भारतीय महिला के जीवन में 16 श्रंगार की बहुत मान्यता है। त्योहारों व शादी समारोह में महिलाएं शौक से सज धजकर तैयार होती है। इन्हीं श्रंगारों में हाथ में पहनने वाली चुड़ी भी होती है। यह एक पारंपरिक गहना है। दक्षिण भारत में इसका चलन सबसे अधिक है, यहां कुंवारी लड़कियां भी कांच की चुड़ियां पहनती है। सुहाग की निशानी के तौर पर महिलाएं अपने हाथों में रंग बिरंगी चुड़ियां सजाती है।
पूरे देश में अलग-अलग प्रकार की चुड़ी पहनी जाती है, कहीं हाथी दांत की चुड़ी प्रसिद्ध है, तो कहीं लाख की, कहीं प्लास्टिक की तो कहीं कांच की चुड़ियां पहनी जाती है। भारत में कांच की चुड़ियों का इतिहास उत्तरप्रदेश के फिरोजाबाद से जुड़ा है। यहां सबसे पहले कांच की चुड़ी बनाने का कारखाना बना। धीरे-धीरे फिरोजाबाद चुड़ी बनाने वाले शहर के नाम से प्रसिद्ध हो गया। इस तरह विश्वभर में इसे अलग पहचान मिली। यहां की चुड़ियां पूरी दुनिया में मशहूर हो गई।
फिरोजाबाद की चुड़ी
फिरोजाबाद शहर कांच की चुड़ी के व्यवसाय के लिए जाना जाता है। पूरे भारत में यह एक मात्र ऐसा शहर है जहां सबसे अधिक कांच की चुड़ियों का उत्पादन किया जाता है। इसका इतिहास लगभग 110 वर्ष पुराना है। यहां की चूड़ियां विश्व विख्यात है। इसे सुहाग नगरी के नाम से भी जाना जाता है। वर्ष 1910 में यहां पहला कारखाना खुला, जिसका नाम ‘द इंडियन ग्लास वर्क्स’ था। यहां कांच पकाने के लिए कोयले की गैस का उपयोग किया जाता था।
कहा जाता है कि कांच बनाने की शुरुआत लगभग 250 से 300 वर्ष पहले फिरोजाबाद के नजदीकी गांव उरमुरा और रपड़ी में हुई थी। इसलिए फिरोज़ाबाद के स्थानीय लोगों ने अपने घरों के पास ही छोटी भट्टी बना ली। शुरूआत में वे बिना रंग की कांच की चूड़ियां बनाने लगे। जैसे-जैसे इनकी मांग और खपत बढ़ने लगी, तो चुड़ी बनाने का व्यवसाय भी बढ़ता गया। इसके बाद ऑस्ट्रेलिया और जापान सहित कई देशों से रंग बिरंगे विदेशी कांच के टुकड़ें मंगाए गए। जिनसे रंग-बिरंगी चुड़ियां बनाई गई।
ऐसे बनता है कांच
कांच बनाने के लिए रेता, सोडा और कलई की आवश्यकता होती है। इन तीनों से मिलकर कांच बनाया जाता है। इसमें प्रयुक्त होने वाला रेता एक प्रकार का रेतीला पदार्थ है। इसमें मिट्टी का अंश कम मात्रा में होता है और पत्थर का ज्यादा मिलाया जाता है। भारत में रेता राजस्थान, मध्यप्रदेश, हैदराबाद तथा महाराष्ट्र में मिलता है। कांच बनाने के लिए मिलाया जाने वाला कलई पदार्थ को सफेदी भी कहा जाता है। इसे घरों को पोतने में भी काम में लिया जाता है। कलई एक कोमल पत्थर को जलाकर तैयार की जाती है। कांच को चमकीला तथा साफ बनाने के लिए सोडियम नाइट्रेट, कलमी शोरा व सुहागा मिलाया जाता है।
चुड़ी कारखानों की वर्तमान स्थिति
चुड़ी कारखाने वर्तमान में आधुनिकता की भेंट चढ़ते जा रहे हैं। वर्ष 1924 के आस-पास फिरोज़ाबाद में करीब तीन हजार मजदूर कांच चुड़ी उद्योग में काम करते थे। इस उद्योग से लगभग बारह हजार लोगों को रोज़गार मिलता था। लेकिन आधुनिक तकनीक के कारखानें खुलने के कारण फिरोज़ाबाद की आधार पद्धति लगभग नष्ट हो गई। वर्तमान में यहां 120 में से केवल 50 कारखाने ही चालू स्थिति में हैं।
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