ओटावा। यूनिवर्सिटी ऑफ विक्टोरिया के वैज्ञानिकों ने साइंस जर्नल एसीएस पब्लिकेशन्स में छपी एक स्टडी में यह बताकर कि हर साल हम प्लास्टिक का छोटा-मोटा पहाड़ खा रहे हैं, चौंका दिया है। ह्यूमन कन्जंप्शनऑफ माइक्रोप्लास्टिक के अनुसार एडल्ट्स हर साल 39 से लेकर 55 हजार प्लास्टिक के टुकड़े निगल या सांस के जरिए ले रहे हैं। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इंसानों नसों में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी का पता लगाया। ग्राम ऊतक में माइक्रोप्लास्टिक के लगभग 15 कण मिले। इस तरह से हर हफ्ते हम लगभग एक क्रेडिट कार्ड जितना प्लास्टिक खा जाते हैं। ये प्लास्टिक नसों से होते हुए हार्ट और ब्रेन तक पहुंचने लगा है।
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चूहों पर किया प्रयोग
यूनिवर्सिटी ऑफ रोड आयलैंड की प्रोफे सर जैमी रॉस की अगुआई में एक्सपर्ट्स ने ब्रेन तक पहुंच रहे प्लास्टिक की जांच की और ये समझना चाहा कि इस तरह से अंगों में प्लास्टिक के जमा होने का शरीर पर क्या असर पड़ता है। इसके लिए युवा और बुजुर्ग चूहों पर लैब में प्रयोग हुआ। उन्हें 3 सप्ताह तक पानी और खाने में प्लास्टिक के बारीक-बारीक टुकड़े डालकर दिए गए। इस दौरान पाया गया कि उम्रदराज चूहे भूलने लगे थे और ज्यादा चिड़चिड़े हो चुके थे। ये बदलाव चौंकाने वाला था। कई कमजोर चूहों में अल्जाइमर्स के लक्षण दिखने लगे।
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15 लोगों की हुई हार्टसर्जरी
अमेरिकन के मिकल सोसाइटी ने अगस्त के दूसरे सप्ताह में एक पायलेट स्टडी के नतीजे सार्वजनिक किए। इसमें इसी बात पर फोकस था कि प्लास्टिक हार्टमें पहुंचकर क्या करता है। इसके लिए 15 लोग लिए गए, जिनकी हार्ट सर्जरी हुई थी। लेजर डायरेक्ट इंफ्रारेड इमेजिंग सिस्टम की मदद से हार्ट के ऊतकों को देखा गया। इस दौरान पता लगा कि हर टिशू में 9 तरह के माइक्रोप्लास्टिक मौजूद थे। इसमें सबसे बड़ा टुकड़ा लगभग 469 मिमी का था।