शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद (Swami Swaroopanand) को आज भू समाधि के जरिए अंतिम संस्कार किया जाएगा। शाम 5 बजे मध्य प्रदेश के गोटेगांव तहसील के झोंतेश्वर में भूसमाधि का प्रक्रिया शुरू होगी। लेकिन भू समाधि का नाम सुनकर कई लोगों के दिमाग के यह सवाल जरूर आता होगा कि हिंदू धर्म में तो अंतिम संस्कार के लिए चिता जलाई जाती है तो यह भू समाधि क्यों, तो हम आपको बताते हैं कि भारत में साधु-संतों के अंतिम संस्कार के लिए कुछ नियम हैं जिनमें से भू समाधि अंतिम संस्कार की सबसे अहम प्रक्रिया है।
संप्रदायों के मुताबिक होता है अंतिम संस्कार
दरअसल भारत में साधु-संत (Swami Swaroopanand) को कई अलग-अलग सम्प्रदाय से जुड़े हुए होते हैं। इनके संप्रदाय के नियमों के मुताबिक ही इनके अंतिम संस्कार की रस्में होती हैं। आपको बता दें कि भारतीय वेद-पुराणों के मुताबिक 5 संप्रदाय माने गए हैं और ये हैं वैष्णव, शैव, शाक्त, स्मार्त और वैदिक। इनमें से जो वैष्णव संप्रदाय को होते हैं मृत्यु के बाद उनका अंतिम संस्कार चिता को अग्नि देकर किया जाता है। लेकिन संन्यासी परंपरा के मुताबिक संतों का अंतिम संस्कार तीन तरीकों से किया जाता है। इसमें अग्नि से दाह संस्कार के अलावा, जल समाधि औऱ भू समाधि शामिल है।
पहले कई साधु-संतों को जल समाधि दी जाती थी, लेकिन समय के साथ कई नदियों का जल प्रदूषित हो गया है जिसको लेकर कई नियम कायदे कानून बना दिए गए हैं, इसलिए साधुओं को अब भू समाधि दा जाती है।
भू समाधि को लेकर क्या हैं मान्यताएं
साधु-संतों (Swami Swaroopanand) को की भू समाधि को लेकर मान्यताएं हैं कि एक व्यक्ति जब संन्यासी बनता है तो वह खुद का पिंडदान करता है, क्योंकि वे पहले ही पिंडदान कर देते हैं तो उनकी आत्मा शरीर से दूर मानी जाती है इसलिए उन्हें जलाया नहीं जाता। साधु-संत भी संन्यास लेने के लिए पहले खुद अपने हाथों से पिंडदान करते हैं इसलिए उन्हें जलाया नहीं जाता बल्कि समाधि दी जाती है।
कैसे दी जाती है भू समाधि
वैदिक पुराणों के मुताबिक समाधि की प्रक्रिया 7 चरणों में पूरी होती है।
सबसे पहले मृत शरीर को गंगाजल से स्नान कराया जाता है
शरीर को बैठने की मुद्रा भी व्यवस्थित किया कर एक आसन पर बिठाया जाता है
पूरे शरीर पर अभिमंत्रित विशेष विभूति लगाई जाती है
शरीर पर चंदन का लेप लगाया जाता है फूल-माला पहनाई जाती है
शरीर को वस्त्र पहनाए जाते हैं
शरीर को समाधि स्थल पर रख दिया जाता है
ऊपर से उसे मिट्टी से ढक कर गाय के गोबर का लेप लगाया जाता है
यहां आपको बता दें कि साधु-संतों को यह समाधि उनके गुरू की समाधि या उनके मठ परिसर में ही दी जाती है। इसलिए शंकराचार्य स्वरूपानंद सरस्वती (Swami Swaroopanand) को को भी समाधि उनके मठ यानी आश्रम में ही दी जाएगी। बता दें कि द्वारका पीठ शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती का रविवार को उनके नरसिंगपुर के आश्रम में निधन हो गया था। बीते 30 अगस्त को ही उन्होंने अपना 99वां जन्मदिन मनाया था।
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दूसरी तरफ स्वामी स्वरूपानंद की मृत्यु के बाद उनके उत्तराधिकारियों की भी घोषणा कर दी गई है। स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद को ज्योतिषपीठ बद्रीनाथ और स्वामी सदानंद को द्वारकाशारदा पीठ की जिम्मेदारी दी गई है। अब से ये दोनों इन पीठों के प्रमुख होंगे।