Jodhpur : आज देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह जोधपुर दौरे पर आएंगे। वे यहां सलवां कलां गांव में वीर दुर्गादास की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। आज उनकी जन्म जयंती है। इसके अलावा वे यहां वायुसेना के अधिकारियों से सीमा सुरक्षा संबंधी मुद्दों पर चर्चा करेंगे। राजनाथ सिंह यहां आजादी के अमृत महोत्सव के तहत तिरंगा यात्रा का शुभारंभ भी करेंगे। बीते शुक्रवार राजनाथ सिंह ने ट्वीट कर अपनी जोधपुर दौरे को लेकर जानकारी साझा की थी।
राजनाथ सिंह का कार्यक्रम भी जारी हो गया है। इसके मुताबिक वे आज सुबह 10.40 बजे पर जोधपुर एयरबेस पर उतरेंगे। यहां पर वे वायुसेना के अधिकारियों से सीमा संबंधी मामलों पर चर्चा करेंगे। सलवां कलां पहुंचने से पहले वे पिलर के बालाजी से बनद तक तिरंगा यात्रा को रवाना करेंगे। करीब 11.45 बजे वे सलवां कलां पहुंचेंगे। यहां वे वीर दुर्गादास की प्रतिमा का अनावरण करेंगे। यहां हम आपको बता रहे हेैं कि जिन वीर दुर्गादास की प्रतिमा का अनावरण रक्षामंत्री के हाथों होगा वे वीर दुर्गादास कौन हैं।
कौन हैं वीर शिरोमणि दुर्गादास
मेवाड़ के वीर शिरोमणि कहे जाने वाले वीर दुर्गादास का नाम सिर्फ प्रदेश में ही नहीं पूरे भारत के गौरव शाली इतिहास में बड़े सुनहरे अक्षरों से अंकित है। उनका जन्म आज के ही दिन 13 अगस्त 1638 को जोधपुर के सालवां गांव में हुआ था। उनके पिता आसकरण मारवाड़ के महाराजा जसवंत सिंह के राज्य की दुनेवा जागीर के जागीदार थे। बचपन से ही दुर्गादास के अंदर देशभक्ति और मातृभूमि से प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ था। इतिहास में मुगलशासक औरंगजेब को धूल चटाने के लिए दुर्गादास का नाम अजर-अमर है। युवावस्था में दुर्गादास जसवंत सिंह की सेना में शामिल हुए। दुर्गादास ने कुंवर अजित सिंह ने साहस औऱ शौर्य के साथ औरंगजेब की विशाल मुगल सेना का मुकाबला किया और उनकी रक्षा की।
जसवंत सिंह के पुत्र अजित सिंह की 25 सालों तक की थी रक्षा
उस वक्त कुंवर अजित सिंह छोटे थे। लेकिन जब तक कुंवर सिंह राजगद्दी संभालने लायक नहीं हो गए थे। दुर्गादास ने उनकी हर तरह से रक्षा की। औरंगजेब के तमाम षड्यंत्रों से अजित सिंह को बड़ी ही कुशलता से बचाया। इस दौरान उन्होंने औरंगजेब की सेना से कई युद्ध किए। करीब 25 सालों तक दुर्गादास ने मुगल सेना को जसवंत सिंह के किले में झांकने तक नहीं दिया, जब औरंगजेब किसी भी तरह दुर्गादास के सामने नहीं टिक पाया तो आखिर में उसने दुर्गादास को लालच में फंसाने की कोशिश भी की। लेकिन दुर्गादास अपने धर्म और कर्तव्य के प्रति परायण थे। उन्हें तो लालच छूकर भी नहीं जा सका। साल 1708 में उन्होंने आखिर अजित सिंह को जोधपुर की गद्दी पर बिठा ही दिया। इस तरह से उन्होंने महाराज जसवंत सिंह को दिया अपना वचन पूर्ण किया।
इसके बाद वीर दुर्गादास जोधपुर छोड़कर उज्जैन आ गए। और यहीं पर 22 नवंबर 1718 में उनका निधन हो गया। लेकिन वीर दुर्गादास का नाम अपने कर्तव्यपरायणता, निष्ठा और वीरता के लिए भारत के इतिहास में दर्ज हो गया। उनकी इस वीरता का सम्मान करते हुए 16 अगस्त 1988 को भारत सरकार ने उनके नाम पर डाक टिकट जारी किया था। इसके बाद साल 2003 में उनके नाम का सिक्का भी जारी किया था। आगरा में ताजमहल के पास पुरानी मंडी चौराहे पर वीर दुर्गादास की प्रतिमा स्थापित है। अब आज दुर्गादास के गृह क्षेत्र जोधुपर में ही उनकी प्रतिमा का अनावरण देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह करेंगे।