जयपुर। चैत्र नवरात्रि आज से प्रारंभ हो गए है। घट स्थापना मुहूर्त चैत्र शुक्ल प्रतिपदा बुधवार से चैत्र नवरात्रि के साथ ‘पिंगल’ नामक नवसंवत्सर 2080 का शुभारंभ भी होगा। इस बार चैत्र नवरात्रि की घटस्थापना का श्रेष्ठ समय सूर्योदय से सुबह 10.32 बजे तक रहेगा। वहीं, विलंब की आशंका होने पर द्विस्वभाव मिथुन लग्न में सुबह 11:13 से दोपहर 1:27 बजे तक भी घटस्थापना की जा सकती है। इस बार बुधवार से नवरात्रि शुरू होने से अभिजित मुहूर्त मान्य नहीं है। वहीं चौघड़िया का विचार करके घटस्थापना करना शास्त्र सम्मत नहीं है।
घट स्थापना के दौरान इन बातों का रखे ध्यान
घटस्थापना के समय कुछ विशेष नियमों को ध्यान में रखना चाहिए। सबसे पहले देवी मां की चौकी सजाने के लिए उत्तर-पूर्व दिशा का स्थान चुने। इस स्थान को साफ-स्वच्छ रखे और गंगाजल से छिड़काव करें। एक लकड़ी की चौकी रखकर उस पर लाल रंग का साफ कपड़ा बिछाकर देवी मां की मूर्ति की स्थापना करें। इसके बाद प्रथम पूज्य गणेश जी का ध्यान करें और कलश स्थापना करे।
पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना
मान्यता के अनुसार मां दुर्गा पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं। आदि शक्ति ने अपने इस रूप में शैलपुत्र हिमालय के घर जन्म लिया था। इसी कारण इनका नाम शैलपुत्री पड़ा। शैलपुत्री नंदी नाम के वृषभ पर सवार होती हैं और इनके दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का पुष्प है। देवी शैलपुत्री का प्रिय
पुष्प : गुड़हल। देवी शैलपुत्री नैवेद्य : शुद्ध घी।
ये है मान्यता
वैसे तो नवरात्रि में प्रतिदिन कन्याओं का विशेष पूजन किया जाता है। लेकिन, अधिकतर लोग अष्टमी और नवमी के दिन कन्याओं का पूजन करते है और भोजन कराने के बाद गिफ्ट देते है। श्रीमद् देवी भागवत पुराण के अनुसार नित्य ही एक कुमारी का पूजन करें अथवा प्रतिदिन एक-एक-कुमारी की संख्या के वृद्धि क्रम से पूजन करें। रोजाना दो या तीन गुने वृद्धिक्रम से अथवा प्रत्येक दिन नौ कुमारी कन्याओं का पूजन करें। यदि प्रतिदिन कन्या पूजन करना संभव न हो तो नवरात्रि में अष्टमी अथवा नवमी तिथि को नौ कन्याओं को विधिपूर्वक बैठाकर उनका पूजन करने के बाद भोजन कराना चाहिए और विदा करते समय उन्हें गिफ्ट देना चाहिए।