हाइपरएक्टिव सिंड्रोम (Hyperactivity Syndrome) एक डिसऑर्डर है जो बच्चों और युवाओं में पाया जाता हैं। जिसमें हाइपरएक्टिविटी, ध्यान कमजोरी और हेरिडिट्री प्रभावों की एक समूहिकता होती है। ये डिसऑर्डर आमतौर पर बचपन से ही शुरू होता है और यह व्यक्ति के डेली लाइफ, सोशल इंटरेक्शन और शैक्षिक कार्यों पर असर डालता है।
हाइपरएक्टिव सिंड्रोम के लक्षणों में सक्रियता, अस्थिरता, ध्यान कमजोरी, बातचीत में मुश्किल, असंयमितता, उत्तेजना और अधिक गतिशीलता शामिल हो सकती हैं। ये सिंड्रोम आमतौर पर काफी हाई लेवल की एनर्जी के साथ आता है। आमतौर पर व्यक्ति को स्थिरता और अचलता की कमी के कारण संघर्षपूर्ण कार्यों को ठीक से करने में परेशानी पहुँचा सकता है।
ये सिंड्रोम मेकिडिकल लैंग्वेज में एड/एडीएचडी (Attention-Deficit/Hyperactivity Disorder) के नाम से भी जाना जाता है। इसके लिए कई तरह की मेडिकल साइंस तकनीकें, जैसे कि मेडिसिन, बिहेवियर थेरेपी, एडमिनिस्ट्रेव थेरेपी आदि का उपयोग किया जाता है।
Hyperactivity Syndrome के लक्षण कुछ इस प्रकार है-
काफी ज्यादा एक्टिव होना
इस सिंड्रोम में इंसान काफी एक्टिव लगता है और स्थिर नहीं बैठ सकता है। ऐसे लोग बिना रुके कोई भी काम करते रहते हैं। यहां तक ही आपको सुने बिना ही कुछ न कुछ बोलते रहते हैं।
काम अटेंटिव रहना
इस सिंड्रोम में व्यक्ति का अटेंशन लेवल काफी कम हो जाता है और उसे नहीं पता होता कब सेंसेटिव रहना है। इस वजह से उसके सोशल रिलेशंस भी खराब हो सके हैं।
बिना सोचे समझे काम करना
सिंड्रोम में व्यक्ति को क्योंकि काफी ज्यादा सोचा और परेशान रहता है इसलिए हो सकता है कि, बिना सोचे-समझे कुछ भी बोल दे, इसके अलावा इंपुल्सीव फैसले लेना और काम करना इस सिंड्रोम के लक्षण हैं।
अटेंशन की कमी
व्यक्ति को अपना ध्यान एक जगह रखने में परेशानी हो सकती है। ऐसे व्यक्ति अक्सर चीजें जल्दी भूल जाते हैं। इनके आइडियाज और समझने की क्षमता में कमी हो सकती है।
यदि आपको या किसी आस पास के व्यक्ति में आपको ऐसे लक्षण दिखाई देते हैं तो आपको डॉक्टर से संपर्क करना चाहिए। हालांकि डॉक्टर्स और साइंटिस्ट हाइपरेक्टिव सिंड्रोम का कोई हल अब तक निकल नहीं पाए हैं लेकिन कई तरह की थेरेपी हाइपरेक्टिव सिंड्रोमको कम करने में मददगार साबित हो सकती हैं।