Rajasthan Election 2023: जयपुर/नागौर बात 1984 की है। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या के बाद हुए लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पक्ष में सहानुभूति की प्रचंड लहर थी। इसके बावजूद राजीव गांधी को राजस्थान के नागौर से एक ऐसे मजबूत उम्मीदवार की तलाश थी जो नाथूराम मिर्धा को मात दे सके। आखिरकार उन्होंने रामनिवास मिर्धा को टिकट दिया और मिर्धापरिवार के दो दिग्गजों के उस मुकाबले में नाथूराम मिर्धा को शिकस्त मिली। 1984 में नाथूराम मिर्धा ने लोकदल प्रत्याशी के रूप में नागौर सीट पर लोकसभा चुनाव लड़ा था। लेकिन रामनिवास मिर्धा ने इससे पहले कभी लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ा था। वे 1967 से लगातार राज्यसभा के लिए निर्वाचित होते रहे थे। लेकिन उन्होंने चुनाव लड़ा और 48 हजार से ज्यादा वोटों से नाथूराम मिर्धा को हरा दिया।
वह पहला मौका था जब जाटलैंड के इस रसूखदार राजनीतिक घराने के दो दिग्गज आमने-सामने थे और अब 39 साल बाद उसी नागौर में मिर्धा परिवार के दो नेता एक दूसरे को चुनौती दे रहे हैं। इस बार विधानसभा चुनाव में मुकाबला मिर्धा परिवार से ताल्लुक रखने वाले चाचा और भतीजी के बीच है। रामनिवास मिर्धा के पुत्र हरेंद्र मिर्धा नागौर से कांग्स के रे टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं तो भारतीय जनता पार्टी ने नाथूराम मिर्धा की पौत्री ज्योति मिर्धा को टिकट दिया है।
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हरेंद्र मिर्धा और ज्योति मिर्धा रिश्ते में चाचा और भतीजी लगते हैं। पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा इस साल सितंबर में ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुई हैं। आजादी के बाद से नागौर से अब तक पांच-पांच बार जाट व मुस्लिम प्रत्याशी विजयी रहे हैं। नागौर विधानसभा क्षेत्र में करीब 2 लाख 64 हजार मतदाता है जिनमें मुस्लिम और जाट मतदाता निर्णायक माने जाते हैं।
तीन सीटों पर चार मिर्धा मैदान में
वैसे नागौर जिले की तीन विधानसभा सीटों पर मिर्धा घराने से तालुक रखने वाले चार लोग चुनाव लड़ रहे हैं। नागौर जिले में कांग्स इस बार रे मिर्धा परिवार पर पूरी तरह से मेहरबान रही। नागौर जिले में 3 विधानसभा सीट पर कांग्स ने रे मिर्धा परिवार को चुनाव मैदान में उतारा है। इसके पीछे जातीय समीकरणों को सबसे बड़ी वजह माना जा सकता है। जिले में जाट मतदाता सबसे अधिक हैं। जाट वोटर्स के साथ ही मिर्धा परिवार की राजनीति में अच्छी पकड़ है। इसी कारण कांग्रेस ने नागौर जिले की दो रिजर्व सीटों को छोड़कर तीनों सीटों पर मिर्धा परिवार के सदस्यों को चुनाव मैदान में उतारा है।
कांग्रेस ने नागौर विधानसभा क्षेत्र से हरेंद्र मिर्धा, डेगाना विधानसभा क्षेत्र से विजयपाल मिर्धा और खींवसर विधानसभा क्षेत्र से तेजपाल मिर्धा को प्रत्याशी बनाया है। वहीं, भाजपा ने नागौर विधानसभा सीट से ज्योति मिर्धा को चुनाव मैदान में उतारा है। नागौर में ‘मिर्धा बनाम मिर्धा’ के कारण मुकाबला दिलचस्प हो गया है। हालांकि निर्दलीय उम्मीदवार और पूर्व विधायक हबीबुर्रहमान मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में हैं।
निजी संबंधों में कटुता नहीं: हरेंद्र मिर्धा
ज्योति मिर्धा से मुकाबले के बारे में पूछे जाने पर हरेंद्र मिर्धा का कहना है कि यह सवाल उनसे पूछा जाना चाहिए कि वह भाजपा में क्यों शामिल हुईं? हमारा तो कांग्रेस के साथ लंबा संबंध रहा है। पार्टी ने मुझे खड़ा किया है और विश्वास है कि जनता मुझे विजयी बनाएगी। हरेंद्र का यह भी कहना है कि ज्योति मिर्धा और उनके बीच चुनावी मुकाबला होने से निजी संबंधो में कोई कटुता नहीं आई है।
उन्होंने रामनिवास मिर्धा और नाथूराम मिर्धा के बीच मुकाबले के बारे में कहा कि दोनों में बहुत अच्छे रिश्ते थे लेकिन राजनीतिक परिस्थिति ऐसी बनी कि दोनों ने एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ा। हरेंद्र मिर्धा को उम्मीद है कि अशोक गहलोत सरकार की योजनाओ और कांग्रेस पार्टी की सात ‘गारंटी’ का उन्हें फायदा मिलेगा। इधर, ज्योति मिर्धा का कहना है कि उनके चाचा ने उनके सामने चुनाव लड़ने से मना किया था।
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इस बार कांटे का मुकाबला
नागौर के स्थानीय मतदाताओं का भी मानना है कि मिर्धा परिवार के दो लोगों के बीच आमने-सामने की टक्कर से मुकाबला बहुत ही दिलचस्प और कांटे का हो गया है। स्थानीय मतदाता और पेशे से शिक्षक बलिराम चौधरी का कहना है कि अभी तो ज्योति मिर्धा का बोलबाला लग रहा है, लेकिन मुस्लिम मतदाताओं की गोलबंदी पूरी तरह से कांग्रेस के पक्ष में हो गई तो हरेंद्र मिर्धा इस सीट से जीत सकते हैं। अब यह देखना होगा कि हबीबुर्रहमान को कितने वोट मिलते हैं।
नागौर निवासी मोहम्मद असलम का मानना है कि इस सीट पर मुकाबला कांटे का है, लेकिन जातीय समीकरण के चलते हरेंद्र थोड़ा आगे दिखाई दे रहे हैं। उन्होंने बताया कि नागौर का मुस्लिम मतदाता हबीबुर्रहमान के साथ नहीं जाएगा। हरेंद्र मिर्धा को मुसलमानों के साथ ही जाट और कुछ अन्य जातियों के वोट भी मिल सकते हैं। इसलिए उनके जीतने की संभावना ज्यादा लगती है।