जयपुर। भगवान भोलेनाथ की आराधना श्रावण मास मंगलवार से शुरू होगा। यूं तो श्रावण के बिल्वपत्र चढ़ाने का अनुष्ठान सोमवार को आषाढ़ी पूर्णिमा से शुरू हो गया जो कि श्रावण पूर्णिमा तक चलेगा। वहीं इस बार श्रावण मास को लेकर भक्तों को खास उत्साह है। 19 साल बाद श्रावण मास अिधकमास के साथ आया है। अधिकामास को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है। श्रावण मास में जहां भगवान शिव की आराधना होती है, वहीं अधिकमास भगवान विष्णु की आराधना का मास है। ऐसे में इस बार श्रावण मास के दौरान हरि-हर की आराधना एक साथ होगी।
अधिकमास आने से श्रावण का महीना 59 दिन का रहेगा। इससे पूर्व वर्ष 2004 में श्रावण मास के दौरान अधिकमास आया था। मोती डूंगरी रोड स्थित श्रीपातालेश्वर महादेव मंदिर के महंत पं. गौरीशंकर शर्मा ने बताया कि श्रावण में शिवजी की विधिवत पूजा रोज करनी चाहिए। अगर विधिवत पूजा नहीं कर सके तो कम से कम एक लोटा जल और बिल्व पत्र शिवलिंग पर जरूर चढ़ाना चाहिए। उन्होंने बताया कि अधिक मास के सभी 30 दिनों में व्रत-उपवास और दान-पुण्य की परंपरा है।
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18 जुलाई से 16 अगस्त तक रहेगा अधिकमास
सावन का महीना 4 जुलाई से प्रारंभ होकर 31 अगस्त तक चलेगा। इस बीच 18 जुलाई से अधिकमास प्रारंभ होगा जो 16 अगस्त को समाप्त होगा। अधिकमास के दौरान मंदिरों में श्रीमद भागवत, शिव पुराण, रामचर त्रि मानस आदि कथाएं होंगी। वहीं अनेक मंदिरों में अष्टोत्तरशत भागवत का आयोजन होगा।
इसमें विद्धतजन सस्वर श्रीमद भागवत के मूल पाठ करेंगे वहीं भागवत कथा प्रसंगों पर संतों के प्रवचन भी होंगे। इसी कड़ी में 22 जुलाई से आचार्य अवध किरीट के नेतृत्व में गोविंददेवजी मंदिर में अष्टोत्तरशत श्रीमद भागवत कथा होगी। इसमें सुबह 8 से दोपहर 1 बजे तक भागवत के मूल पाठ होंगे। वहीं दोपहर में वेणुगोपाल गोस्वामी महाराज कथा प्रसंगों पर चर्चा करेंगे।
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वायु का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर
आषाढ़ी पूर्णिमा के अवसर पर सोमवार को जंतर-मंतर में परंपरानुसार वायु-परीक्षण किया गया। इसमें शहरभर के ज्याेतिषी एकत्र हुए और सबसे ऊंचे सम्राट यंत्र पर ध्वज फहराकर वायु परीक्षण किया गया। इससे आगामी मानसून की बारिश का पूर्वानुमान लगाया गया।
भारतीय ज्योतिष शास्त्र में दृष्टि विज्ञान के आधार पर गत कार्तिक मास से प्रारम्भ होने वाले वृष्टि के गर्भधारण काल से अब तक के आकाशीय लक्षणों व ग्रह योगों के आधार पर इस वर्ष चातुर्मास में वर्षा के योग पर विद्वानों ने वायु परीक्षण के बाद अपने विचार बताए। इस बार वायु परीक्षण के दौरान वायु का प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर एवं कु द ईशान कोण की ओर रहा। इससे कहीं-कहीं खण्ड वृष्टि एवं कहीं-कहीं सामान्य से अधिक होने की संभावना प्रकट की गई।