नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार से सुनवाई शुरू की। सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि इन याचिकाओं पर फैसला करते समय वह शादियों से जुड़े ‘पर्सनल लॉ’ पर विचार नहीं करेगा और कहा कि एक पुरुष और एक महिला की धारणा, जैसा कि विशेष विवाह अधिनियम में संदर्भित है, वह लिंग के आधार पर पूर्ण नहीं है।
याचिका से संबंधित मुद्दों को जटिल करार देते हुए पीठ ने मामले में पेश हो रहे वकीलों से धार्मिक रूप से तटस्थ कानून ‘विशेष विवाह अधिनियम’ पर दलीलें पेश करने को कहा। केंद्र की तरफ से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने प्राथमिक आपत्ति का मुद्दा उठाते हुए कहा कि शीर्ष अदालत जिस विषय पर काम कर रही है, वह वास्तव में विवाह के सामाजिक-कानूनी संबंध का निर्माण है, जो सक्षम विधायिका का अधिकार क्षेत्र होगा।
क्या है विशेष विवाह अधिनियम
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 एक ऐसा कानून है, जो विभिन्न धर्मों या जातियों के लोगों के विवाह के लिए एक कानूनी ढांचा प्रदान करता है। यह एक सिविल विवाह को नियंत्रित करता है, जहां राज्य धर्म के बजाय विवाह को मंजूरी देता है।
यह आप तय नहीं कर सकते कि हम कार्यवाही कैसे करेंगे: सीजेआई
सीजेआई ने मेहता से कहा, मुझे खेद है, मिस्टर सॉलिसिटर, हम प्रभारी हैं। अदालत पहले याचिकाकर्ताओं का पक्ष सुनेगी। आप यह निर्धारित नहीं कर सकते कि हम कार्यवाही कै से करेंगे। मैंने अपनी अदालत में कभी इसकी अनुमति नहीं दी। मेहता ने जवाब दिया कि उन्होंने कभी भी अदालत पर चीजें नहीं थोपीं।
यह बहुत संवेदनशील मुद्दा है: मेहता
मेहता ने कहा, यह एक मामला है, बहुत संवेदनशील मुद्दा है, जहां आप प्रारंभिक प्रतिवेदन की जांच करेंगे और फिर मुझे कुछ समय देंगे। हमें इस बात पर विचार करना पड़ सकता है कि इस बहस में और भागीदारी पर सरकार का क्या रुख होगा। न्यायाधीश कौल ने मेहता से पूछा, क्या आप कह रहे हैं कि आप भाग नहीं लेना चाहते हैं? इस पर उन्होंने जवाब दिया, मैं इतनी दूर नहीं जाऊंगा।
मेहता की दलील
मेहता ने कहा कि समस्या तब पैदा होगी जब कोई व्यक्ति, जो हिंदू है, हिंदू रहते हुए समलैंगिक विवाह का अधिकार प्राप्त करना चाहता है। हिंदू, मुस्लिम और अन्य समुदाय प्रभावित होंगे और इसलिए राज्यों को सुना जाना चाहिए।
पीठ का सवाल
पीठ ने कहा, हम ‘पर्सनल लॉ’ की बात नहीं कर रहे हैं और अब आप चाहते हैं कि हम इस पर गौर करें। क्यों? आप हमें इसे तय करने के लिए कैसे कह सकते हैं? हमें सब कुछ सुनने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता। मेहता ने कहा कि तब यह मुद्दे को ‘शॉर्ट सर्किट’ करने जैसा होगा और केंद्र का रुख यह सब सुनने का नहीं है। इस पर प्रधान न्यायाधीश ने कहा, हम मध्यमार्ग अपना रहे हैं। हमें कुछ तय करने के लिए सब कुछ तय करने की जरूरत नहीं है।