अजमेर: देश में इन दिनों सच्ची घटनाओं पर आधारित फिल्मों का ट्रेंड चल रहा है जहां बीते दिनों फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ और ‘केरल स्टोरी’ ने तहलका मचा दिया जहां लोगों को इन दोनों घटनाओं के पीछे छुपी असलियत के बारे में पता चला. अब और कहानी बॉक्स ऑफिस पर सनसनी मचाने के लिए तैयार है जिसका सीधा कनेक्शन राजस्थान के अजमेर से है. जी हां, राजस्थान के अजमेर जिले में 1992 में एक ऐसा कांड सामने आया जिसने पूरे प्रदेश ही नहीं बल्कि देशभर में खलबली मचा दी. आज से करीब 30 साल पहले अजमेर में कुछ रसूखदार और राजनीति के गलियारों में सिक्का चलाने वाले लोगों ने करीब 300 स्कूल की लड़कियों का ब्लैकमेल, रेप और जबरन वेश्यावृत्ति के दलदल में भी धकेला गया.
वहीं इन लड़कियों की अश्लील तस्वीरें भी वायरल की गई. अजमेर के इस MMS कांड पर अब निर्देशक अभिषेक दुधैया वेब सीरीज लेकर आ रहे हैं. माना जा रहा है कि राजस्थान के चुनावी साल में इस फिल्म के आने के बाद सत्ता से लेकर सियासी गलियारों में काफी हलचल हो सकती है क्योंकि इस पूरे कांड में जिन लोगों पर आरोप लगा उनका सीधा नाता युवा कांग्रेस से था. आइए जानते हैं कि 1992 में ऐसा क्या हुआ था जिसकी गूंज आज 30 साल बाद भी सुनाई दे रही है.
21 अप्रैल 1992 को हिल गया था राजस्थान
दरअसल 21 अप्रैल 1992 को राजस्थान के अजमेर से निकलने वाले एक स्थानीय अखबार में खबर छपी कि शहर में दिनदहाड़े और काफी समय से एक सेक्स स्कैंडल चल रहा है जहां कुछ रसूखदार लोग स्कूल में पढ़ने वाली लड़कियों को ब्लैकमेल कर सामूहिक बलात्कार को अंजाम दे रहे हैं. इस अखबार में लगातार इस कांड को लेकर खबर छपती रही और कुछ ही दिन बाद कुछ लड़कियों की फोटो भी छापी गई हालांकि वो धुंधली थी जिसके बाद अजमेर से लेकर राजस्थान भर में तूफान आ गया और लोगों के बीच अजमेर गैंगरेप कांड और अजमेर ब्लैकमेल कांड नाम से चर्चाओं का दौर शुरू हो गया.
इस मामले में अजमेर की प्रतिष्ठित परिवारों और स्कूल-कॉलेज में पढ़ने वाली करीब 300 लड़कियों का यौन शोषण किया गया जहां शहर के रसूखदार परिवार और राजनीति से वास्ता रखने वाले चिश्ती परिवार के नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती पर संगीन आरोप लगे. जब यह मामला उजागर हुआ तो फारुक चिश्ती अजमेर युवा कांग्रेस के अध्यक्ष पद पर था और नफीस चिश्ती के पास उपाध्यक्ष की जिम्मेदारी थी. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अजमेर में उस समय चलने वाले दो रेस्टोरेंट से पूरे मामले की शुरूआत हुई जहां इन लड़कियों को जाल में फंसाया जाता था.
बताया जाता है कि उन रेस्टोरेंट में नफीस चिश्ती और फारुक चिश्ती आते थे और अपनी रईसी से वहां आने वाली लड़कियों के लिए महंगे गिफ्ट और खाना खिलाया जाता था. वहीं नफीस और फारुक के नाम से उनके घर के काम और सारे शौक पूरे कर उनको चंगुल में फंसाया जाता जिसके बाद उनकी मुलाकात नफीस और फारुक से करवाई जाती थी.
ब्लैकमेल कर बनाया जाता था हवस का शिकार
नफीस और फारुक पर आरोप लगे कि दोनों अपने बंगले और फार्महाउसों पर लड़कियों को ले जाकर उनका यौन शोषण करते और अश्लील तस्वीरों लेते थे. वहीं इन फोटों की रील लड़कियों को नहीं दी जाती थी और उनकी फोटो से ही ब्लैकमेल का खेल शुरू होता. रिपोर्ट के मुताबिक लड़कियों पर दबाव बनाकर और लड़कियों को लाने का कहा जाता था जहां बदनामी के डर से लड़कियां इनके जाल में फंसती रही. हालांकि कुछ लड़कियां पुलिस के पास गई लेकिन उसके बाद उन्हें धमकियां मिलने लगी और शहर भर में फोटो आम लोगों तक पहुंचा दी गई.
बताया जाता है कि बदनामी के डर से बाद में कई लड़कियों ने सुसाइड भी कर लिया था. वहीं घटना का खुलासा करने वाले पत्रकार पर कुछ लोगों ने मामले के तूल पकड़ने के बाद हमला किया और उसकी हत्या कर दी गई. इधर इसी साल 7 जनवरी को पत्रकार मदन सिंह के बेटे सूर्य प्रताप सिंह ने अपनी पिता की हत्या का बदला लिया और दिन दहाड़े सवाई सिंह की गोली मारी.
कानूनी पचड़ों में फंसी सैकड़ों चीखें
इस मामले का खुलासा होने के बाद 27 मई 1992 को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (NSA) के तहत नोटिस जारी हुआ और सितंबर में ही पहली चार्जशीट फाइल हुई. पुलिस ने चार्जशीट में 10 लोगों को आरोपी बनाया. हालांकि बीते 30 सालों से ही यह मामला कोर्ट में चल रहा है जहां कुछ पीड़िताएं गवाही देने नहीं आती और कुछ ने बोलने से किनारा कर लिया.
वहीं 1992 के बाद चली कानूनी लड़ाई में 1998 में अजमेर की एक अदालत ने 8 लोगों को आजीवन कारावास दिया जिसके बाद राजस्थान हाईकोर्ट 2001 में चार बरी हो गए जिसके बाद 2003 में सुप्रीम कोर्ट ने बाकी चारों दोषियों की सजा को कम कर 10 साल कर दिया. इस कांड के मुख्य दोषी फारूक चिश्ती ने खुद को कुछ समय बाद पागल घोषित करवाते हुए अपनी सजा कम करवा ली. ऐसे करते-करते समय के साथ अन्य़ दोषी भी रिहा हो गए.