसके लिए विश्व के वरिष्ठ विशेषज्ञों की टीम ने अनुसंधान करना भी शुरू कर दिया है।
इन सब के बीच हर किसी के मन में ये सवाल जरूर उठ रहा है की आखिर ये बीमारी है क्या, किससे और कैसे यह एक दूसरे में फैल रही है। तो इसके लिए आपको इस बीमारी के बारे में पूरी जानकारी पता होनी चाहिए।
1950 में पहली बार बंदरों में पाया गया था वायरस
सबसे पहले आपको इस बीमारी के बारे के बारे में जानना होगा, दरअसल मंकीपॉक्स को 1950 के दशक में बंदरों में पाया गया था। लेकिन 1970 तक यह इंसानों में फैल गया, यह जंगली जानवरों और कुछ कुतरने वाले जानवरों में भी पाया गया था। इस बीमारी के मामले अफ्रीका में ज्यादा पाए गए थे।
मंकीपॉक्स से प्रभावित लोगों के शुरुआती लक्षणों में तेज बुखार, सिर दर्द, शरीर में सूजन, कमर दर्द और मांशपेशियों में दर्द शामिल है। बुखार होने पर त्वचा पर रैशेज हो जाते हैं।इसकी शुरुआत चेहरे से होती है, फिर यह धीरे धीरे पूरे शरीर में फैल जाती है। इसके अलावा हथेलियों और पैरों के तलवों में बहुत खुजली होती है। यहां तक कि खुजली से दर्द भी हो जाता है।
इसके बाद इसमें पपड़ी तक पड़ जाती है। और सूख कर गिर जाती है। जिसके बाद घाव के गहरे निशान भी पड़ जाते हैं लेकिन।
आम तौर पर यह संक्रमण 15 से 21 तक रहने के बाद अपने आप ठीक हो जाता है। लेकिन गंभीर हालत होने पर इसके उचित इलाज की जरूरत भी पड़ती है।
संक्रमित व्यक्ति से आंख, नाक, मुंह के रास्ते फैलता है वायरस
यह संक्रमण एक दूसरे से फैलता भी है। किसी संक्रमित व्यक्ति से यह इसके संपर्क में रहे लोगों में तेजी से फैलता है। इसका वायरस इंसान की त्वचा पर आंख, नाक या मुंह के रास्ते से जा सकता है। इसलिए अगर कोई व्यक्ति इससे संक्रमित है, तो उससे दूर रहकर खुद को इससे बचाया जा सकता है। दशकों तक एक ही समुदाय को प्रभावित करने वाला यह वायरस चेचक से काफी हद तक मिलता जुलता है। इसके टीके और उपचार भी उपलब्ध हैं। चेचक का टीका इस बीमारी पर काफी हद तक काम करता है।