राजस्थान में सचिन पायलट का राजनीतिक भविष्य क्या होने वाला है इसके बारे में तो अभी कुछ नहीं कहा जा सकता। लेकिन अपने भविष्य को लेकर वह कौन से कदम उठा सकते हैं, चर्चाओं के बाजार में अभी इस मुद्दे को लेकर काफी गहमागहमी है। दरअसल 25 सितंबर को कांग्रेस विधायकों की बैठक में जो कुछ भी हुआ उसके बाद यह मुद्दा कांग्रेस आलाकमान तक पहुंच गया था। तब कांग्रेस आलाकमान ने राजस्थान के सीएम का फैसला 17 अक्टूबर तक यथावत रखने का फैसला दिया था। जिस पर पायलट कैंप ने मौन होकर अपनी सहमति भी जताई थी। लेकिन अब 17 अक्टूबर को निकले काफी दिन हो गए हैं और अब तो दीपावली भी निकल चुकी है। लेकिन पायलट कैंप अभी भी खामोश बैठा है।
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि अब सचिन पायलट आलाकमान के बदले दूसरे रास्तों पर चलने का जोखिम उठा सकते हैं। मुख्य रूप से यहां पर दो राहें निकलती दिखाई दे रही हैं। एक तो पायलट कांग्रेस को छोड़कर दूसरा ठिकाना ढूंढ लें या फिर कांग्रेस में ही बने रहे और जो भी पद उन्हें दिया गया है उसका निर्वहन करें।
कहां तक ले जाएगी सीएम बनने की टीस
यह बात किसी से छिपी नहीं है कि सचिन पायलट के अंदर राजस्थान का सीएम बनने की टीस दबी हुई है और यह रह-रह कर बाहर भी निकल कर आई है। इसका सबसे बड़ा उदाहरण साल 2020 में पायलट कैंप की हुई बगावत है। इसी को आधार पर रखकर गहलोत समर्थक विधायक पायलट को राजस्थान का सीएम बनाने के लिए बगावत कर रहे थे। उन्होंने साफ-साफ शब्दों में कह दिया था कि वह किसी ‘गद्दार’ को राजस्थान का सीएम बनते नहीं बर्दाश्त कर सकते। हालांकि सचिन पायलट ने इन बातों पर भी चुप्पी साधे रखी। यहां तक कि कई मौकों पर मीडिया कर्मियों के यह सवाल पूछे जाने के बाद बाद भी उन्होंने इससे किनारा ही किया है और सिर्फ एक ही बात की रट लगाई कि उनका पूरा फोकस सिर्फ राजस्थान के अगले विधानसभा चुनाव पर है। जिसमें उन्हें और सभी सदस्यों को कांग्रेस पार्टी के लिए जीत का ताज सजाने की तैयारी करनी है।
क्या भाजपा में शामिल हो सकते हैं पायलट ?
दूसरा रास्ता यह है कि सचिन पायलट कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हो जाएं। लेकिन इसके भी आसार कम ही नजर आते हैं क्योंकि थोड़ा पीछे साल 2020 में जाएं, तो बगावत के वक्त भाजपा पूरी तरह से पायलट को पार्टी में शामिल करने के लिए तैयार बैठी हुई थी। देर तो बस पायलट के ‘हां’ बोलने की थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि सचिन पायलट भाजपा में इसलिए नहीं जा रहे हैं या जाना चाहते हैं कि उन्हें पार्टी में वह सम्मान नहीं मिल पाएगा जो कांग्रेस में मिल रहा है। क्योंकि भाजपा में भी वसुंधरा राजे के समर्थक सचिन पायलट के धुर विरोधी बताए जाते हैं। इसलिए यह मुश्किल ही है कि सचिन पायलट भाजपा का हाथ थामे।
वहीं अगर एक बात पर गौर किया जाए तो देखेंगे कि सचिन पायलट सीएम बनने के लिए भाजपा में तो बिल्कुल नहीं जाना चाहेंगे। क्योंकि भाजपा में पहले से ही सीएम को लेकर के अलग ही स्तर की रार छिड़ी हुई है। जिसमें मुख्य रुप से वसुंधरा राजे और पूनिया कैंप उभर कर आ रहा है। ऐसे में सचिन पायलट भाजपा में एंट्री कर इस रार को और भी ज्यादा मुश्किल में नहीं फंसाना चाहते क्योंकि यह ना तो उनके लिए लाभकारी होगा और ना ही उनके सीएम बनने के सपने के लिए।
हिमाचल चुनाव का परिणाम…पायलट का करियर !
पायलट कैंप के शांत रहने का एक और कारण है इसी साल होने वाले हिमाचल प्रदेश के चुनाव। सचिन पायलट और उनके विधायक इन चुनावों के परिणामों तक रुकना चाहते हैं। क्योंकि सचिन पायलट के हाथों में हिमाचल प्रदेश के चुनाव की कमान सौंपी गई है। जो कि एक तरह से उनके लिए अग्निपरीक्षा है। जाहिर है सचिन पायलट अपनी काबिलियत दिखाने के लिए इस चुनाव में जी तोड़ मेहनत करेंगे और इसका रिजल्ट आलाकमान के सामने रखेंगे। अब अगर यह रिजल्ट सकारात्मक आता है तो सचिन पायलट के करियर में शायद कुछ उछाल देखने को मिल सकता है। लेकिन अगर कहीं यह रिजल्ट आशाओं के विपरीत जाता है तो शायद सचिन पायलट खुद भी अपने राजनीतिक कद को बढ़ाने के लिए मांग करने से पहले सौ बार सोचें।
सचिन पायलट को हिमाचल प्रदेश के चुनाव का पर्यवेक्षक बनाया गया है। जाहिर है इस चुनाव का परिणाम सचिन पायलट के राजनीतिक करियर को भी बदल सकता है। यह भी जगजाहिर है कि कांग्रेस आलाकमान गुजरात विधानसभा चुनाव और हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनाव में अशोक गहलोत और सचिन पायलट के प्रदर्शन को भी देखेगा। जिसमें इन दोनों नेताओं का राजनीतिक, रणनीतिक और कूटनीतिक कौशल देखने को मिलेगा। अशोक गहलोत राजनीति में लंबा अनुभव रखने वाली शख्सियत हैं। कई बारी उन्होंने राजनीति में ऐसा जादू चलाया है कि विरोधी तक उनके गुणगान करते नहीं थकते। ऐसे में सचिन पायलट के लिए यह ‘प्रतिस्पर्धा’ एक तरह से और भी ज्यादा कठिन हो जाती है क्योंकि अशोक गहलोत के सामने उन्हें अपने राजनीतिक कौशल का प्रदर्शन करना है।
मल्लिकार्जुन खड़गे के सामने पहला ‘प्रोजेक्ट’ राजस्थान
बात अगर 17 अक्टूबर वाले अल्टीमेटम की थी तो यह भी बता दें कि अब मल्लिकार्जुन खड़गे कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष बन चुके हैं वही खड़के जो 25 सितंबर की रात पर्यवेक्षक बनकर दिल्ली से जयपुर कांग्रेस विधायकों से बात करने के लिए पहुंचे थे। अब मलिकार्जुन खड़गे पर्यवेक्षक नहीं बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में इस मामले का निपटारा करेंगे जिस पर पूरे देश की निगाहें टिकी हुई है।
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