फ्लोरिडा। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि पृथ्वी पर मौजूद जीवनदायी सिस्टम बहुत ज्यादा क्षतिग्रस्त हो चुका है। इसे इतना ज्यादा नुकसान पहुंचा है कि यह ग्रह अब सुरक्षित जगह बनने से काफी बाहर हो गया है। जांच में पाया कि नौ में से छह ग्रहीय सीमाएं इंसानों की वजह से बढ़े प्रदूषण और प्राकृतिक दुनिया के विनाश की वजह से खत्म हो गई हैं।
ये सीमाएं दरअसल प्रमुख ग्लोबल सिस्टम की सीमाएं हैं, जैसे कि जलवायु, जल और वन्यजीव में विविधता। यह सिस्टम 10,000 साल पहले यानी अंतिम हिमयुग के अंत से लेकर औद्योगिक क्रांति की शुरुआत तक मौजूद था। इसकी छह सीमाएं टूट गई हैं तथा दो टूटने के करीब हैं। ये दो हैं वायु प्रदूषण और महासागरों में एसिड का बढ़ना।
सिकुड़ गया है ओजोन का छेद
हाल के दशकों में विनाशकारी रसायनों को एक फेज में खत्म करने के तरीके व इसकी कार्रवाई की वजह से ओजोन का छेद सिकुड़ गया है। वैज्ञानिकों ने कहा कि सबसे चिंताजनक नतीजा यह है कि सभी चार जैविक सीमाएं, जो जीवित दुनिया में मौजूद हैं, उच्चतम जोखिम स्तर पर या उसके करीब थीं। जीवित दुनिया पृथ्वी के लिए खासतौर पर महत्वपूर्ण है। उनका कहना है कि यह कुछ भौतिक परिवर्तनों की भरपाई करके लचीलापन प्रदान करती है जैसे ही कार्बन डाइऑक्साइड प्रदषूण को सोखने वाले पेड़।
ग्रहों की सीमाओं के मायने
वैज्ञानिकों ने कहा कि ग्रहों की सीमाओं को बदला नहीं जा सकता है कि जिसके आगे अचानक और गंभीर गिरावट हो। इसके बजाय ये सीमाएं ऐसे बिंदु हैं, जिनके बाद पृथ्वी के भौतिक, जैविक और रासायनिक जीवन समर्थन प्रणालियों में परिवर्तनों का जोखिम काफी बढ़ जाता है। ग्रहों की सीमाएं पहली बार साल 2009 में तैयार की गईं और साल 2015 में इन्हें अपनाया गया। स्टॉकहोम रेजिलिएं स सेंटर के प्रोफे सर जोहान रॉकस्ट्रॉम ने इसे तैयार करने वाली टीम को लीड किया था।
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