साल 1946 में जब हमारा देश ब्रिटिश हुकूमत से आजादी की जंग छेड़े हुए था, तभी फ्रांस के सुदूर गांव में एक बच्चे का जन्म हुआ। मैथ्यू रिचर्ड नाम के इस बच्चे के माता-पिता फिलॉसफी पढ़ाते थे। मैथ्यू बाकी फ्रेंच बच्चों की तरह ही सामान्य स्कूल-कॉलेज गया और मॉलिक्यूलर जेनेटिक्स में पीएचडी कर डाली। ये बड़ी डिग्री उस दौर में बड़ी नौकरी दिलाने के लिए काफी से भी ज्यादा बढ़िया थी, लेकिन यह युवक नाखुश था। खुशी की तलाश में मैथ्यू फ्रांस से तिब्बत पहुंचे। वहां दलाई लामा का फ्रेंच दुभाषिए बने। राेज कुछ देर मेडिटेशन करते। धीरे-धीरे समय बढ़ता गया और मैथ्यू की खुशी भी बढ़ती चली गई। फिर, उसे कभी उदासी नहीं हुई।
मस्तिष्क में पैदा होती हैं गामा विकिरणें
विस्कॉन्सिन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने इसकी जांच की ठानी। वहां के न्यूरोलॉजिस्ट्स ने उनके स्कल पर 256 सेंसर लगा दिए, जिससे भीतर हो रही हर हलचल का पता लगे। ये रिसर्च 12 साल चली। इसमें दिखा कि जब भी मॉन्क ध्यान करते, उनका मस्तिष्क गामा विकिरणें पैदा करता था। यह भी दिखा कि ब्रेन का बायां हिस्सा दाहिने से काफी ज्यादा एक्टिव था। ये हिस्सा क्रिएटिविटी व खुशी से जुड़ा है। शोधकर्ताओं ने मान लिया कि मैथ्यू के भीतर इतनी ज्यादा खुशी है कि निगेटिविटी की कोई जगह ही नहीं।
ध्यान से ब्रेन में आता है बदलाव
यही रिसर्च बाकी बौद्ध संतों पर भी हुई। लंबे समय तक मेडिटेशन की प्रैक्टिस करने वालों के दिमाग में काफी सारे बदलाव होते हैं। यहां तक कि लगातार तीन हफ्तों तक 20 मिनट तक ध्यान से भी दिमाग के भीतर बदलाव आने लगे। रिचर्ड की किताब हैप्पीनेस- ए गाइड टू डेवलपिंग लाइफ्स मोस्ट इंपॉर्टेंट स्किल में बताया गया है कि हर दिन 10 से 15 मिनट तक सिर्फ और सिर्फ अच्छी बातें सोचना शुरू करें। सिर्फ 3 हफ्तों के भीतर ब्रेन में बदलाव होने लगेगा आप मुश्किल हालातों में भी दिमाग कंट्रोल खोए बिना सामान्य रहने लगता है।